22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

हाथ के हुनर से आज गढ़ रहीं अपनी तकदीर

अच्छा-खराब समय हर किसी का होता है, मगर उसी के बीच से खुद की बेहतरी के लिए एक रास्ता बनाने की कोशिश करनी चाहिए. सुषमा सिन्हा की ऐसी ही एक कोशिश आज रंग ला रही है. वे कसीदाकारी का काम करती हैं. 25 महिलाओं का समूह भी खड़ा किया है. हर किसी के अंदर एक […]

अच्छा-खराब समय हर किसी का होता है, मगर उसी के बीच से खुद की बेहतरी के लिए एक रास्ता बनाने की कोशिश करनी चाहिए. सुषमा सिन्हा की ऐसी ही एक कोशिश आज रंग ला रही है. वे कसीदाकारी का काम करती हैं. 25 महिलाओं का समूह भी खड़ा किया है.

हर किसी के अंदर एक हुनर होता है. बस उसे पहचानने और तराशने की जरूरत है. फिर मंजिल मिलने से कोई नहीं रोक सकता. न्यू पाटलिपुत्र, पटना की सुषमा सिन्हा ने भी अपने अंदर के हुनर को पहचाना और आज न केवल अपने लिए संभावनाओं की जमीन तैयार की, बल्कि कई अन्य महिलाओं को भी रोजगार उपलब्ध करा रही हैं. शुरू में उन्हें कड़वे अनुभवों से भी गुजरना पड़ा. वे कहती हैं- वक्त तो किसी का भी कई बार खराब हो सकता है, बस धैर्य के साथ उससे बाहर निकलने का साहस करना चाहिए. सुषमा सिन्हा ने घर से ही इम्ब्रॉयडरी का काम शुरू किया था, लेकिन कहते हैं न कि ‘अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’, तो सुषमा धीरे-धीरे ऐसी हुनरमंद महिलाओं को जोड़ने लगीं, जिन्हें एक अच्छे अवसर की चाह थी. उनकी मदद के साथ अपने काम को भी आगे बढ़ा रही हैं.

महिलाओं को जोड़ती हैं रोजगार से

सुषमा बताती हैं- कई जरूरतमंद महिलाएं संपर्क में आती रहती है, जिन्हें आर्थिक मजबूती चाहिए. मैं उन्हें थोड़ा-बहुत काम सीखा कर अपने काम से जोड़ती हूं. उन्हें पहले कसीदाकारी की ट्रेनिंग दी जाती है, फिर ऑर्डर दिलवा कर रोजगार से जोड़ा जाता है. इससे ये महिलाएं घर पर ही रह कर अपना काम आराम से कर पा रही हैं. सुषमा ने 2004 से यह काम शुरू किया था. अब उनके पास ऐसी 25 महिलाओं का समूह तैयार हो चुका है.

पारंपरिक कसीदाकारी को देती हैं मॉडर्न टच

सुषमा सुजनी कला और सिंधि कसीदाकारी करती हैं. कहती हैं- सिंधि कसीदा का काम विलुप्त होता जा रहा है. इसे बनानेवाले अब कम मिलते हैं. जबकि आज भी मांग है. वहीं सुजनी कला तो बिहार का काफी पुराना पारंपरिक कसीदा है. इसे थोड़ा मॉडर्न टच देकर उपलब्ध करवाया जाता है. पटना में या बाहर लगनेवाले ट्रेड फेयर में स्टॉल लगाने से अच्छी आमदनी हो जाती है. अपना प्रोडक्ट कस्टमर को सीधा बेचने का मौका मिलता है.

पीएचडी नहीं कर पाने का अफसोस

बीते समय को याद करती हुई सुषमा बताती हैं कि 1983 में कम उम्र में शादी हुई, मगर शादी के बाद ग्रेजुएशन और एमए की डिग्री ली. पर पीएचडी करने की ख्वाहिश अधूरी ही रह गयी. उस दौरान सास बीमार रहने लगी थीं. तीन वर्षों तक उनकी देखभाल करते रहने से आगे की पढ़ाई नहीं कर पायी. इसका अफसोस उन्हें आज भी है. इस कारण उन्होंने घर से ही इम्ब्रॉयडरी का काम शुरू कर दिया था.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें