बालाजी टेलीफिलम्स की चर्चित मूवी ‘वीरे दी वेडिंग’ आज रिलीज हो गयी. यह फिल्म अपनी स्क्रिप्ट को लेकर खासा चर्चा में है, हमारे देश में अगर महिलाएं सेक्स और ऑर्गज्म जैसे मुद्दों पर बात करें, तो आज भी लोगों के कान गरम होने लगते हैं, लेकिन इस फिल्म में महिलाएं बखूबी इस विषय पर बात […]
बालाजी टेलीफिलम्स की चर्चित मूवी ‘वीरे दी वेडिंग’ आज रिलीज हो गयी. यह फिल्म अपनी स्क्रिप्ट को लेकर खासा चर्चा में है, हमारे देश में अगर महिलाएं सेक्स और ऑर्गज्म जैसे मुद्दों पर बात करें, तो आज भी लोगों के कान गरम होने लगते हैं, लेकिन इस फिल्म में महिलाएं बखूबी इस विषय पर बात कर रही हैं और बिंदास अंदाज में अपनी इच्छाओं पर बात कर रहीं हैं, यह बड़ी बात है. आज जिस विषय पर फिल्में बन रहीं हैं उसकी शुरुआत 1999 में आयी फिल्म ‘हु तू तू’ से हो गयी थी, जिसमें नायिका यह सवाल उठाती है कि हर गाली मां-बहन के नाम पर ही क्यों होती है. हालांकि यह एक अलग पृष्ठभूमि की फिल्म थी लेकिन इसमें चिंनगारी थी जो आज सुलग रही है.
बदलाव की ओर एक सशक्त कदम
पिछले कुछ सालों में कई ऐसी फिल्में आयीं, जिसमें महिला स्वतंत्रता और उनके मुद्दों पर बात की गयी. जैसे पिंक, इंग्लिश-विंग्लिश, अनारकली और आरा, लिपस्टिक अंडर माई बुर्का, पैडमैन और नील बटे सन्नाटा. इन तमाम फिल्मों में जो सबसे बड़ी बात उभरकर सामने आयी, वो थी महिलाओं की इच्छाशक्ति और उनका निर्णय करने का अधिकार. आज आम वर्ग की महिलाएं अपने जीवन के फैसले लेने को आतुर हैं और ले रही हैं, यह एक बड़ा परिवर्तन समाज में दिख रहा है. अब वे पिता, पति और पुत्र पर निर्भर नहीं रहना चाहती वह त्याग की मूर्ति बनकर जहर नहीं पीना चाहती बल्कि अपनी खुशी के लिए वह घर से भागने का फैसला भी ले रही है. वह पराये पुरुष की छाया से बचती नहीं. उसे अगर कुछ पसंद नहीं तो बताती है और दूसरों की परवाह के लिए खुद को कुर्बान नहीं करती. चार लड़कियों जो बचपन की दोस्त हैं, मिलती हैं बैठती हैं अपनी बातें करती हैं.
महिला फिल्म निर्माताओं के आने से बदली स्थिति
ऐसा नहीं है कि इससे पहले महिला विषयक मुद्दों पर फिल्में नहीं बनी थीं या बदलाव का जिक्र नहीं किया गया था. लेकिन उस वक्त महिलाओं के मुद्दों को पुरुषों के नजरिये से देखा गया था लेकिन आज बॉलीवुड में जब से महिला निर्माता निर्देशक आयी हैं महिलाओं के इश्यूज को महिलाओं ने नजरिये से देखा जा रहा है, जिसके कारण ऐसी फिल्में आ रहीं हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि लोग इसे पसंद भी कर रहे हैं, कहने का आशय यह है कि महिलाओं की यह प्रगतिशीलता समाज में स्वीकार्य हो गयी है.