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उत्तराखंड हाइकोर्ट का ऐतिहासिक आदेश: गंगा व यमुना को मिले इनसानों जैसे अधिकार

नैनीताल : उत्तराखंड हाइकोर्ट ने गंगा व यमुना नदी को जीवित मानते हुए हुए केंद्र सरकार को इन्हें इनसानों की तरह अधिकार देने के आदेश दिये हैं. गंगा से निकलने वाली नहरों आदि संपत्ति का बंटवारा आठ सप्ताह में करने के आदेश भी दिया है. हाइकोर्ट ने पवित्र गंगा नदी को देश की पहली जीवित […]

नैनीताल : उत्तराखंड हाइकोर्ट ने गंगा व यमुना नदी को जीवित मानते हुए हुए केंद्र सरकार को इन्हें इनसानों की तरह अधिकार देने के आदेश दिये हैं. गंगा से निकलने वाली नहरों आदि संपत्ति का बंटवारा आठ सप्ताह में करने के आदेश भी दिया है. हाइकोर्ट ने पवित्र गंगा नदी को देश की पहली जीवित इकाई के रूप में पहचान देते हुए केंद्र को जल्द ही गंगा प्रबंधन बोर्ड बनाने के आदेश दिया है.

सोमवार को वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ में हरिद्वार के मो सलीम की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया. कोर्ट ने देहरादून के डीएम को 72 घंटे के भीतर शक्ति नहर ढकरानी को अतिक्रमण मुक्त करने के सख्त निर्देश जारी किये हैं. याचिका में मो सलीम ने कहा था कि दोनों राज्य यूपी व उत्तराखंड गंगा से जुड़ी नहरों की परिसंपत्ति का बंटवारा नहीं कर रहे हैं. कोर्ट के समक्ष केंद्र व राज्य सरकार के अधिकारी पेश हुए. उन्होंने गंगा संरक्षण को उठाये कदमों की जानकारी दी, यदि कोर्ट सरकारों के रुख से बेहद खफा थी.

गंगा किनारे घनी आबादी

उत्तराखंड में हिमालय पर्वत शृंखला के गंगोत्री ग्‍लेशियर से निकलने वाली गंगा देश के मैदानी क्षेत्रों को सींचते हुए सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती है. गंगा को स्वच्छ रखने के लिए कुछ समय पहले इलाहाबाद हाइकोर्ट ने सरकार को गंगा में पर्याप्त पानी छोड़ने व गंगा के आसपास पॉलीथिन को बंद करने का आदेश दिया था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

वैज्ञानिक चिंतित

वैज्ञानिकों के अनुसार गंगोत्री ग्लेशियर के माइक्रो क्लाइमेट में तेजी से परिवर्तन हो रहा है. इसकी सतह पर कार्बन व कचरे की काली परत जमा हो गयी है. गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए अभी तक तीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं. विडंबना है कि गंगा किनारे बसी आबादी ने भी गंगा को साफ-सुथरा रखने का कोई विशेष प्रयास नहीं किये.

सबसे पहले न्यूजीलैंड की नदी बनी जीवंत इकाई

दुनिया में पहली बार 16 मार्च को न्यूजीलैंड की संसद ने उत्तरी द्वीप में बहनेवाली वांगानुई नदी को जीवित संस्था के रूप में मान्यता देने वाला बिल पारित किया था. इसके साथ ही उसे इनसानों के समान अधिकार मिल गये थे. नदी को मान्यता दिलाने के लिए माओरी लोग लगभग 160 वर्षों से संघर्ष कर रहे थे.

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