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अयोध्या फैसला : संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में रामलला को सौंपी विवादित जमीन, मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केंद्र को निर्देश दिया कि नयी मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाये. प्रधान न्यायाधीश रंजन […]

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केंद्र को निर्देश दिया कि नयी मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाये. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील एक सदी से भी अधिक पुराने इस विवाद का पटाक्षेप कर दिया.

पुनर्विचार के लिए याचिका दायर करेगा सुन्नी वक्फ बोर्ड

उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस निर्णय पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि वह इस पर पुनर्विचार के लिए याचिका दायर करेगा. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में कहा कि नयी मस्जिद का निर्माण ‘प्रमुख स्थल’ पर किया जाना चाहिए. साथ ही उस स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित किया जाना चाहिए जिसके प्रति हिंदुओं की यह आस्था है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था.

दूसरी सबसे लंबी सुनवाई

मामले में 40 दिन तक चली मैराथन सुनवाई शीर्ष अदालत के इतिहास में दूसरी सबसे लंबी सुनवाई रही. न्यायमूर्ति गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. इस स्थान पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी जिसे कारसेवकों ने छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था. विवादित स्थल गिराये जाने की घटना के बाद देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे. पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार राम लला विराजमान को सौंप दिया जाये, जो इस मामले में एक वादकारी हैं. हालांकि यह भूमि केंद्र सरकार के रिसीवर के कब्जे में ही रहेगी. इसने कहा, ‘‘हिंदुओं का यह विश्वास अविवादित है कि विवादित स्थल पर ही भगवान राम का जन्म हुआ था.’

बाहरी बरामदे पर हिंदुओं का कब्जा था, लेकिन मुसलमानों ने भी नहीं छोड़ा था कब्जा

न्यायालय ने कहा कि हिंदू यह साबित करने में सफल रहे हैं कि विवादित ढांचे के बाहरी बरामदे पर उनका कब्जा था और उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड अयोध्या विवाद में अपना मामला साबित करने में विफल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसले के मद्देनजर देशवासियों से शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील की तथा कहा कि फैसले को किसी की हार-जीत के रूप में नहीं देख जाना चाहिए. संविधान पीठ ने यह माना कि विवादित स्थल के बाहरी बरामदे में हिंदुओं द्वारा व्यापक रूप से पूजा-अर्चना की जाती रही है और साक्ष्यों से पता चलता है कि मस्जिद में शुक्रवार को मुस्लिम नमाज पढ़ते थे जो इस बात का सूचक है कि उन्होंने इस स्थान पर कब्जा छोड़ा नहीं था.

हिंदुओं की आस्था अविवादित

शीर्ष अदालत ने कहा कि मस्जिद में नमाज पढ़ने में बाधा डाले जाने के बावजूद साक्ष्य इस बात के सूचक है कि वहां नमाज पढ़ना बंद नहीं हुआ था. न्यायालय ने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण के साक्ष्यों को महज राय बताना इस संस्था के साथ अन्याय होगा. पीठ ने कहा कि विवादित ढांचे में ही भगवान राम का जन्म होने के बारे में हिन्दुओं की आस्था अविवादित है. यही नहीं, सीता रसोई, राम चबूतरा और भण्डार गृह की उपस्थिति इस स्थान के धार्मिक तथ्य की गवाह हैं. हालांकि, न्यायालय ने कहा कि सिर्फ आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक स्थापित नहीं किया जा सकता और ये विवाद का निबटारा करने में सूचक हो सकते हैं. संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी.

विवादित भूमि तीन हिस्सों में बांटना गलत था

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि तीन हिस्सों में बांटने का रास्ता अपनाकर गलत तरीके से मालिकाना हक के मामले का फैसला किया. न्यायालय ने कहा, ‘‘विवादित भूमि राजस्व रिकॉर्ड में सरकारी जमीन है.’ इसने कहा, ‘‘यह तथ्य कि नष्ट ढांचे के नीचे मंदिर था, भारतीय पुराततव सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट से स्थापित हुआ है और नीचे का ढांचा कोई इस्लामी ढांचा नहीं था.’ पीठ ने कहा, ‘‘राजनीतिक और आध्यात्मिक सामग्री के जरिए देश का इतिहास और संस्कृति सच की खोज का केंद्र रहे हैं, . इस अदालत से सच की खोज के मुद्दे पर निर्णय करने का अनुरोध किया गया जहां एक की स्वतंत्रता के दूसरे की स्वतंत्रता को प्रभावित करने और विधि के शासन के उल्लंघन से जुड़े दो सवाल थे.’राम लला विराजमान की ओर से बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने इस निर्णय पर प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘यह बहुत ही संतुलित है और यह जनता की जीत है.’ लेकिन इस वाद में एक पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड फैसले से संतुष्ट नहीं है और उसने कहा कि वह इस पर पुनर्विचार का अनुरोध करेगा.

पीएम मोदी ने की शांति की अपील

फैसले के मद्देनजर देश में संवेदनशील स्थानों पर कड़ी सुरक्षा किए जाने के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य कई नेताओं ने लोगों से शांति, एकता और सौहार्द बनाए रखने की अपील की. प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में कहा कि समर्पण राम के प्रति हो या रहीम के प्रति, यह अब हर किसी के लिए भारत के प्रति समर्पण को मजबूत करने का समय है. वहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सभी समुदायों से फैसले को स्वीकार करने और शांति बनाये रखने की अपील करते हुए कहा कि वे ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के प्रति प्रतिबद्ध रहें जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह निर्णय सामाजिक ताने बाने को सुदृढ़ करेगा. कांग्रेस ने भी कहा कि वह फैसले का सम्मान करती है और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में है.

विहिप ने की शांति बनाये रखने की अपील

विहिप के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि राम मंदिर निर्माण के लिए राम लला जन्म स्थान दिया जाना लाखों कार्यकर्ताओं के त्याग का सम्मान है. प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने भी लोगों से शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील की. हालांकि, उन्होंने निर्णय पर आश्चर्य भी व्यक्त किया. दारूल उलूम, देवबंद के मौजूदा मोहतमिम मुफ्ती अब्दुल कासिम नोमानी ने कहा, ‘‘मैं फैसला देखकर दंग रह गया. मेरा मानना है कि मस्जिद के पक्ष में पर्याप्त सबूत थे, लेकिन इन पर विचार नहीं किया गया.’ दिल्ली पुलिस के अनुसार निर्णय के मद्देनजर समूची राष्ट्रीय राजधानी में निषेधाज्ञा जारी की गई है. वहीं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक आपात अभियान केंद्र स्थापित किया गया है जिससे कि मीडिया, सोशल मीडिया और अन्य स्रोतों पर नजर रखी जा सके. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने वकीलों और पत्रकारों से खचाखच भरे न्यायालय कक्ष में इस बहुप्रतीक्षित फैसले के मुख्य अंश पढ़कर सुनाए और इसमें उन्हें 45 मिनट लगे.

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