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Kathmandu Connection review : उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती, यहां पढ़ें रिव्यू

Kathmandu Connection review : वेब सीरीज काठमांडू कनेक्शन एक क्राइम थ्रिलर सीरीज है. असल घटनाओं से प्रभावित इस सीरीज की कहानी मुम्बई बम धमाकों की तफ्तीश करने वाले एक अधिकारी की हत्या के तार काठमांडू से जुड़े होने की है. इसी एक लाइन पर कहानी आधारित है जो बहुत दिलचस्प भी लगती है लेकिन परदे पर छह एपिसोड में जो कहानी आयी है वो दिलचस्प नहीं मामला बोझिल वाला कर गयी है.

Kathmandu Connection Review

वेब सीरीज – काठमांडू कनेक्शन

प्लेटफार्म सोनी लिव

एपिसोड- 6

कलाकार- अमित सियाल,अक्षा ,अंशुमान और अन्य

रेटिंग डेढ़

वेब सीरीज काठमांडू कनेक्शन एक क्राइम थ्रिलर सीरीज है. असल घटनाओं से प्रभावित इस सीरीज की कहानी मुम्बई बम धमाकों की तफ्तीश करने वाले एक अधिकारी की हत्या के तार काठमांडू से जुड़े होने की है. इसी एक लाइन पर कहानी आधारित है जो बहुत दिलचस्प भी लगती है लेकिन परदे पर छह एपिसोड में जो कहानी आयी है वो दिलचस्प नहीं मामला बोझिल वाला कर गयी है.

सीरीज का पहला एपिसोड जिस तरह से शुरू होता है उससे उम्मीद जगती है कि एक उम्दा क्राइम थ्रिलर देखने को मिलने वाला है. तीसरे एपिसोड तक मामला जमा भी है जो मुख्य प्लाट और सब प्लॉट्स में ट्विस्ट एंड टर्न जोड़े गए हैं वे उम्मीदों को बढ़ाते हैं. लेकिन चौथे एपिसोड से यह सीरीज औंधे मुंह गिर जाती है और उम्मीद भी. आखिरी के एपिसोड को तो बुरी तरह से खींचा गया है, यह कहना गलत ना होगा.

काठमांडू कनेक्शन की मुख्य खामियों में एक कहानी और उसका ट्रीटमेंट है. सीरीज की शुरुआत 92 में हुए मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट की जांच अधिकारी की हत्या से शुरू होती है फिर कहानी का एक कनेक्शन दिल्ली में हुई एक किडनैपिंग, काठमांडू से आ रहे एक टीवी जर्नलिस्ट को ब्लेंक कॉल्स के साथ साथ साथ पुलिस,जर्नलिस्ट और गैंगस्टर के प्रेम त्रिकोण तक पहुंच जाता है और आखिर में यह सीरीज एक रिवेंज ड्रामा बनकर गयी है, जो कुछ भी नया दर्शकों के सामने नहीं परोस पाती है.

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अभिनय की बात करें तो अमित सियाल ने एक बार फिर दमदार एक्टिंग की है. अपने किरदार को उन्होंने पूरी बानगी के साथ जिया है. कोर्टरूम में जब वह घटनाओं को सोच रहे हैं. वो सीन शानदार बन गया है. सीरीज में अक्षा और अंशुमान ने भी उनका साथ अच्छा दिया है. हितेश अग्रवाल को करने को कुछ खास नहीं था हालांकि कहानी उनसे शुरू होती है. बाकी के कलाकारों का काम ठीक ठाक था.

सीरीज की सिनेमेटोग्राफी की बात करें तो एयरपोर्ट वाले सीन्स अच्छे नहीं बन पाए हैं. इस सीरीज की कहानी 90 के दशक की है लेकिन निर्देशक उसकी डिटेलिंग में चूकते नज़र आते हैं. सीरीज का संवाद और स्नेहा खानविलकर का संगीत औसत रह गया है.

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