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#Bhima-Koregaon : सुप्रीम कोर्ट ने कहा – रिमांड पर नहीं भेजे जायेंगे मानवाधिकार कार्यकर्ता, नजरबंद रहेंगे

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार सभी पांच मानवाधिकार कार्यकताओं को छह सितंबर तक घर में नजरबंद रखने का बुधवार को आदेश दिया. वहीं, कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर बढ़ते विवाद के बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने भी कदम उठाया और कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि मानक प्रक्रिया का […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार सभी पांच मानवाधिकार कार्यकताओं को छह सितंबर तक घर में नजरबंद रखने का बुधवार को आदेश दिया. वहीं, कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर बढ़ते विवाद के बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने भी कदम उठाया और कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि मानक प्रक्रिया का उचित पालन नहीं किया गया और यह मानवाधिकार उल्लंघन के बरारबर माना जा सकता है.

आयोग ने महाराष्ट्र पुलिस प्रमुख को नोटिस जारी किया और मामले में चार सप्ताह के भीतर तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी. पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि तेलगू के कवि वरवर राव, कार्यकर्ता वेर्नन गोन्साल्विज और अरुण फरेरा को बीती देर रात पुणे लाया गया. माओवादियों से संबंधों के संदेह में गिरफ्तार किये गये अन्य दो लोगों में ट्रेड यूनियन से जुड़ी कार्यकर्ता और पेशे से वकील सुधा भारद्वाज और कार्यकर्ता गौतम नवलखा शामिल हैं. भारद्वाज को फरीदाबाद से तथा नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था. भीमा-कोरेगांव मामले में हुई इन गिरफ्तारियों के विरोध में इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य कार्यकर्ताओं ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षतावाली पांच सदस्यीय पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस याचिका का उल्लेख कर इस पर बुधवार को ही सुनवाई करने का अनुरोध किया था. याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार सभी पांच मानवाधिकार कार्यकताओं को छह सितंबर तक घर में नजरबंद रखने का आदेश दिया. वहीं, समानांतर घटनाक्रम में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कार्यकर्ता गौतम नवलखा की गिरफ्तारी को चुनौती देनेवाली याचिका पर बुधवार को कहा कि उच्च न्यायालय ने कहा कि उसे सभी दस्तावेजों की अनुवादित प्रतियों का पूरा सेट नहीं दिया गया. उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र पुलिस से पूछा, गिरफ्तारी का आधार बतानेवाले दस्तावेजों का मराठी भाषा से अनुवाद क्यों नहीं किया गया और ये दस्तावेज नवलखा को क्यों नहीं दिये गये.

इसने महाराष्ट्र पुलिस से पूछा, आप दस्तावेज कब दे सकते हैं. यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है. अदालत ने मंगलवारको निर्देश दिया था कि उसके द्वारा मामले की सुनवाई किये जाने से पहले नवलखा को दिल्ली से बाहर न ले जाया जाये क्योंकि उनके खिलाफ लगाये गये आरोपों के दस्तावेज मराठी में हैं, इसलिए वे स्पष्ट नहीं हैं. नागरिक अधिकार समूह पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स द्वारा जारी बयान में नवलखा ने कहा, ‘यह पूरा मामला इस प्रतिशोधी और कायर सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ राजनीतिक चाल है जो भीमा कोरेगांव के असली दोषियों को बचाना चाहती है. इस तरह वह कश्मीर से लेकर केरल तक अपनी नाकामियों और घोटालों से ध्यान बंटाना चाहती है.’

साकेत अदालत ने नवलखा को ट्रांजिट रिमांड पर पुणे ले जाने की अनुमति दे दी थी जिस पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी. वहीं, भारद्वाज के मामले में फरीदाबाद के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने महाराष्ट्र पुलिस को ट्रांजिट रिमांड की अनुमति दे दी थी. हालांकि, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा ट्रांजिट रिमांड के आदेश पर तीन दिन का स्थगनादेश दिये जाने के बाद बुधवार की सुबह मजिस्ट्रेट को अपना आदेश वापस लेना पड़ा. अधिकारी ने बताया कि हैदराबाद में राव, मुंबई में गोन्साल्विज और फरेरा, फरीदाबाद में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और दिल्ली में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के आवास पर मंगलवार एक साथ छापेमारी की गयी.

अधिकारी ने बताया कि इसके बाद राव, भारद्वाज, फरेरा, गोन्साल्विज और नवलखा को भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (ए) के तहत गिरफ्तार किया गया जो विभिन्न समुदायों के बीच धर्म, नस्ल, स्थान, भाषा के आधार पर वैमनस्यता बढ़ाने और सद्भावना को नुकसान पहुंचाने के कृत्य से संबंधित है. पुलिस अधिकारी ने विस्तृत जानकारी दिये बिना बताया कि गिरफ्तार किये गये लोगों के खिलाफ उनकी ‘कथित नक्सल गतिविधियों’ को लेकर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम सहित भादंसं की कुछ अन्य धाराएं भी लगायी गयी हैं. पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम के सिलसिले में मुंबई, नागपुर और दिल्ली से जून में माओवादियों से कथित तौर पर करीबी संबंध रखने वाले पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया था. कार्यक्रम के बाद पुणे जिले के भीमा कोरेगांव में हिंसा हो गयी थी. कार्यक्रम के बाद दर्ज की गयी प्राथमिकी के मुताबिक, एल्गार परिषद कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण दिये गये थे जिससे भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़क गयी थी.

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