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#DelhiFire: …और लोगों के जेहन में ताजा हो गयी उपहार अग्निकांड की याद, गयी थी 59 की जान

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी में रानी झांसी रोड पर अनाज मंडी स्थित एक फैक्ट्री में रविवार सुबह भीषण आग लगी जिसमें 43 लोगों की जान चली गयी. आग लगने की खबर जैसे ही फैली लोग अपनों को ढ़ूंढने हादसे वाली जगह पहुंचे. मृतकों में ज्यादातर मजदूर बताये जा रहे हैं जिनका संबंध यूपी-बिहार से […]

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी में रानी झांसी रोड पर अनाज मंडी स्थित एक फैक्ट्री में रविवार सुबह भीषण आग लगी जिसमें 43 लोगों की जान चली गयी. आग लगने की खबर जैसे ही फैली लोग अपनों को ढ़ूंढने हादसे वाली जगह पहुंचे. मृतकों में ज्यादातर मजदूर बताये जा रहे हैं जिनका संबंध यूपी-बिहार से हैं. बताया जा रहा है कि संकरी गलियों में स्थित पैकेजिंग और बैग बनाने वाली फैक्ट्री में शार्ट सर्किट के कारण आग लबी और धीरे-धीरे इसने पूरी इमारत को अपनी चपेट में ले लिया. दिल्ली पुलिस की मानें तो, इनमें से अधिकतर लोगों की मौत दम घुटने से हुई है.

आज की इस घटना ने 22 साल पहले हुई उपहार अग्निकांड की यादें लोगों के जेहन में ताजा कर दी जिसमें 59 लोगों की जान चली गयी थी. आपको बता दें कि दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा में बॉर्डर फिल्म देखने के दौरान भीषण आग लग गयी थी. उस वक्त बताया गया था कि शो के दौरान सिनेमाघर के ट्रांसफॉर्मर कक्ष में आग लग गयी थी, जो तेजी से सिनेमाहॉल के अन्य हिस्सों में फैल गयी जिसकी चपेट में कई लोग आ गये. बाद में घटना की जांच की गयी जिसमें इस बात का पता चला कि सिनेमाघर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे. इस हादसे में मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.

उपहार हादसे के बाद 22 जुलाई 1997 को सिनेमा के मालिक सुशील अंसल व उसके बेटे प्रणव अंसल को पुलिस ने मुंबई से गिरफ्तार किया. दुर्घटना के पीड़ित परिवारों के दबाव का ही असर था कि सरकार ने 24 जुलाई 1997 को इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस से सीबीआई को सौंप दी. 15 नवंबर 1997 की बात करें तो इस दिन सीबीआई ने सुशील अंसल, गोपाल अंसल सहित 16 लोगों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर की. इसके बाद 10 मार्च 1999 को सेशन कोर्ट में इस केस का ट्रायल शुरू हुआ.

27 फरवरी 2001 को अदालत ने सभी आरोपियों पर गैर इरादतन हत्या, लापरवाही व अन्य मामलों के तहत आरोप तय किये. गवाही का दौर खत्म हुआ जिसके बाद चार अप्रैल 2002 को दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत को मामले का जल्द निपटारा करने का आदेश दिया. 27 जनवरी 2003 को कोर्ट ने अंसल बंधुओं की उपहार सिनेमा को वापस सौंपे जाने की मांग को खारिज करने का काम किया…साथ ही ये भी कहा कि यह केस का अहम सबूत है और मामले के निपटारे तक सौंपा नहीं जाएगा.

24 अप्रैल 2003 को दिल्ली हाईकोर्ट ने 18 करोड़ रुपये का मुआवजा पीड़ितों के परिवार वालों को दिए जाने का आदेश जारी किया. 20 नवंबर 2007 को सेशन कोर्ट ने सुशील व गोपाल अंसल सहित 12 आरोपियों को दोषी करार दिया. इनको अदालत ने दो साल कैद की सजा सुनाई. इसके बाद चार जनवरी 2008 को हाईकोर्ट से अंसल बंधुओं व दो अन्य को जमानत मिल गयी.

11 सितंबर 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की जमानत रद्द कर दी जिसके बाद उन्हें तिहाड़ जेल भेजा गया. मामले की सुनवाई फिर हाईकोर्ट में हुई और 19 दिसंबर 2008 को हाईकोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को दो साल से घटाकर एक साल कर दिया और छह अन्य आरोपियों की सजा को बरकरार रखा.

उपहार कांड पीड़ित हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्‍ट नजर आये और उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. जिसके बाद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में भी अभियुक्तों की सजा को बढ़ाए जाने की मांग की. 19 अगस्त 2014 को न्यायमूर्ति अनिल आर दवे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने उपहार अग्निकांड में दोषी सुशील और गोपाल अंसल द्वारा जेल में बिताये गये वक्त को ही सजा करार दिया था.

पीठ ने दोनों भाई को तीन महीने के भीतर 30-30 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाकर उन्हें रिहा कर दिया था.

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