नीमच (मध्यप्रदेश) : देश की आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी मध्य प्रदेश के नीमच जिला मुख्यालय से मात्र आठ किलोमीटर दूर पिपलिया हाड़ा गांव के लोग नाले पर पुलिया नहीं होने के कारण बारिश के दिनों में श्मशान घाट में शव को ले जाने के लिए कमर से अधिक पानी से होकर गुजरने के लिए मजबूर हैं.
ऐसी शर्मसार कर देने वाली तस्वीरें इस गांव की अनुसूचित जाति की बुजुर्ग भगवान लाल भील की मौत के बाद नौ अक्तूबर को एक बार फिर सामने आयी, क्योंकि इस गांव के लिए जो श्मशान घाट बनाया गया है, वहां जाने के रास्ते में भारी बारिश के कारण नाले में कमर से अधिक पानी भर गया था. इस गांव के किसान मोहन लाल नागदा ने बृहस्पतिवार को बताया, हम आजादी के इतने साल बाद भी बारिश के दिनों में अपनी जान को जोखिम में डालकर अर्थी को कमर से अधिक पानी में ले जाने के लिए बाध्य हैं.
उन्होंने कहा, श्मशान घाट में शव का अंतिम संस्कार करने के लिए हमें नाले से गुजरना पड़ता है. हम राज्य सरकार से पिछले कई सालों से इस नाले पर पुलिया या स्टॉप डैम बनाने की मांग कर रहे हैं, जिससे हमारी यह परेशानी दूर हो जाए. लेकिन अब तक हमारी यह मांग पूरी नहीं हो पायी है.
नागदा ने बताया कि इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली यह तस्वीर सरकारों के दावों की पोल खोलती है. इस मामले में कांग्रेस के नीमच जिले के कार्यकारी अध्यक्ष राजकुमार अहीर ने बताया कि यह पंचायत का जिम्मा है कि वहां की स्थिति ठीक करे. यह घटना शर्मनाक है.
उन्होंने कहा कि रतनगढ़ में एक शव को जलाने के लिए लकड़ी नहीं मिली तो उसे पानी में बहाया गया. एक बार एक दलित का शव जलाने के लिए लकड़ी नहीं मिली तो अर्थी घंटों शमशान में पड़ी रही. अहीर ने बताया कि वह इस मामले में कोई ठोस कदम उठाएंगे.
इसी बीच, नीमच जिले के कलेक्टर अजय गंगवार ने कहा, पंचायत की बड़ी लापरवाही है. मैं तत्काल जिला पंचायत के चीफ एग्जिक्यूटिव आॅफिसर (सीईओ) को निर्देश दे रहा हूं कि श्मशान जाने वाले रास्ते को सही कराएं. वहां कोई स्टॉप डैम या पुल बनवायें.