Gita Updesh: जीवन का सत्य यही है कि यह निरंतर परिवर्तनशील है. कभी इसमें सुख और सफलता का प्रवाह होता है, तो कभी असफलता और दुख की छाया गहरी हो जाती है. इन उतार-चढ़ाव भरे क्षणों में इंसान का आत्मबल कमजोर पड़ जाता है और उसे दिशा की तलाश होने लगती है. ऐसे ही समय में श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश मनुष्य के लिए मार्गदर्शक बनकर सामने आता है. महाभारत की रणभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वह केवल एक योद्धा के लिए नहीं था, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए जीवन का अमूल्य संदेश है. ये उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितना द्वापर युग में थे. गीता में बताया गया है कि मनुष्य की कुछ आदतें नरक की ओर ले जाती हैं.
- गीता के अनुसार, कुछ प्रवृत्तियां मनुष्य को नकारात्मकता की ओर ले जाती हैं. इनमें सबसे प्रमुख है काम, अर्थात भौतिक इच्छाओं का अत्यधिक बढ़ना. जब इंसान अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता, तो वे उसके विवेक को ढक लेती हैं. अत्यधिक इच्छाएं व्यक्ति को पाप और अनैतिक कार्यों की ओर धकेल देती हैं. यही कारण है कि संतोष और संयम का अभ्यास आवश्यक माना गया है.
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- दूसरी प्रवृत्ति है क्रोध. श्रीमद्भगवद्गीता में स्पष्ट कहा गया है कि क्रोध इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है. क्रोध की अवस्था में बुद्धि नष्ट हो जाती है और व्यक्ति ऐसे निर्णय लेता है, जो आगे चलकर उसके लिए विनाशकारी सिद्ध होते हैं. इसलिए क्रोध पर काबू पाना ही सच्चे विवेक का प्रतीक है.
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- तीसरी है लोभ. भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि लोभ कभी समाप्त नहीं होता, जितना अधिक मनुष्य के पास होता है, उसका लालच उतना ही बढ़ता जाता है. यह लालच इंसान को अधर्म, छल-कपट और अन्य गलत रास्तों पर ले जाता है. अंत में लोभ ही उसे दुख और पतन की ओर धकेलता है.
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