Gita Updesh: भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जो केवल युद्ध की परिस्थिति तक सीमित नहीं रहा बल्कि आज भी जीवन का मार्गदर्शन करता है. गीता को जीवन का दर्पण कहा जाता है, क्योंकि इसमें इंसान के हर भाव, कर्म और रिश्तों से जुड़े सिद्धांतों का विस्तार से उल्लेख है. विशेष रूप से जब बात प्रेम और संबंधों की आती है, तब गीता का संदेश और भी गहरा हो जाता है.
रिश्तों का सम्मान
श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश में स्पष्ट कहा कि किसी भी रिश्ते की मजबूती का आधार आपसी सम्मान है. अगर दो लोग एक-दूसरे का मान रखते हैं तो उनके बीच का प्रेम कभी कमजोर नहीं पड़ता. चाहे रिश्ता दोस्ती का हो, दांपत्य का हो या पारिवारिक, सम्मान से ही उसका सौंदर्य और स्थायित्व बना रहता है.
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क्रोध का त्याग
इसके अलावा, गीता क्रोध को सबसे बड़ा शत्रु बताती है. क्रोध से बुद्धि नष्ट होती है और व्यक्ति गलत निर्णय लेकर अपने ही रिश्तों को बिगाड़ देता है. अगर प्रेम संबंधों में क्रोध का स्थान न हो तो प्यार और गहराता है. इसलिए जरूरी है कि साथी के साथ संवाद करते समय संयम और धैर्य रखा जाए.
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जिम्मेदारियों का निर्वहन
साथ ही गीता यह भी सिखाती है कि हर रिश्ते को धर्म और कर्तव्य के भाव से निभाना चाहिए. जब हम रिश्तों के प्रति जिम्मेदारी लेते हैं और उनका ईमानदारी से निर्वाह करते हैं, तो उनमें उलझनें या कटुता नहीं आती. कर्तव्य बोध ही संबंधों को लंबे समय तक स्थायी बनाता है.
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संक्षेप में गीता का संदेश यही है कि रिश्तों में प्रेम, आदर, संयम और कर्तव्य का समन्वय होना चाहिए. अगर व्यक्ति इन सिद्धांतों का पालन करें तो उसका जीवन न केवल सुखमय होगा बल्कि उसके रिश्ते भी गहराई और मधुरता से परिपूर्ण रहेंगे.
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