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#जम्मूकश्मीर : MHA की रिपोर्ट पर BJP ने PDP से वापस लिया समर्थन, वोहरा को चौथी बार कमान

बुधवार सुबह न्यूज एजेंसी एएनआइ ने खबर दी कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन को मंजूरी दे दी. ऐसे में एक बार फिर गवर्नर एनएन वोहरा के हाथ में सीधे तौर पर इस राज्य की कमान होगी. भाजपा के समर्थन वापस लेने से गिरी महबूबा मुफ्ती की सरकार श्रीनगर : पीडीपी-भाजपा […]


बुधवार सुबह न्यूज एजेंसी एएनआइ ने खबर दी कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन को मंजूरी दे दी. ऐसे में एक बार फिर गवर्नर एनएन वोहरा के हाथ में सीधे तौर पर इस राज्य की कमान होगी.

भाजपा के समर्थन वापस लेने से गिरी महबूबा मुफ्ती की सरकार

श्रीनगर : पीडीपी-भाजपा गठबंधन के टूटने के बाद जम्मू-कश्मीर में पिछले 40 साल में आठवीं बार राज्यपाल शासन लागू होने की संभावना प्रबल हो गयी है.अगर ऐसा होता है, तो एनएन वोहरा के राज्यपाल रहते यह चौथा मौका होगा, जब राज्य में केंद्र का शासन होगा. पूर्व नौकरशाह वोहरा 25 जून, 2008 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने थे. पीडीपी के साथ जम्मू-कश्मीर में करीब तीन साल गठबंधन सरकार में रहने के बाद भाजपा ने सरकार से समर्थन वापसी की मंगलवार को घोषणा की. भाजपा ने कहा कि राज्य में बढ़ते कट्टरपंथ और आतंकवाद के चलते सरकार में बने रहना मुश्किल हो गया था.

विडंबना यह भी है कि निवर्तमान मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के दिवंगत पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की उन राजनीतिक घटनाक्रमों में प्रमुख भूमिका थी, जिस कारण राज्य में सात बार राज्यपाल शासन लागू हुआ. पिछली बार मुफ्ती सईद के निधन के बाद आठ जनवरी, 2016 को जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल का शासन लागू हुआ था.

उस दौरान पीडीपी और भाजपा ने कुछ समय के लिए सरकार गठन को टालने का निर्णय किया था. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से संस्तुति मिलने पर जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 92 को लागू करते हुए वोहरा ने राज्य में राज्यपाल शासन लगाया था. जम्मू-कश्मीर में मार्च 1977 को पहली बार राज्यपाल शासन लागू हुआ था. उस समय एलके झा राज्यपाल थे. सईद की अगुवाई वाली राज्य कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख महमूद अब्दुल्ला की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था.

मार्च, 1986 में एक बार फिर सईद के गुलाम मोहम्मद शाह की अल्पमत की सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण राज्य में दूसरी बार राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था.

भाजपा बोली : राज्य में बढ़ते कट्टरपंथ व आतंक के चलते सरकार में बने रहना मुश्किल हो गया था

राज्य में राष्ट्रपति नहीं राज्यपाल शासन क्यों

देश के किसी भी राज्य में संविधान की धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 92 के मुताबिक, राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी से छह महीने के लिए राज्यपाल शासन लगाया जा सकता है.

राज्यपाल शासन के दौरान या तो विधानसभा को निलंबित कर दिया जाता है या उसे भंग कर दिया जाता है. राज्यपाल शासन लगने के छह महीने के भीतर अगर राज्य में संवैधानिक तंत्र दोबारा बहाल नहीं हो पाता है, तो भारत के संविधान की धारा 356 के तहत जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के समय को बढ़ा दिया जाता है और यह राष्ट्रपति शासन में तब्दील हो जाता है.

कब-कब लगा राज्यपाल शासन

वर्ष अवधि

मार्च, 1977 105

मार्च, 1986 246

वर्ष अवधि

जनवरी, 1990 264

अक्तूबर, 2002 15

वर्ष अवधि

जुलाई, 2008 178

जनवरी, 2015 51

जनवरी, 2016 87

गृह मंत्री की रिपोर्ट पर भाजपा ने सरकार से हटने का लिया फैसला

सूत्रों के अनुसार, महबूबा सरकार से समर्थन वापसी की रणनीति 12 दिन पहले ही बनने लगी थी. दरअसल, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घाटी में सुरक्षा हालातों की समीक्षा के दौरान ही राजनीतिक हालात की भी समीक्षा की थी. इस दौरान सिंह ने अमरनाथ यात्रा को लेकर सुरक्षा एजेंसियों से रिपोर्ट भी ली थी. साथ ही भाजपा के मंत्रियों ने भी महबूबा सरकार को लेकर उन्हें अपना फीडबैक दिया था.

सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनाथ को यहां के हालात की ग्राउंड रिपोर्ट जांचने के लिए भेजा था, जिसके क्रम में राजनाथ ने तीनों संभागों जम्मू, श्रीनगर और लद्दाख क्षेत्रों के पार्टी नेताओं से मुलाकात की थी. राजनाथ ने मोदी को इसकी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसके बाद पार्टी ने यह फैसला लिया.

भाजपा और पीडीपी गठबंधन ने जम्मू-कश्मीर को आग में झोंक दिया, जिसमें निर्दोष लोग और हमारे बहादुर जवानों की जान चली गयी. इससे भारत को सामरिक रूप से नुकसान हुआ है और संप्रग सरकार की वर्षों की कड़ी मेहनत पर पानी फिर गया. राज्यपाल शासन में नुकसान जारी रहेगा. अहंकार, अक्षमता और घृणा हमेशा विफल होती है.

राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष

ऐसा गठबंधन नहीं होना चाहिए था. इन दोनों दलों में कोई समानता नहीं है. उनका सत्ता के लिए साथ आना अवसरवादिता था.

सीताराम येचुरी, महासचिव, माकपा

यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण कदम है, जो राज्यपाल शासन की तरफ लेकर जायेगा. मेरी राय है कि इससे ज्यादा दमनकारी रवैये की भूमिका तैयार होगी.

असदुद्दीन ओवैसी, एआइएमआइएम अध्यक्ष

बर्बाद करने के बाद भाजपा गठबंधन से बाहर हो गयी. क्या भाजपा ने हमसे यह नहीं कहा था कि नोटबंदी से कश्मीर में आतंकवाद की कमर टूट गयी? तब क्या हुआ?

अरविंद केजरीवाल, सीएम, दिल्ली

हमने पहले ही कहा था पीडीपी-भाजपा का साथ आकर सरकार बनाना अप्राकृतिक और अनैतिक है. यह ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा.

संजय राउत, शिवसेना

2015 से अब तक 288 जवान शहीद

वर्ष घटनाएं आतंकी ढेर जवान शहीद नागरिक मरे पाक ने दागे गोले

2018 600 88 45 30 1105

2017 300 218 122 33 900

2016 322 150 82 15 437

2015 208 108 39 17 562

आतंकियों व पत्थरबाजों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की तैयारी

जानकारों का मानना है कि राज्य में राज्यपाल शासन लगने के साथ ही आतंकियों और पत्थरबाजों के खिलाफ कार्रवाई तेज हो जायेगी. सूत्रों के मुताबिक, कश्मीर में अमरनाथ यात्रा से पहले आतंकियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया जा सकता है. इसके लिए सेना की राष्ट्रीय राइफल्स और जम्मू-कश्मीर पुलिस अभियान चलाने की तैयारी कर रही है.

माना जा रहा है कि सेना के जवान औरंगजेब और पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की वारदातों के बाद सेना दक्षिण कश्मीर में बड़े ऑपरेशन को अंजाम दे सकती है. वहीं, पत्थरबाजों पर कार्रवाई की जा सकती है. अगर अतीत पर गौर करें, तो 2016 की हिंसा के दौरान कश्मीर में भाजपा-पीडीपी सरकार के दौरान नौ हजार से अधिक पत्थरबाजों पर केस दर्ज हुए थे.

भाजपा-पीडीपी सरकार : राजनीतिक घटनाक्रम

28 दिसंबर, 2014 : विधानसभा चुनाव का रिजल्ट. त्रिशंकु विधानसभा

01 मार्च, 2015 : मुफ्ती मोहम्मद सईद भाजपा के समर्थन से सीएम बने

07 जनवरी, 2016 : मुफ्ती सईद का निधन

08 जनवरी, 2016 : राज्यपाल शासन लागू

22 मार्च : महबूबा मुफ्ती ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की

04 अप्रैल : महबूबा मुफ्ती राज्य की पहली महिला सीएम बनी

08 जुलाई : आतंकी बुरहान वानी ढेर. पीडीपी- भाजपा में मतभेद

09 मई, 2018 : महबूबा मुफ्ती ने सर्वदलीय बैठक बुलायी

17 मई : केंद्रीय गृह मंत्री ने एकतरफ सीजफायर का एलान किया

18 जून : भाजपा आलाकमान ने मंत्रियों को दिल्ली बुलाया

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