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झारखंड के मौसम से इस साल खुश नहीं हैं परदेसी परिंदे, पढ़ें ये खास रिपोर्ट

-जमशेदपुर व आसपास के इलाकों में घट रही है प्रवासी पक्षियों की संख्याहिमालय की तराई और ठंडे देशों के परिंदों को झारखंड के जमशेदपुर और आसपास के मनोहारी दृश्य हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं. हर साल यहां बड़ी संख्या में परदेसी परिंदे भोजन-पानी की तलाश में हजारों किलोमीटर का सफर तय कर आते हैं. […]

-जमशेदपुर व आसपास के इलाकों में घट रही है प्रवासी पक्षियों की संख्या
हिमालय की तराई और ठंडे देशों के परिंदों को झारखंड के जमशेदपुर और आसपास के मनोहारी दृश्य हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं. हर साल यहां बड़ी संख्या में परदेसी परिंदे भोजन-पानी की तलाश में हजारों किलोमीटर का सफर तय कर आते हैं. इनकी खासियत है कि एक बार जिस जगह पर आते हैं, दोबारा उसी स्थान पर निश्चित समय पर आ जाते हैं. इस बार भी ये परदेसी मेहमान अपने शहर और आसपास के इलाके में डेरा जमा चुके हैं. विडंबना है कि पिछले वर्षों के मुकाबले इसकी संख्या कम होती जा रही है.

प्रदूषण का हुआ है असर
कुछ साल पहले तक ये जलीय पक्षी जमशेदपुर के प्राय: हर तालाब में दिखायी देते थे. लेकिन अब ये कम दिखायी देते हैं. को-ऑपरेटिव कॉलेज के जंतु विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो अमर कुमार जमशेदपुर और आसपास के इलाके में प्रवासी पक्षियों की कम होती संख्या पर चिंता जताते हैं. वे बताते हैं कि 50 साल पहले और अभी के वातावरण में काफी बदलाव आ गया है. पहले के मुकाबले यहां का वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ा है. इसका असर इन पक्षियों पर पड़ता है. ह्यूमन एक्टिविटी बढ़ना भी प्रमुख कारण है.

पर्यावरण संतुलन के लिए इनका आना अच्छा है

ये हमारे लिए परदेसी मेहमान की तरह हैं. इनके आने से जलाशयों की रौनक बढ़ जाती है. इन्हें देखने लोग दूर-दूर से आते हैं. इनका महत्व इतना भर ही नहीं है. ये कीड़े-मकोड़े व अन्य छोटे जलीय जीवों को खाकर इनकी संख्या कम करते हैं. इस तरह पर्यावरण को संतुलित रखने में सहायक होते हैं. इनके आने का इथिकल वैल्यू भी है. यह दर्शाता है कि यहां का वातावरण स्वस्थ और अनुकूल है.

पसंद नहीं है व्यवधान

साइबेरियन पक्षी पर अध्ययन करने वाले और को-ऑपरेटिव कॉलेज में जंतु विज्ञान के विभागाध्यक्ष रहे प्रो केके शर्मा के मुताबिक जब से जुबिली पार्क में बोटिंग शुरू हुई है, तब से इन प्रवासी पक्षियों का यहां आना कम हो गया है. अन्य इलाके जहां इन्हें व्यवधान महसूस होता है, वहां से दूर चले जाते हैं. इन पक्षियों का स्वभाव होता है कि किसी तरह का खतरा होने पर वहां से हट जाते हैं, अपना शिकार नहीं करते.

दूर देश के पक्षी
ये पक्षी ट्रांस हिमालयन एरिया, यूरोप के कुछ हिस्से, बलूचिस्तान, रूस के कुछ भाग, साइबेरिया व कश्मीर रीजन से आते हैं. सिंहभूम रीजन में ये पक्षी प्राय: सितंबर के दूसरे सप्ताह में आना शुरू कर देते हैं. कई बार इन्हें अगस्त के अंतिम सप्ताह में भी इन इलाके में देखा गया है. ये यहां करीब छह महीने रहते हैं. गर्मी शुरू होने पर लौट जाते हैं.

यहां दिखते हैं: जुबिली पार्क लेक, टिस्को प्लांट लेक (यहां कई प्रजाति के प्रवासी पक्षी दिखायी देते हैं), ब्ल्यू स्कोप (नॉर्थ एग्रिको एरिया), डिमना लेक, स्वर्णरेखा तट.

23 प्रजाति के पक्षी: वैग टेल यानी खंजन चिड़िया, रेड क्रेसटेड पोचार्ड या लालसर, नॉर्दन पिनटेल, डार्टर, जाकाना, स्पॉटेड पाइपर, गड्डवाल, लार्ज ग्रेब सहित 22-23 तरह के पक्षी.

साइबेरियन बर्ड्स भारत नहीं आते. पहले वे बलूचिस्तान के रास्ते भारत आते थे. लेकिन रेअर बर्ड्स देखकर बलूचिस्तान में इसका शिकार होने लगा. इसलिए साइबेरियन बर्ड्स ने रूट बदल दिया. उसके माइग्रेटरी स्टेशन बदल गये. बर्ड्स का दो तरह से माइग्रेशन होता है. डिस्टेंट माइग्रेशन, एेसे बर्ड्स जो बहुत दूर-दराज से आते हैं. दूसरा, लोकल या रिजनल माइग्रेंट, ऐसे बर्ड्स जो रिजनल लेवल पर माइग्रेंट करते हैं. यह माइग्रेशन पहाड़ से नीचे की तरफ भी हो सकता है.
-प्रो केके शर्मा, पूर्व विभागाध्यक्ष प्राणी विज्ञान, को-ऑपरेटिव कॉलेज

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