नयी दिल्ली : बिहार, हिमाचल प्रदेशऔर उत्तराखंड में नील गाय, बंदर एवं जंगली सूअर की हत्या परआज सुप्रीम कोर्ट ने रोक से इनकार किया है. इससे पहले इन राज्यों में नील गाय, बंदर और जंगली सूअर को नुकसान पहुंचाने वाले पशु (वर्मिन) घोषित करने की केंद्र की तीन अधिसूचनाओं पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी थी. इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज यह फैसला सुनाया है.
उल्लेखनीय है कि केंद्र ने ये अधिसूचनाएं एक साल के लिए जारी की हैं. सुप्रीम कोर्ट मेंइनअधिसूचनाओं परअंतरिमरोक लगानेकी मांग करनेवाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया गयाथा. वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने याचिकाकर्ता गौरी मौलेखी की ओर से कहाथा कि केंद्र के पास इस तरह की अधिसूचना जारी करने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि नुकसान पहुंचाने वाले पशु घोषित कियेगये तीनों पशुओं को बड़े पैमाने पर मारने के लिए लोग रखे जा रहे हैं.
मालूम हो कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक दिसंबर, 2015 को जारी पहली अधिसूचना में बिहार के कुछ जिलों में नीलगाय और जंगली सूअर को एक साल के लिए नुकसान पहुंचाने वाला पशु घोषित किया गया. मंत्रालय की 3 फरवरी, 2016 को जारी दूसरी अधिसूचना में उत्तराखंड के कुछ जिलों में जंगली सुअर को एक साल के लिए नुकसान पहुंचाने वाला पशु घोषित किया गया. वहीं 24 मई, 2016 को जारी तीसरी अधिसूचना में हिमाचल प्रदेश के कुछ जिलों में रीसस मैकाक बंदर को नुकसान पहुंचाने वाला पशु घोषित किया गया.
याचिका में कहा गयाथा कि एक बार किसी पशु को वर्मिन घोषित किये जाने पर वह पशु, वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत उपलब्ध संरक्षण से वंचित हो जाता है. इसमें कहा गया, राज्य इस तरह के पशुओं के जीवन की रक्षा करने के लिए जिम्मेदार नहीं रहा है. इन पशुओं की अंधाधुंध हत्या का खाद्य आपूर्ति पर नुकसानदेह असर पड़ेगा और इससे पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा होगा.
याचिका के मुताबिक, इस कानून के प्रावधान सरकार को वन्यजीव की संरक्षित प्रजातियों को नुकसान पहुंचाने वाले पशु घोषित करने की जरूरत की बिना किसी पूछताछ या जांच के बगैर संरक्षित वन्यजीवों का नासमझी भरा संहार करने का अधिकार देते हैं. आगे कहा गया, इस कानून की धारा 62 सरकार को जानबूझकर एक मनमाना अधिकार देती है जिसके तहत उसे बिना दिमाग का इस्तेमाल किए मनमाने आदेश जारी करने की अनुमति होती है. धारा 62, संविधान की धारा 14 का पूर्ण उल्लंघन है.