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बच्चों के मूड को पहचानना है तो उनसे दोस्ती कीजिए
बच्चों की बढ़ती उम्र के साथ उनके प्रति आपकी जिम्मेवारियां बढ़ती जाती हैं. खाने से लेकर पढ़ाई, उनका कैरियर, उनका भविष्य, उनके संस्कार, आदतें सब पर आपकी नजर होनी चाहिए. अगर आप इन सभी बातों पर नजर रखते हैं, उनके साथ रहते हैं, उनको सही तरह से गाइड करते हैं, उनके हर प्रश्न का सही […]
बच्चों की बढ़ती उम्र के साथ उनके प्रति आपकी जिम्मेवारियां बढ़ती जाती हैं. खाने से लेकर पढ़ाई, उनका कैरियर, उनका भविष्य, उनके संस्कार, आदतें सब पर आपकी नजर होनी चाहिए. अगर आप इन सभी बातों पर नजर रखते हैं, उनके साथ रहते हैं, उनको सही तरह से गाइड करते हैं, उनके हर प्रश्न का सही जवाब देते हैं, सबसे बड़ी बात आप अपने बच्चों का मूड समझते हैं, तो उन्हें कोई परेशानी नहीं हो पायेगी, क्योंकि बच्चों और उनकी परेशानी के बीच आपका प्यार, समय और आपकी सतर्कता खड़ी होगी. आप खुद जान जायेंगे कि वे किसी परेशानी में हैं. इसके लिए बस एक ही बात की दरकार है और वह है आपका समय.
हम अक्सर कहते हैं कि अब बच्चे बड़े हो गये, समझदार हो गये, हमने उन्हें भले-बुरे की पहचान करना सिखा दिया, अब उन्हें हमारा हाथ पकड़ कर चलने की जरूरत नहीं. मगर उनके हर कदम पर नजर रखना हमारी जिम्मेवारी है.
कम-से-कम जब तक वे अपने पैरों पर खड़े नहीं होते, क्योंकि जब तक जॉब नहीं लगती तब तक वे किस मन: स्थिति से गुजर रहे हैं, किस तरह का तनाव है, नौकरी के लिए किसी अनुचित व्यक्ति के संपर्क में तो नहीं. जॉब न लगने से कहीं डिप्रेशन में तो नहीं या मनपसंद जॉब के न मिलने से उसके दिल में किसी भी तरह जॉब पाने की बात तो घर नहीं करने लगी? क्योंकि बिना सोचे-समझे एक कदम बच्चों को किस परेशानी में डाल देगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता.
जॉब लगने के बाद भी बच्चों पर किस तरह का दवाब है, बेटियों के ऑफिस का माहौल कैसा है? कहीं वे किसी परेशानी में तो नहीं पड़ जायेंगी. बच्चों को हम इस काबिल बनाते हैं कि वे बेहतर निर्णय कर सकें, मगर उनके फैसलों पर आपको भी गौर करना चाहिए. बच्चे भी अक्सर कहते हैं कि अब हम बड़े हो गये. अपना भला-बुरा खूब समझते हैं.
अपने फैसले खुद कर सकते हैं. ठीक है आप उन्हें फैसले लेने दीजिए, लेकिन अगर आपको कहीं कुछ खटकता है तो आप उन्हें उस फैसले के अच्छे-बुरे प्रभावों के बारे में एक बार जरूर बता दें, उन्हें सतर्क कर दें. इन बातों का ख्याल तो आपको रखना होगा. ये तो उनके जॉब लगने के बाद की बात है, मगर जब तक वे पढ़ाई कर रहे हैं तब तक तो आपको उनको सही दिशा दिखानी ही होगी. हर कदम पर आपकी जरूरत पड़ेगी, तब तक किसी वजह से नंबर कम आने पर, किसी मित्र की नजदीकी या अलगाव के कारण वह अवसाद में तो नहीं जा रहा. उसके अंदर किसी तरह का कॉम्प्लेक्स तो नहीं आ रहा है?
कहीं कॉलेज में टीचर्स, सीनियर या दोस्तों की वजह से तो वे परेशान नहीं. आपको उनकी हर बात पर चौकन्ना होना होगा. उनके बदले हुए मूड को पहचानना होगा. अगर आपको कुछ बदलाव लगते हैं, तो उनसे बात करनी होगी. इसके लिए जरूरी है कि आप उनके साथ फ्रैंडली हों. वर्ना वे आपसे बात करने में झिझकेगे. उन्हें यह भी लग सकता है कि मां-पापा को पता चलेगा तो वे गुस्सा करेंगे ? पता नहीं किस तरह की सजा दें? अगर ये बातें उनके दिमाग में आ गयी तो वे आपको कभी भी अपनी मन की बात या अपनी परेशानी नहीं बतायेंगे.
वे आपको तभी बतायेंगे जब उन्हें यह भरोसा होगा कि कुछ भी होगा मां-पापा हमारी मदद करेंगे. हमारी परेशानी समझेंगे. कुछ घर ऐसे होते हैं जिनके बच्चे अपने पिता से थरथर कांपते हैं. हमारे समय में मेरी क्लास में भी ऐसे बच्चे थे जो घर तक बात पहुंचने से डरते थे. एक बार हमें हमारी एक दोस्त की बर्थडे पार्टी में जाना था, तब में नाइंथ में थी. मेरी एक मित्र ने कहा था- ”यार, मेरे पापा तो अमरीश पुरी हैं.
कहीं आओ-जाओ तो प्रॉब्लम, किसी से हंसकर बात करो तो बिल्ले की तरह आंखें निकाल लेते हैं. पैसे मांगो तो घूरकर देखते हैं. वे जैसे ही आते हैं हमारे घर में तो कर्फ्यू लग जाता है.
कैसे बात करूंगी? कहां की पार्टी, किसका गिफ्ट?” हमलोग मिलकर अपनी मित्र के लिए एक गिफ्ट लेना चाह रहे थे और उस उम्र का बचपना- हम सब खूब हंसे और उसे चिढ़ाते रहे कि ‘अमरीश पुरी की बेटी’. घर जाकर मैं अपनी मम्मी से स्कूल की बात बताती ही थी, ये बात भी बतायी और खूब हंसी, तब मेरी मां समझाया कि बड़ों की इस तरह हंसी नहीं उड़ाते.
उनकी मजबूरी वे ही समझते होंगे और सबका स्वाभाव एक जैसा नहीं होता. अगर वे ऐसा करते हैं तो इसके पीछे उनको अपने बच्चों की सुरक्षा की चिंता होगी. रहा सवाल गिफ्ट का तो पता नहीं वे किस तरह बच्चों को पढ़ा रहे होंगे. यह पूछने पर कि उसके पापा क्या करते हैं, तो मैंने कहा कि उनकी किराने की दुकान है.
तब मां ने कहा कि क्या पता उनका बिजनेस कैसा चल रहा है. क्या उसके पापा उसे किसी तरह की कोई कमी होने देते हैं, मैंने कहा नहीं. तब मां ने फिर कहा कि जब ऐसा नहीं है, तो किसलिए उनका मजाक उड़ा रही हो. वे अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं किसी तरह की कोई कमी नहीं होने देते, अगर गुस्से में मना कर देते हैं तो क्या हुआ, फिर वही बात मानते भी हैं. हर जेनरेशन में इस तरह की बातें होती हैं, मगर फर्क घर के माहौल का होता है. क्रमश:
गर्भधारण के लिए जरूरी एएमएच हार्मोन का संतुलन
गर्भधारण करने, उसे पूरी तरह विकसित करने और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिए शरीर में हारमोन्स का संतुलन बेहद जरूरी है. हारमोन्स का असंतुलन रातो-रात नहीं होता, बल्कि समय के साथ यह धीरे-धीरे होता रहता है. आज की भागदौड़ भरी लाइफ में सबसे ज्यादा दबाव हमारे शरीर पर पड़ता है. ऐसे में अकसर हम अपने खान-पान को नजरअंदाज कर देते हैं. इन्हीं वजहों से गर्भधारण के लिए शरीर को उचित पोषण नहीं मिल पाता.
हारमोन्स का असंतुलन आमतौर पर दिन, महीने, साल या दशकों तक रही हमारी गलत लाइफस्टाइल के परिणामस्वरूप होता है. दरअसल, एंटी मुलेरियन हारमोन (एएमएच) महिलाओं के शरीर में बेहद महत्वपूर्ण हारमोन होता है. गर्भधारण में आनेवाली दिक्कतों का ताल्लुक ज्यादातर इसी हारमोन के असंतुलन से होता है. शरीर को फिर से गर्भधारण के लायक बनाने के लिए हमें अपने आप को पोषित करने के लिए समय निकालना ही होगा.
क्या है एएमएच हारमोन
एएमएच एक ऐसा हारमोन है, जो विकसित होते एग फॉलिकल्स में छुपा होता है. महिलाओं के खून में एएमएच का स्तर आमतौर पर उनके अच्छे ओवेरियन रिजर्व यानी अंडाशय द्वारा पर्याप्त मात्रा में निषेचित होने लायक एग सेल्स मुहैया कराने का संकेत होता है.
एएमएच टेस्ट अंडाशय की कार्यप्रणाली को गहराई से जानने और मीनोपॉज की संभावित शुरुआत का अंदाजा लगाने में भी कारगर साबित होता है, जो आमतौर पर 45 साल की उम्र के आस-पास होता है. मगर शहरी इलाकों में तेजी से बदलती लाइफस्टाइल के बीच आजकल यह देखने में आ रहा है कि महिलाओं का ओवेरियन रिजर्व समय से पहले ही घटने या कम होने लगता है. ऐसी महिलाओं को भी एएचएम टेस्ट कराने के लिए कहा जाता है, जो आइवीएफ या इसके जैसी अन्य तकनीकों के जरिये फिर से गर्भधारण करने की प्रक्रिया से गुजर रही हों. एएमएच का घटता स्तर अंडाशय के कमजोर रिस्पॉन्स और अंडों की घटती संख्या को भी दर्शाता है. गहन जांच के लिए अन्य हारमोनल टेस्ट के साथ एएमएच टेस्ट कराना भी जरूरी होता है, ताकि अंडाशय में फॉलिकल्स की सही तादाद का पता लगाया जा सके.
एएमएच के स्तर को जानना जरूरी
एएमएच के जरिये अंडाशय की फंक्शनिंग के बारे में जानकारियां मिलती हैं. एएमएच बहुत छोटे विकसित होते फॉलिकल्स के जरिये प्रोड्यूज किया जाता है. हालांकि यह ओवल्यूशन से अलग होता है, लेकिन ओवेरियन रिजर्व की वास्तविक स्थिति का पता लगाने लगाने में काफी मददगार होता है.
जन्म से लेकर मीनोपॉज तक किसी भी अवस्था के दौरान एएमएच के स्तर की जांच की जा सकती है. खासतौर से 20 से 25 साल की उम्र के दौरान, जब यह अपने पीक पर होता है. किशोरावस्था में होनेवाले बदलावों के जरिये कौमार्य के दौरान अंडाशय के मैच्योर होती स्थिति को बेहतर समझा जा सकता है. एएमएच टेस्ट से पता लगाया जा सकता कि अंडाशय में अंडों के उत्सर्जन की वास्तविक स्थिति क्या है, ताकि आगे चलकर गर्भधारण करने में किसी तरह की चुनौतियों का सामना करने की तैयारी की जा सके.
क्या है उपचार की प्रक्रिया
एएमएच हारमोन गर्भधारण के चक्र के लिए जरूरी होता है. यह हारमोन किसी महिला के जीवन की क्वॉलिटी पर निर्भर करता है. जैसे गर्भधारण होता है, एएमएच के साथ-साथ दूसरे हारमोन का टेस्ट होता है. इनमें एफएसएच और एस्ट्रोडिल प्रमुख हैं. इन टेस्ट से पता चलता है कि गर्भाशय की स्थिति क्या है. कई बार गर्भाशय में कैंसर होने की वजह से एएमएच का स्तर बढ़ जाता है. गर्भधारण की वजह से शुरुआत में एएमएच का स्तर बढ़ा हुआ हो, तो यह कैंसर हो सकता है. इससे ही इलाज की दिशा का पता चलता है कि गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास ठीक से हो रहा है या नहीं. महिलाओं के मासिक चक्र के हिसाब से हारमोन्स का स्तर घटता-बढ़ता रहता है. हालांकि एएमएच के विकास की दर एक गति से होती है.
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