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VIDEO: जानिये, जासूसी के नाम पर अब तक कितने भारतीयों की बलि चढ़ा चुका है पाकिस्तान…?

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नयी दिल्ली/लाहौर : जासूसी के नाम पर पाकिस्तान की ओर से महाराष्ट्र के निवासी कुलभूषण जाधव की फांसी दिया जाना कोई नयी बात नहीं है. इसके पहले भी पाकिस्तान ने तथाकथित जासूसी के नाम पर करीब दर्जनभर से अधिक भारतीयों की बलि चढ़ा चुका है. हालांकि, महाराष्ट्र के कुलदीप जाधव संभवत: पहले ऐसे भारतीय सेना के अधिकारी थे, जिन्हें पाकिस्तान ने जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था.

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बीबीसी में प्रकाशित खबर के अनुसार, पाकिस्तान में पिछले चार दशकों में एक दर्जन से अधिक ऐसे लोगों को सजा दी गयी है, जिन्हें कथित तौर पर भारतीय जासूस समझा जाता है. इनमें कुछ को मौत की सजा सुनायी गयी है, लेकिन उनकी सजा पर कभी अमल नहीं किया गया. अलबत्ता, उनमें कई लोग जेल में ही मार दिये गये.
कुलभूषण जाधव : पाकिस्तान ने मार्च, 2016 में कुलभूषण जाधव की गिरफ़्तारी की खबर के साथ कथित इकबालिया बयान वाला एक वीडियो भी जारी किया. वीडियो में कुलभूषण कथित तौर पर कहते हैं कि वे भारतीय नौसेना के सेवारत अधिकारी हैं और बलूचिस्तान में उनके आने का मकसद बलूच अलगाववादियों को भारत की मदद पहुंचाना था.

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मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, कुलभूषण जाधव ने पाकिस्तान में अपना नाम हुसैन मुबारक पटेल रखा था और वे बलूचिस्तान में ईरान की सीमा से दाखिल हुए थे. पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी के बाद ईरान से मांग की थी कि वह अपनी धरती को पाकिस्तान के खिलाफ इस्तेमाल न होने दे.
कुलभूषण जाधव शायद पहले ऐसे भारतीय ‘जासूस’ थे, जो पंजाब से बाहर पकड़े गये. अतीत में कई बार भारतीय नागरिक पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों से गिरफ्तार हुए हैं और उनमें से अधिकांश का संबंध भारतीय पंजाब से था.

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सरबजीत सिंह : सरबजीत सिंह को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने अगस्त, 1990 में गिरफ्तार किया था. भारत का कहना था कि नशे में धुत एक पंजाबी किसान खेतों में हल चलाते हुए गलती से सीमा पार कर गया था. पाकिस्तान ने सरबजीत सिंह के खिलाफ फैसलाबाद, मुल्तान और लाहौर में धमाकों के आरोप में मुकदमा चलाया और उन्हें मौत की सजा सुनायी गयी.
सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान जब भारत-पाकिस्तान के बीच समग्र वार्ता का सिलसिला जारी था, उस समय भारत में कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने सरबजीत सिंह की रिहाई की मुहिम चलायी. कई बार ऐसा लगा कि पाकिस्तान सरकार उन्हें रिहा कर देगी, लेकिन वार्ता की विफलता के बाद सरबजीत सिंह की रिहाई भी खटाई में पड़ गयी.
सरबजीत 2013 में कोट लखपत जेल में कैदियों के हमले में घायल हो गये और अस्पताल में उनकी मौत हो गयी. सरबजीत के शव को भारत के हवाले किया गया और भारत सरकार ने सरबजीत के पार्थिव शरीर का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया.

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कश्मीर सिंह : कश्मीर सिंह 1973 में पाकिस्तान में कथित जासूसी के आरोप में गिरफ्तार हुए. पाकिस्तान की जेलों में 35 साल बिताने के बाद उन्हें 2008 में रिहा किया गया, तो भारत में उनका शानदार स्वागत किया गया. कश्मीर सिंह की रिहाई में मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी की कोशिशों की बड़ी भूमिका थी. पाकिस्तान में मौजूदगी के दौरान कश्मीर सिंह हमेशा ये कहते रहे कि वह निर्दोष हैं, लेकिन जब वह भारतीय सरजमीं पर पहुंचे, तो उन्होंने कथित तौर पर स्वीकार किया कि वह जासूसी के लिए पाकिस्तान गये थे.
रवींद्र कौशिक : रवींद्र कौशिक एक ऐसे भारतीय नागरिक थे, जो 25 साल तक पाकिस्तान में रहे. रवींद्र कौशिक राजस्थान में पैदा हुए थे. जब उन्हें भारतीय कंपनियों ने भर्ती किया, तो वह एक थिएटर कलाकार थे. पाकिस्तान में दावा किया जाता है कि उर्दू भाषा और इस्लाम धर्म के बारे में विशेष शिक्षा के बाद उन्हें नबी अहमद शाकिर नाम से पाकिस्तान भेजा गया और वे बेहद कामयाबी के साथ कराची विश्वविद्यालय में दाखिला पाने में सफल रहे और सेना में रहे. रवींद्र कौशिक की गिरफ्तारी के बाद उन्हें पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में सोलह वर्ष तक रखा गया और 2001 में उनकी मौत जेल में हुई.

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रामराज : 2004 में कथित तौर पर लाहौर में पकड़े गये रामराज शायद एकमात्र ऐसे भारतीय व्यक्ति थे, जो पाकिस्तान पहुंचते ही गिरफ्तार हो गये. उन्हें छह साल कैद की सजा हुई और जब वह अपनी सज़ा काटकर वापस भारत पहुंचे, तो कहा जाता है कि भारतीय संस्थाओं ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया.
सुरजीत सिंह : सुरजीत सिंह ने 30 साल पाकिस्तानी जेलों में बिताये. सुरजीत सिंह को 2012 में लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहा किया गया. वह वापस भारत पहुंचे, तो कश्मीर सिंह के विपरीत उनका किसी ने स्वागत नहीं किया. सुरजीत सिंह दावा करते रहे कि वह पाकिस्तान में ‘रॉ’ के एजेंट बनकर गये थे, लेकिन किसी ने उनकी बात पर यक़ीन नहीं किया.
सुरजीत सिंह ने अपनी रिहाई के बाद बीबीसी से बात करते हुए भारत सरकार के व्यवहार पर दुख और ग़ुस्से का इजहार किया था.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार उनकी अनुपस्थिति में उनके परिवार को 150 रुपये के मासिक पेंशन का भुगतान करती थी. दावा किया गया कि ये इस बात का सबूत है कि वह ‘रॉ’ के एजेंट थे. ये भी दावा किया गया कि गिरफ्तारी से पहले वह 50 बार पाकिस्तान का दौरा कर चुके थे, जहां वे दस्तावेज हासिल कर कथित तौर पर उन्हें वापस ले जाते थे.
गुरबख्श राम : गुरबख्श राम को 2006 में 19 अन्य भारतीय कैदियों के साथ कोट लखपत जेल से रिहाई मिली. गुरबख्श राम पाकिस्तान में कथित तौर पर शौकत अली के नाम से जाने जाते थे. 18 साल तक पाकिस्तानी जेलों में रहे. पाकिस्तान का दावा है कि गुरबख्श राम को 1990 में उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वह कई साल पाकिस्तान में बिताने के बाद वापस भारत जा रहे थे, लेकिन पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों के हाथ लग गये.
‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, गुरबख्श राम ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि उन्हें वह सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं, जो कथित तौर पर सरबजीत के परिवार को मिली हैं. उनका दावा है कि उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से भी मुलाकात की, लेकिन उन्हें सरकारी नौकरी नहीं दी गयी है.
विनोद सानखी : विनोद सानखी 1977 में पाकिस्तान में गिरफ्तार हुए और 11 साल पाकिस्तानी जेलों में बिताने के बाद उन्हें 1988 में रिहा किया गया. विनोद सानखी ने भारत में पूर्व जासूसों की भलाई के लिए एक संगठन बनाया था.
अपनी कहानी बताते हुए उन्होंने दावा किया था कि वह टैक्सी ड्राइवर थे, जब उनकी मुलाकात एक भारतीय जासूस से हुई. उसने उन्हें सरकारी नौकरी की पेशकश की. उन्हें कथित तौर पर पाकिस्तान भेजा गया, लेकिन जब वह पाकिस्तानी जेल से रिहा हुए, तो दावे के अनुसार सरकार ने उनकी मदद नहीं की.

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