नयी दिल्ली : विकास के तमाम दावों के बावजूद भारतीय समाज आज भी स्त्री और पुरुष के परंपरागत दायरे में इस कदर बंधा है कि ट्रांसजेंडर एवं किन्नर को स्वीकार नहीं कर पाया है, इस आम चुनाव में 28 हजार से अधिक ट्रांसजेंडर मताधिकार का उपयोग करेंगे और चुनाव के लिहाज से यह छोटा समूह राजनीतिक दलों को अपनी समस्याओं पर ध्यान देने और घोषणापत्र में स्थान देने का आग्रह कर रहा है. आज स्थिति यह है कि सरकार के पास ट्रांसजेंडरों की सही संख्या के बारे आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, मंत्रालय के पास यह सूचना ( जनसंख्या के बारे में) उपलब्ध नहीं है. भारत के महापंजीयक के पास यह सूचना हो सकती है. पूर्व चुनाव आयुक्त जी वी जी कृष्णामूर्ति ने कहा कि करीब दो वर्ष पहले चुनाव आयोग ने पुरुष और महिला के अलावा एक और लैंगिक श्रेणी अन्य पेश की थी. इससे ट्रांसजेंडर समुदाय को अपनी लैंगिक पहचान से समझौता किये बिना ही मतदान करने या चुनाव में खड़ा होने की सुविधा मिल गयी है.
ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़े कार्यकर्ता पवन ढाल ने आरोप लगाया कि राजनीतिक दल और गलियारे में ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता है. इस समुदाय को एकजुटता का प्रदर्शन करना चाहिए. समुदाय को ऐसा आंदोलन चलाना चाहिए कि राजनीतिक दलों को इस वर्ग को सामाजिक तौर पर दरकिनार किये जाने के संदर्भ में स्थिति और विचार स्पष्ट करने को मजबूर होना पड़े. चुनाव आयोग के अनुसार, नौ मार्च 2014 तक 28,124 ट्रांसजेंडरों के नाम मतदाता सूची में शामिल हुए हैं.