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इलाहाबाद हाइकोर्ट ने 2010 में 2.77 एकड़ जमीन बांटने का दिया था आदेश

दिल्‍ली : इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 30 सितंबर, 2010 को पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के आधार पर अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था. हाइकोर्ट ने अपने फैसले में पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को आधार माना था, जिसमें कहा गया था कि खुदाई के दौरान विवादित स्थल पर मंदिर के […]

दिल्‍ली : इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 30 सितंबर, 2010 को पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के आधार पर अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था. हाइकोर्ट ने अपने फैसले में पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को आधार माना था, जिसमें कहा गया था कि खुदाई के दौरान विवादित स्थल पर मंदिर के प्रमाण मिले थे.

इसके अलावा भगवान राम के जन्म होने की मान्यता को भी शामिल किया गया था. जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एसयू खान और जस्टिस डीवी शर्मा की बेंच ने 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था.
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि विवादित स्थल पर मुस्लिमों, हिंदुओं और निर्मोही अखाड़े का संयुक्त रूप से मालिकाना हक है. विवादित भूमि का नक्शा हाइकोर्ट द्वारा नियुक्त कमिश्नर शिवशंकर लाल ने तैयार किया था. हाइकोर्ट ने विवादित भूमि को तीन पक्षों के बीच बराबर हिस्सों में बांटते हुए आदेश दिया था कि तीन गुंबद वाले ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे वाला स्थान हिंदुओं का है. यहां वर्तमान में रामलला की मूर्ति है.
यह हिस्सा हिंदुओं को आवंटित किया गया. निर्मोही अखाड़े को राम चबूतरा और सीता रसोई सहित उसका हिस्सा दिया गया. हाइकोर्ट ने यह भी व्यवस्था बनायी कि पक्षकारों को उनके हिस्से की जमीन का आवंटन करते वक्त यदि मामूली संशोधन करने पड़े तो संबंधित पक्षकार के नुकसान की भरपाई सरकार द्वारा बगल में अधिगृहित की गयी जमीन के हिस्से से होगी.
जस्टिस खान और अग्रवाल ने कहा था कि इस स्थान पर मुसलमान नमाज पढ़ते थे, इसलिए उन्हें जमीन का तीसरा हिस्सा दिया जाये. केस से जुड़ी तीनों पार्टियों ने निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान ने यह फैसला मानने से इंकार कर दिया. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गयी थी.
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा था- यह जमीन का ऐसा टुकड़ा, जहां देवदूत भी पैर रखने से डरते हैं
जस्टिस एसयू खान ने 285 पेज के अपने फैसले में कहा था कि यह जमीन का छोटा-सा टुकड़ा है, जहां देवदूत भी पैर रखने से डरते हैं. कभी देवदूतों को इंसान के आगे झुकना पड़ता है तो कभी-कभी उनके सम्मान को न्याय संगत भी ठहराना पड़ता है. यह ऐसा ही एक मौका है. हम कामयाब हुए हैं या नाकाम? खुद के मामले में कोई जज यह नहीं कह सकता. हम वह फैसला दे रहे हैं, जिसके लिए पूरा देश सांस थामे बैठा है.
इलाहाबाद हाइकोर्ट से कितना अलग है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने पूरी 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा था. सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े को मालिकाना कब्जे से बाहर कर दिया. वहीं, शिया बार्ड की याचिका भी खारिज हो गयी.
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने जहां निर्मोही अखाड़े को सेवादार माना था वहीं सुप्रीम कोर्ट ने उसको यह हक भी नहीं दिया है. कोर्ट ने मंदिर निर्माण के लिए तीन माह में एक ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है, जिसमें निर्मोही अखाड़ा भी शामिल होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के उलट पूरी जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को दिया जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए राज्‍य सरकार से अलग पांच एकड़ की जमीन मुहैया करवाने का आदेश दिया.
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने माना था कि मंदिर का निर्माण मुगल शासक बाबर ने करवाया था. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद का निर्माण उसके सिपाहसलार मीर बाकी ने करवाया था.
हाइकोर्ट का फैसला जहां बहुमत के आधार पर सुनाया गया था वहीं सुप्रीम कोर्ट का फैसला एकमत से लिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इलाहाबाद हाइकोर्ट के उस आदेश को पलट दिया जिसके आधार पर सुन्नी वक्फ बोर्ड को विवादित जमीन के एक-तिहाई भाग का मालिकाना हक दिया गया था.

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