उर्मिला कोरी
फ़िल्म : वाई चीट इंडिया
निर्देशक : सौमिक सेन
कलाकार : इमरान हाशमी,श्रेया और अन्य
रेटिंग : 2.5
इमरान हाशमी की फिल्म ‘वाई चीट इंडिया’ पिछले दोनों काफी विवाद में रही. चर्चा थी कि फिल्म की कहानी मार्कशीट नामक फिल्म की नकल है. हालांकि इसे लेकर मेकर्स ने अपनी राय रख दी थी. बहरहाल वाई चीट इंडिया एजुकेशन सिस्टम की उस दुनिया में झांकने की कोशिश करती है, जहां की दुनिया से हमारा कभी पाला नहीं पड़ा है. शिक्षा और इस लेकर सामजैक दवाब के मुंह पर एक तमाचा लगाती कहानी है.
पहले जब फिल्म का ट्रेलर सामने आया था तो लोगों ने मान लिया था कि फिल्म में नकल करने की कला को बढ़ावा दिया जा रहा है। लेकिन फिल्म देखने के बाद आपके यह सारे भ्रम दूर होते हैं. दरअसल, इस फिल्म की कहानी में एडुकेशन सिस्टम में नक़ल कर एक अलग ही व्यवसाय के रूप को पर्दाफाश करने की कोशिश है.
कहानी इस पर भी वार करती है कि हमारे देश में टैलेंटेड लोग होने के बावजूद उतनी सीट नहीं है. योग्यता है तो सीट सीमित है. सीट सीमित है तो आय भी सीमित है. कई जगह रिक्त हैं. वह रिक्त इसलिए हैं क्योंकि उतनी आय नही है. मेरिट के अनुसार लोगों को आय नहीं मिलती. जिसकी वजह से उन्हें और भी रास्ते इख़्तियार करने पड़ते हैं.
अब दूसरी तरफ फिल्म समाज के साथ उस परिवार के दबाव जिसमें हर माता पिता की यही चाहत होती है कि उनका बीटा इंजीनयर बने, ताकि वह घर की जिम्मेदारी संभल सके. वह एक तरह से इन्वेस्टमेंट की तरह ही है, जैसे किसी रियल स्टेट में इन्वेस्ट करते हैं. वहीं फिल्म में कैसे पैसे और जिम्मेदारी के लालच में तो कुछ वैसे लड़के जो वाकई टैलेंटेड हैं अयाशी के लिए नक़ल का रास्ता इखितियार करते हैं.
वहीं एक कहानी यह भी कही गई है कि एक ही परिवार में जो बेटा डॉक्टर बन जाता है वह किस तरह से घर में हमेशा खास हो जाता है, जबकि दूसरे लड़के ने घर की सारी जिमीदारी सम्भाली हो. एदुएक्शन सिस्टम में किस तरह लालच ने अंदर के अधिकारीयों को दीमक की तरह चाट लिया है. यह फिल्म में बखूबी दिखाया गया है. इमरान फिल्म में छोटे शहर के राकेश सिंह का किरदार निभा रहे हैं, जिसके लिए नक़ल की अदा ही सबसे बड़ी दुआ है.
इमरान ने पहली बार ऐसा कोई किरदार निभाया है और बखूबी निभाया है. फिल्म का क्लाइमेक्स आपको हैरान करता है. इसमें कोई शक नहीं है कि फिल्म की नायिका श्रेया जिन्होंने फिल्म से अपने हिंदी फ़िल्मी करियर की शुरुआत की है. उन्होंने भी अच्छा योगदान दिया है.
कहानी में सबसे बड़ी परेशानी प्लाट की है. निर्देशक इसे समेट नहीं पाए हैं और कई जगह वह थोड़े कन्फ्यूज नजर आये हैं. इस फिल्म का नकल करने वाला हीरो धनी है और उसके बड़े संपर्क हैं और अंतत : जब उसका पर्दाफाश भी होता है तो वह फिर से अपने धंधे पर लग जाता है. वह हीरो नहीं बन जाता, वह संत नहीं बन जाता. यह अंत दिखा कर निर्देशक एक अच्छा एंगल दिखाया है. वरना आमतौर पर हिंदी फिल्मों के अंत में हम ऐसे किरदारों को संत बना देख कर ठगा महसूस करते.
फिल्म में सत्तू के किरदार के माध्यम से उस तमाम युवा वर्ग की दास्तां को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है, जो अपने पारिवारिक परेशानियों की वजह से कई बार पैसों की लालच में शोर्त्कार्ट का रास्ता चुनते हैं. फिल्म के कुछ लेसन अच्छे हैं कि नक़ल से आपका अंत बुरा हो होता है, भले ही आपके पास धन कितना भी आ जाये. साथ ही अच्छी पढ़ाई और टैलेंट होने के बावजूद कभी भी शोर्ट कट न अपनाये जेयीं.
उतर प्रदेश और बिहार झारखंड में किस तरह बड़े बड़े नेता अपने बच्चों को बड़े पदों पर देखना चाहते हैं और इसके लिए वह अपने पद का काफी इस्तेमाल करते हैं इसे भी फिल्म में अच्छी तरह दिखाया गया है. याद हो कि फिल्म थ्री इडियट में राजकुमार हिरानी इसी बात को समझाने की कोशिश में जुटे थे कि जिंदगी में डिग्री नहीं अनुभव जरूरी है. उस फिल्म में याद हो कि रंचाओर का किरदार जो कि आमिर ने निभाया था उसने भी किसी और के नाम पर पढ़ाई की और और फिर डिग्री देकर वह गायब हो गए थे.
इस फिल्म में उसी सोच को अलग तरीके से प्रस्तुत किया गया है और नकल के धंधा पर प्रकाश डाला गया है. यह फिल्म कांसेप्ट के लिहाज से एक बार देखी जानी चाहिए. इमरान अपने किसर इमेज से इस फिल्म में इतर दिखते हैं. साथ ही फिल्म के कई संवाद दिलचस्प हैं. कहानी अगर कुछ जगहों पर कनफ्यूज किए बैगैर अपनी बात रखती तो कहानी और दमदार होती.