नयी दिल्ली : मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब और मुंबई धमाके के आरोपी याकूब मेमन को फांसी के तखते तक पहुंचाने वाली मीरा चढ्ढा बोरवांकर शनिवार को पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के महानिदेशक के पद से रिटायर्ड हो गयीं. रिटायर्ड होने के बाद उन्होंने अजमल कसाब और मेनन के फांसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें अंग्रेजी अखबार द संडे एक्स्प्रेस से शेयर की. आपको बता दें कि 2012 में अजमल कसाब और 2015 में याकूब मेमन को फांसी दी गयी थी.
मीरा चड्ढा बोरवांकर पहली महिला है, जो 150 वर्ष के इतिहास में मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के पद पर अपनी सेवा दी. बोरवंकर ने 36 साल के अपने कैरियर के दो सबसे चुनौतीपूर्ण और सबसे चार्चित मामलों के बारें में बात की, जिसमें – 2012 में अजमल कसाब और 2015 में याकूब मेमन की फांसी है. अजमल कसाब के फांसी के संबंध में बोरवांकर ने बताया कि कसाब को फांसी दिये जाने की जानकारी गुप्त रखी गयी थी. उसे फंदे पर लटकाने से पहले यह बात किसी तक न पहुंचे इसकी जिम्मेदारी हमारे कंधों पर थी. वहीं याकूब मेमन के मामले में पूरे देश की नजर उसे दी जाने वाली फांसी पर थी. उस मामले में अदालत के फैसले को प्रभावी ढ़ंग से लागू कराने की जिम्मेदारी हम सब की थी.
आगे बोरवांकर ने बताया कि अजमल कसाब को फांसी दिये जाने की बात को गुप्त रखना हमारे लिये किसी चुनौती से कम नहीं थी. इस फांसी को लेकर पूर्व उपमुख्यमंत्री और तत्कालीन गृह मंत्री आरआर पाटिल काफी उत्साहित थे. कोर्ट की ओर से फांसी की सजा पर हस्ताक्षर करने से लेकर मुंबई के आर्थर रोड जेल से पुणे में यरवदा सेंट्रल जेल तक सभी तैयारियां व्यापक रूप से पहले ही कर ली गयी थी. उन्होंने बताया कि कसाब के मामले में कोई गलती न हो, मीडिया को भनक न लगे इसलिए मैं अपने गनर के मोटरसाइकिल पर बैठकर जेल तक पहुंची थी. मुझे कोई पहचान न ले इसलिए मैने वर्दी पर एक रंगीन जैकेट डाल लिया था. एसपी और डीआईजी भी आधिकारिक वाहनों के बिना पहुंचे थे और हम उस रात जेल में रहे जहां कसाब को फांसी देनी थी.
जल्लाद नहीं कांस्टेबल ने दिया याकूब को फांसी, कसाब को भी लटकाया था फंदे पर
कसाब के अंतिम क्षणों के बारे में पूछे जाने पर मीरा ने कहा कि अंतिम शब्द और इच्छाओं पर सभी मीडिया रिपोर्ट्स सिर्फ अटकलें मात्र थीं. मुझे नहीं लगता कि कसाब समझ पा रहा था कि उसके साथ क्या होने जा रहा है. वह परेशान था. हम उसे 21 नवंबर की सुबह फांसी के लिए ले गये थे. नियमों के अनुसार फांसी के वक्त वहां जेल डॉक्टर और एक मजिस्ट्रेट मौजूद थे. इस मामले में पुणे कलेक्टर भी उपस्थित थे. फांसी के बाद हमने उसके धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किया.
मीरा से जब सवाल किया गया कि क्या कोई कसाब का शव मांगने आया था? इस पर उन्होंने कहा कि कोई भी नहीं आया भारत सरकार ने पाकिस्तान के उच्चायोग को फांसी के बारे में बताया था, लेकिन उन्होंने जवाब दिया कि वह उनके देश का निवासी नहीं हैं, इसलिए उनका उसके साथ कोई संबंध नहीं है. करीब साढ़े चार साल बाद, महाराष्ट्र के एडीजी (जेल) बोरवांकर को इसी तरह के ऑपरेशन के लिए फिर से कॉल किया गया. इस बार का मामला मुंबई विस्फोट के मामले में दोषी ठहराये गये याकूब मेमन की फांसी की थी. बोरवांकर ने बताया कि याकूब मेमन के मामले पर पूरे देश की नजर टिकी हुई थी. मामले में अदालत के फैसले को प्रभावी ढ़ंग से लागू कराने की जिम्मेदारी हमरी थी.
बोरवांकर ने बताया कि मेनन को जब मैं फांसी के लिए नागपुर सेंट्रल जेल गयी तो उसने मुझे बताया कि मैडम चिंता मत करो, कुछ भी नहीं होने वाला है, मुझे कुछ नहीं होने वाला है. उन्होंने कहा कि मैं उनके शब्दों पर चकित थी. मेमन के मामले को याद करते हुए बोरवांकर ने कहा- मेनन का परिवार बहुत सक्रिय था. वह हर हाल में उसे छुड़ाना चाहता था.

