Caste Census: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने का निर्णय लिया है. बुधवार को हुई राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया. जिसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट ब्रीफिंग में दी.
यह फैसला आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आया है और माना जा रहा है कि इससे विपक्ष की लंबे समय से चल रही मांग को ठोस जवाब मिलेगा. साथ ही, सरकार ने कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा कि 2010 में डॉ. मनमोहन सिंह ने इस मुद्दे को कैबिनेट में लाने की बात कही थी. लेकिन कांग्रेस ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया.
भारत में जातिगत जनगणना का इतिहास
- साल 1881: ब्रिटिश शासन में पहली बार देशव्यापी जनगणना की शुरुआत हुई.
- साल 1901: जातियों को पेशे और वर्ण के आधार पर वर्गीकृत किया गया कुल 1,642 जातियां दर्ज.
- 1931: स्वतंत्र भारत से पहले की आखिरी जातिगत जनगणना, जिसमें 4,147 जातियां दर्ज की गईं.
- 1941: द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जनगणना अधूरी रही.
- 2011: यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) कराई, लेकिन आंकड़े अशुद्धियों के कारण सार्वजनिक नहीं किए गए.
जातियों की संख्या समय के साथ आंकड़े
- 1872: केवल कुछ प्रमुख जातियों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, आदिवासी आदि) का उल्लेख.
- 1901: 1,642 जातियां दर्ज.
- 1931: 4,147 जातियां दर्ज.
- 2011: SECC में 46 लाख से अधिक जाति, उपजाति, उपनाम और गोत्र के नाम दर्ज हुए, लेकिन डेटा पर संदेह के चलते इसे रोका गया.
क्या होगा इसका राजनीतिक और सामाजिक असर
इस फैसले से एक ओर ओबीसी और वंचित तबकों की वास्तविक संख्या सामने आएगी, वहीं दूसरी ओर यह आरक्षण, संसाधन वितरण और सामाजिक न्याय से जुड़ी नीतियों को दिशा देगा. जातिगत जनगणना को लेकर राजनीतिक बहस भी तेज हो सकती है, क्योंकि इससे चुनावी समीकरणों और दलों की रणनीतियों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है.