Sambalpur News :
पश्चिमी ओडिशा के प्रख्यात गीतकार और नाटककार पद्मश्री विनोद पशायत (91) का बुधवार को निधन हो गया. संबलपुर सेन पार्क स्थित अपने आवास पर सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली. बलांगीर के टिकरापाड़ा में जन्मे विनोद ने स्कूल छोड़कर अपने पिता के सैलून में काम करना शुरू कर दिया था. उस समय उन्होंने बलांगीर की प्रसिद्ध रामजी नाटक पार्टी में बाल कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरू किया था. 19 वर्ष की आयु में वे आजीविका की तलाश में संबलपुर चले आये और शहर के मध्य स्थित बैद्यनाथ चौक में अपना सैलून शुरू किया. गुरु अरुण प्रसन्न सेठ से प्रेरित होकर उन्होंने संबलपुरी भाषा में लेखन शुरू किया. धीरे-धीरे उनका सैलून साहित्य और संस्कृति प्रेमियों का मिलन स्थल बन गया. कई लोगों के आगमन से उनके सैलून में साहित्यिक चर्चाएं होने लगीं. संबलपुरी भाषा के जनक कहे जाने वाले गुरु सत्य नारायण बोहिदार ने एक बार कहा था, ‘विनोद पसायत का सैलून सरस्वती का मंदिर है. विनोद पशायत ने सनद, आदिवासी, पर स्त्री, चीनी आदि जैसी ओड़िया फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं. उन्होंने ‘हे कृष्णा हे कृष्णा बाली जान मोरो जीवन, मां’ थानु बड़ की ली, ई ननी सुलोचना, लवंगलता मोरो गजमुकुता, भट्टरती झुमरा सुरे, लीती उडे फुरुपुर, रथतार चाका चाले घिडी घिडी, सरब सहेनी मा गो जैसे सैकड़ों लोक गीत दिए. तुई, बोइले राधिका सुंगो दुति’ ‘ताहर बा’, जी नैन मीर, छुटकुचुता जैसे व्यंग्य नाटक आज भी सबके जेहन में है. 2024 में केंद्र सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया था. इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार समेत कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. इतनी उम्र हो जाने के बाद भी उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा था.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

