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Film Review : फिल्‍म देखने से पहले जानें कैसी है ”जजमेंटल है क्या”

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म : जजमेंटल है क्यानिर्माता : एकता कपूरनिर्देशक : प्रकाश कोवलामुडीकलाकार : कंगना रनौत, राजकुमार राव,हुसैन दलाल,अमृता पुरी, अमायरा और अन्यरेटिंग: तीन निर्मात्री एकता कपूर की फ़िल्म जजमेंटल है क्या शुरुआत से ही विवादों की वजह से सुर्खियों में थी. कभी फ़िल्म के शीर्षक को लेकर कभी कंगना की वजह से. […]

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म : जजमेंटल है क्या
निर्माता : एकता कपूर
निर्देशक : प्रकाश कोवलामुडी
कलाकार : कंगना रनौत, राजकुमार राव,हुसैन दलाल,अमृता पुरी, अमायरा और अन्य
रेटिंग: तीन

निर्मात्री एकता कपूर की फ़िल्म जजमेंटल है क्या शुरुआत से ही विवादों की वजह से सुर्खियों में थी. कभी फ़िल्म के शीर्षक को लेकर कभी कंगना की वजह से. आखिरकार इस साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म ने टिकट खिड़की पर दस्तक दे दी है. इस जॉनर और ट्रीटमेंट की फिल्में कम ही बनती है. यह सिनेमा के गैर परंपरागत दर्शकों की फ़िल्म है.

कहानी की शुरुआत में बॉबी (कंगना रनौत) का बचपन घरेलू हिंसा को देखते हुए बीत रहा होता है. पिता द्वारा मां की मारपीट देखकर बॉबी बहुत डिस्टर्ब और सहमी सहमी सी है. इसी बीच एक हादसे में उसके मां पिता की मौत हो जाती है. कहानी आगे बढ़ जाती है. बॉबी बड़ी हो गयी है. उसका एक प्रेमी है. वो डबिंग आर्टिस्ट है लेकिन अभी भी सबकुछ नार्मल जैसा नहीं है. प्रेमी है लेकिन दोनों के बीच प्रेम नहीं है.

डबिंग आर्टिस्ट के तौर पर वह जिस भी किरदार को अपनी आवाज़ देती है उसे लगता है कि वो वही है. इसी बीच एक नया किराएदार केशव (राजकुमार राव) और रीमा (अमायरा दस्तूर) की एंट्री होती है. उनके बीच के प्यार को देखकर बॉबी उनकी तरफ आकर्षित होती है. बॉबी के किरदार को समझते ही रहते हैं कि कहानी में झटका तब लगता है जब रीमा की मौत हो जाती है. बॉबी को रीमा के पति केशव पर शक है लेकिन पुलिस उसकी सुनती नहीं है.

बॉबी के मानसिक असंतुलन की बीमारी की वजह से. इंटरवल हो जाता है कहानी लंदन पहुँच जाती है. बॉबी अपनी कजिन (अमृतापुरी) से मिलने आयी है. उसे मालूम पड़ता है कि केशव ने दूसरी शादी उसकी कजिन से की है. बॉबी को लगने लगता है कि अब उसकी कजिन की भी हत्या होगी. बॉबी को दिमागी बीमारी एक्यूट साइकोसिस है.

डॉक्टर उसे कहते हैं कि जो वो सोच रही है. दरअसल वो उसके मन का वहम है. अब यह सिर्फ बॉबी की सोच है या सच्चाई यही फ़िल्म में थ्रिलर को पैदा करता है. समझ ही नहीं आता कि कौन सच बोल रहा है कौन झूठ. बॉबी के दिमाग में जो चल रहा है वो सच है या झूठ उसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी.

फ़िल्म का फर्स्ट हाफ अच्छा बन पड़ा है.कहानी सस्पेंस और थ्रिलर को बखूबी बनाए रखती है. कंफ्यूजन बरकरार रहता है कि आखिरकार सच है क्या. सेकंड हाफ में कहानी थोड़ी खिंच जाती है लेकिन रामायण के ट्रैक से कहानी में फिर से सही दिशा में मुड़ जाती है. सेकंड हाफ पर थोड़ा काम किया गया होता तो उम्दा फ़िल्म बन सकती थी. फ़िल्म की एडिटिंग पर भी काम करने की ज़रूरत थी.

इसके बावजूद दो सनकी किरदारों के नज़रिए से दुनिया को दिखाने की अच्छी कोशिश हुई है जो दिमागी बीमारी से लड़ रहे हैं. उनकी दुनिया कैसी होती है उनके नज़रिए को यह फ़िल्म आंशिक तौर पर ज़रूर सामने लेकर आती है. अभिनय की बात करने से पहले लेखिका कनिका ढिल्लन के ये किरदार आमतौर पर हिंदी सिनेमा में कम ही नज़र आते हैं.

कंगना रनौत ने बेमिसाल एक्टिंग की है वो पूरी तरह से बॉबी की परेशानी,डर, बेबसी,गुस्से को बखूबी अपने अभिनय से जीती है. पहले दृश्य से आखिर तक वह अपने किरदार के गिरफ्त में थी. उनसे बेहतर ये किरदार और कोई नहीं कर सकता था. राजकुमार भी अपने रोल में बखूबी फिट हुए. क्लाइमेक्स वाले दृश्य में वे प्रभावी रहे हैं. हुसैन दलाल पर्दे पर जब भी आते हैं. मनोरंजन करते हैं. जिम्मी शेरगिल और अमृता पूरी को करने को ज़्यादा कुछ नहीं था. सतीश कौशिक और अमायरा सहित बाकी किरदारों का काम अच्छा बन पड़ा है.

फ़िल्म का गीत संगीत अच्छा है. म्यूजिक के साथ लाइट्स का इस्तेमाल कहानी को और प्रभावी बनाने में बखूबी इस्तेमाल हुआ है. फ़िल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं।ये इस डार्क फ़िल्म को लाइट फील देते हैं.

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