जमुआ-देवघर मार्ग पर मिर्जागंज-जगन्नाथडीह में स्थित जलीय सूर्य मंदिर को यहां के लोग झारखंड का गौरव मानते हैं. यह मंदिर आस्था के साथ-साथ अपने उत्कृष्ट बनावट की वजह से भी आकर्षण के केंद्र में बना रहता है. मुख्य सड़क किनारे तालाब के बीच स्थित इस मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए 60 फीट लंबे आरसीसी पुल से गुजरना पड़ता है. दिल्ली के लोट्स टेंपल की तर्ज पर निर्मित वास्तुकला की अनुपम धरोहर इस मंदिर की कल्पना एक कमलपुष्प रूपी रथ के रूप में की गयी है. गर्भगृह में रथ पर सवार भगवान भास्कर के साथ-साथ मां गायत्री, हनुमान, शिव, सीताराम, राधा-कृष्ण, दुर्गा, गणेश समेत अन्य देवी-देवताओं की संगमरमर की नयनाभिराम मूर्तियां विराजमान हैं. छह द्वार युक्त मंदिर को कमलपुष्प के समान छह क्षैतिज वाह्य पंखुड़ियों के बीच कली के रूप में बनाया गया है. मंदिर के चारों ओर कोणार्क मंदिर की तर्ज पर रथ के छह पहिये बने हैं तथा सिंह द्वार पर इंद्रधनुष सा सात अलग-अलग रंगों के सात गम्य मुद्रा में अश्व बनाकर लगाम सारथी बने अरुण के हाथों में थमाया गया है.
सफाई का रखा जाता है विशेष ख्याल
खासकर छठ पर्व के अवसर पर यहां सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता है. तालाब के चारों ओर घाटों की सफाई और लाइट की विशेष व्यवस्था की जाती है. मिर्जागंज-जगन्नाथडीह मुख्य मार्ग को भी सजाया जाता है. जलीय सूर्यमंदिर समिति के अध्यक्ष सदानंद प्रसाद साहू ने कहा कि इस मंदिर में विशेष कर छठ पूजा के दौरान झारखंड के अलावे अन्य प्रदेशों से छठ व्रती अर्घ्य देने आते हैं. नवादा से एक भक्त सुशील देवी हर वर्ष आती हैं. इनके रहने के लिए समिति ने सभी तरह की सुविधा दे रखी है. कोडरमा, रांची, पटना, यूपी से भी व्रती यहां आते हैं.
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