निर्देशक – तुषार जलोटा
कलाकार – सिद्धार्थ मल्होत्रा, जान्हवी कपूर, रेंजी पणिक्कर, सिद्धार्थ शंकर, मंजीत सिंह, संजय कपूर, इनायत वर्मा
समय अवधि – 136 मिनट
रेटिंग – 4 स्टार्स
मैडॉक फिल्म्स इस साल एक के बाद एक अलग-अलग जॉनर की फिल्में लेकर आ रही है – स्काई फाॅर्स की देशभक्ति, छावा की शौर्य गाथा, भूल चूक माफ़ की सामाजिक कहानी और अब परम सुंदरी, जो एक बेहद प्यारी और सच्ची प्रेम कहानी है. हर फिल्म में कुछ नया है और परम सुंदरी उस लिस्ट में एक सॉफ्ट, सोलफुल और दिल से निकली हुई कहानी के रूप में अपनी जगह बनाती है.
परम (सिद्धार्थ मल्होत्रा) एक तेज़, चालाक और डिजिटल युग का युवा है, जो एक डेटिंग ऐप के ज़रिये प्यार को लॉजिक और एल्गोरिद्म में बांधने की कोशिश करता है. वह एक ऐसी एप में पैसे इन्वेस्ट करने को तैयार होता है जो आपके डेटा और प्रोफाइल से आपकी सोल मेट ढूंढ कर आपको देती है.
लेकिन जब उसके पापा (संजय कपूर) उसे उसी ऐप से एक महीने के अंदर अपना सच्चा प्यार ढूंढने की चुनौती देते हैं, तो वो जाता है केरल, जहां उसकी मुलाकात होती है सुंदरी (जान्हवी कपूर) से – एक आत्मनिर्भर, साफ़दिल और ज़मीन से जुड़ी लड़की, जिसे ना तो ऐप्स में भरोसा है और ना ही नकली प्रोफाइल्स में.
फिल्म वहीं से एक खूबसूरत सफर पर निकलती है – दो बिल्कुल अलग सोच के लोग, जो एक-दूसरे को पहले समझने की कोशिश करते हैं और फिर धीरे-धीरे, बिना कहे एक रिश्ता बनने लगता है.
सिद्धार्थ मल्होत्रा ने परम को एकदम स्वाभाविक तरीके से निभाया है. उनका कॉन्फिडेंस उनके अभिनय में साफ़ नजर आता है और उनके इमोशनल मोमेंट्स आंखों से झलकते हैं. वो हंसाते भी हैं और चुपचाप रुलाते भी हैं.जान्हवी कपूर इस फिल्म की जान हैं. उन्होंने सुंदरी को जिस तरह से स्क्रीन पर जिया है, वो दिखाता है कि वो अब सिर्फ स्टार किड नहीं, एक सॉलिड परफॉर्मर हैं. उनके एक्सप्रेशन्स, डायलॉग डिलिवरी, और केरल के बैकड्रॉप में उनका सहज होना – सब कुछ एकदम असली लगता है.
दोनों की जोड़ी में वो मासूमियत है जो आजकल की लव स्टोरीज़ में कम देखने को मिलती है. कोई ड्रामा नहीं, बस दो लोग, जो धीरे-धीरे एक-दूसरे को महसूस करने लगते हैं.
संजय कपूर अपने कॉमिक अंदाज़ और टुकड़ों में गहरी बात कह देने की आदत से फिल्म में खूब रंग भरते हैं.मंजोत सिंह हर बार की तरह इस बार भी अपने मज़ेदार डायलॉग्स और टाइमिंग से हंसाते हैं.इनायत वर्मा स्क्रीन पर आते ही दिल जीत लेती हैं – भले ही उनका रोल छोटा हो. रेंजी पणिक्कर और सिद्धार्थ शंकर ने सुंदरी के परिवार को गरिमा और अपनापन दिया है.
निर्देशक तुषार जलोटा ने फिल्म को एक शांत गति दी है – ना बहुत तेज़, ना बहुत धीमी. उन्होंने कहानी को उसके मूल भावों से जोड़े रखा है और हर सीन को संवेदनशीलता के साथ पेश किया है.कैमरा दिल्ली के शहरी माहौल और केरल के प्राकृतिक सौंदर्य दोनों को खूबसूरती से कैद करता है. खासकर वो पल जहां दो अलग दुनिया वाले किरदार आपस में एक छोटी-सी मुस्कान या नजरों के ज़रिए जुड़ते हैं – वो देखने लायक है.
परम के शहरी, स्टाइलिश लुक्स और सुंदरी की पारंपरिक लेकिन आत्मविश्वासी साड़ियों का चुनाव बहुत सोच-समझ कर किया गया है. कोई भी चीज़ ओवर नहीं लगती, और यही इस फिल्म की खास बात है – सादगी में सुंदरता.
फिल्म का म्यूज़िक ना सिर्फ सुनने में अच्छा है, बल्कि हर गाना कहानी के साथ चलता है.“पर्देसिया” में मस्ती है,“भीगी साड़ी” में हल्की शरारत,“सुन मेरे यार वे” में तड़प,और “चांद कागज़ का” आपको अंदर तक छू जाता है.टाइटल ट्रैक “सुंदरी के प्यार में” तो पहले ही सोशल मीडिया पर वायरल है. गानों ने कहानी को एक और लेवल पर ले जाकर खड़ा किया है.
आज के दौर में जहां प्यार इमोजी और चैट से शुरू होकर राइट स्वाइप पर खत्म हो जाता है, वहीं परम सुंदरी ये याद दिलाती है कि प्यार असली होता है – और वो किसी ऐप से नहीं, इंसानी जुड़ाव से पैदा होता है.
यह फिल्म न कोई भाषण देती है, न कोई एजेंडा चलाती है – बस अपने प्यारे अंदाज़ में ये बताती है कि जब दिल से दिल मिलता है, तो बैकग्राउंड, भाषा, तकनीक – सब पीछे छूट जाते हैं.
दिनेश विजान द्वारा निर्मित और मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले बनी परम सुंदरी कोई बहुत बड़ी या शोरगुल वाली फिल्म नहीं है. यह एक छोटी, सच्ची और दिल से निकली हुई प्रेम कहानी है, जो आपको अपने अंदर झांकने का मौका देती है.

