Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता जीवन का अमृत, संकटों में शांति का संदेश देने वाला ग्रंथ है. यह सिर्फ पूजा की आलमारी पर रखी किताब नहीं होती है, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर हाथ थामने वाली एक अमूल्य मार्गदर्शिका होती है. जब आप जीवन की सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हों, अपने परायों से ज्यादा अजनबी लगने लगे और मन भीतर से टूटने लगे तब गीता के उपदेश मन को शांति प्रदान करते हैं. साथ ही यह बताती है कि इस जीवन में भगवान के सिवाय कोई भी अपना नहीं है. इसलिए किसी के प्रति लगाव या मोह नहीं रखना चाहिए. यह ग्रंथ हमें सिखाता है कि जीवन केवल सुख-दुख का खेल नहीं, बल्कि आत्मबोध की यात्रा है. कर्म करते जाओ, फल की चिंता छोड़ो — यही इसका मूल संदेश है. गीता मन को स्थिर करती है, आत्मा को जागृत करती है और अंततः जीवन का सच्चा अर्थ समझाती है. गीता उपदेश मनुष्य को पाप और पुण्य के बीच अंतर का ज्ञान कराती है. भगवान श्रीकृष्ण गीता के जरिए बतते हैं कि जीवन में ये चीजें पाप के समान होती हैं, जो कि इंसान को अंदर से खोखला करने का काम करती हैं.

मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार काम वासना और क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होते हैं. ये दोनों मनुष्य के लिए अत्यंत विनाशकारी हैं. मनुष्य का यह स्वभाव न केवल आत्मा की शांति को नष्ट करते हैं, बल्कि विवेक को भी भ्रष्ट कर देते हैं. श्रीकृष्ण इन्हें महापापी और आत्मा के सबसे बड़े शत्रु के रूप में वर्णन करते हैं.
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मनुष्ट का दृष्टिकोण हो जाएगा नकारात्मक
श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि जो व्यक्ति अहंकार, बल, घमंड, काम और क्रोध में डूबा होता है, वह भगवान और दूसरों से द्वेष करता है. ऐसा मनुष्य न केवल धर्म से भटक जाता है, बल्कि आत्म-विनाश की ओर भी बढ़ता है. उसका दृष्टिकोण नकारात्मक हो जाता है और वह शांति से दूर हो जाता है.

मनुष्य का होगा मानसिक और आध्यात्मिक पतन
जब मनुष्य विवेक खो देता है, तो उसकी निर्णय क्षमता कमजोर पड़ जाती है. वह सही और गलत में फर्क नहीं कर पाता, जिससे वह भ्रम और असत्य के मार्ग पर चल पड़ता है. यही मानसिक और आध्यात्मिक पतन की शुरुआत होती है. गीता के अनुसार, बुद्धि से हीन होना आत्मा की प्रगति में सबसे बड़ा बाधक है.

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