नयी दिल्ली : सरकारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक देशभर में महज 40 विशेष बच्चों को गोद लिया गया. यह आंकड़ा चौंकाने वाला तो है ही साथ ही यह ऐसे बच्चों के प्रति हमारे समाज के पूर्वाग्रह और माता-पिता की नकारात्मक प्रवृत्ति को भी उजागर करता है. यह आंकड़ा उस मानसिकता को भी उजागर करता है कि माता-पिता ऐसे विशेष देखभाल की आवश्यकता वाले बच्चों को गोद लेने से कतराते हैं.
सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) से मिली जानकारी के अनुसार 2018-19 में 3,374 में से महज 40 बच्चों को गोद लिया गया, जो इस संख्या का 1.12 प्रतिशत है. आरटीआई के माध्यम से पूछे गये के सवाल के जवाब में कारा ने कहा कि इन 40 बच्चों में 21 लड़के और 19 लड़कियां हैं. 34 बच्चे 0-5 साल की उम्र के हैं और सिर्फ छह पांच साल से अधिक की उम्र के बच्चे हैं.
अधिकारियों और विशेषज्ञों ने बताया कि अपने लिये एक अदद घर पाने में मुश्किल का सामना कर रहे इन बच्चों को अस्वीकार करने के पीछे कई कारण हैं जैसे जागरुकता की कमी, कथित धारणा और आर्थिक वजहें.विशेषज्ञों ने कहा, ‘विशेष आवश्यकता’ का मतलब है वैसे बच्चे जो मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम होते हैं और उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है.शारीरिक अक्षमता में बौनापन, गंभीर एकजिमा, पैरों में विकार जैसी अक्षमता शामिल है.मानसिक अक्षमता में बोलने में परेशानी और बैद्धिक अक्षमता शामिल है.
अधिकारियों के अनुसार देशभर में विभिन्न बाल केन्द्रों में 1,000 से अधिक विशेष बच्चे हैं, जो अपने लिये आसरा तलाश रहे हैं.दिल्ली में एक अनाथालय के अधीक्षक अनुज सिंह ने बताया कि बच्चे जैसे जैसे बड़े होते हैं उनके गोद लिये जाने की संभावना भी कम होती जाती है क्योंकि अधिकतर माता पिता किसी छोटी उम्र वाले विशेष बच्चों को गोद लेना चाहते हैं.कुछ मामलों में तो माता पिता बच्चों को लौटा भी देते हैं.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत में विशेष बच्चों को अपने लिये आसरा पाना बेहद मुश्किल है.एक अधिकारी ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘‘हमारी मानसिकता यह है कि हमें ऐसा बच्चा चाहिए जो स्वस्थ हो, उसका रंग साफ हो और उसे स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या नहीं हो.ऐसा नहीं होने की स्थिति में वे ऐसे बच्चों (विशेष आवश्यकता वाले बच्चों) को गोद नहीं लेना चाहते.’