Sarhul Saree Rituals: सरहुल का त्योहार आदिवासियों का प्रमुख त्योहार है. यह झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे आदिवासी बाहुल्य इलाकों में प्रमुखता से मनाया जाता है. यह त्योहार प्राकृतिक पर्व के रूप से जाना जाता हैं. इस दिन साल वृक्ष की पूजा की जाती है, जिसके पीछे कि बहुत सारी पारंपरिक मान्यताएं हैं. जितनी मान्यता इसकी पेड़ की पूजा करने की है, उसी तरह इस दिन महिलाओं को लाल और सफेद साड़ी पहनने की भी हैं. तो आज हम आपको इस आर्टिकल में इसके पीछे कि मान्यता और महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं, चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.
सांस्कृतिक मान्यताएं के अनुसार
यह साड़ी पहनने की मान्यताएं आदिवासी महिलाओं के पहचान से जुड़ी हुई है. इस तरह की साड़ी पहनना उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक एकता से पहचान करवाती है, जिससे हर लोग हमेशा अपनी परंपराओं से जुड़े रहते हैं.
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साड़ी का महत्व

इस दिन सारी महिलाएं लाल और सफेद साड़ी पहनकर नाचती और गाती हैं. कहा जाता है कि सफेद साड़ी पवित्रता और शांति का संदेश देती है. वहीं, लाल साड़ी संघर्षपूर्ण रहने का संदेश देती हैं.
शांति और ऊर्जा का प्रतीक
साड़ी का सफेद रंग यानि शांति और लाल रंग यानि ऊर्जा को दर्शाता है. इसलिए सरहुल के दिन महिलाएं लाल और सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं.
फूलों की मान्यताएं
ऐसा माना जाता है कि वसंत ऋतु और सरहुल के समाए पलाश के फूल खिलते हैं, जो बहुत ही सुंदर और आकर्षित दिखते हैं. इसलिए सभी महिलाएं इस दिन लाल और सफेद रंग की साड़ियां पहनती हैं और इस दिन का खूब आनंद लेती हैं.
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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. प्रभात खबर इसकी पुष्टि नहीं करता है.