Video: आज के कलाकारों को अपने 30 फीसदी काम में बिहार की गौरव गाथाओं पर गीत बनाने चाहिए. भोजपुरी गीतों (Bhojpuri Songs) में जातिगत भेद को बढ़ावा देना गलत है. यह बिहार को पीछे ले जा रहा है. यह बातें प्रभात खबर के साथ बातचीत में लोक गायिका कल्पना पटवारी (Kalpana Patowary) ने कही. उन्होंने कहा कि युवा कलाकारों को सिर्फ टीआरपी और व्यूज के पीछे भागने के बजाय अपनी संस्कृति और विरासत पर काम चाहिए. साथ ही, सरकार से भी सवाल किया है कि जब जुबिन नौटियाल जैसे बाहरी कलाकारों को करोड़ों दिए जाते हैं, तो भिखारी ठाकुर जैसे अपने स्थानीय नायकों के कार्यक्रमों का बजट इतना कम क्यों होता है. पढ़ें बातचीत के अंश..
Q. असम से होने के बाद भी आपने भोजपुरी को अपनी पहचान बनाना और यहां मिले सम्मान को कैसे देखती हैं?
– मेरे लिए यह सम्मान बहुत खास है. असम के मुख्यमंत्री ने भी बिहार सरकार को धन्यवाद दिया. मेरा यह सफर बहुत संघर्ष भरा रहा. एक समय ऐसा था जब मैं ग्लैमरस गाने गाती थी, लेकिन 2011 के बाद से मैंने अपने संगीत में सुधार करना शुरू किया. उस समय मैं कई गानों के लिए पैसे वापस कर देती थी, क्योंकि उनके बोल मुझे पसंद नहीं आते थे. उस वक्त यह निर्णय लेना मुश्किल था, क्योंकि लोग कहते थे कि कलयुग में पैसा ही धर्म है. लेकिन आज जब मुझे यह सम्मान मिला है, तो मुझे लगता है कि मेरा त्याग सही था.
Q. आपके शुरुआती दिनों और आज के संगीत में क्या फर्क है?
– हमारे समय में ऑटो-ट्यून जैसी कोई सुविधा नहीं थी. हमें पूरा गाना एक ही बार में रिकॉर्ड करना पड़ता था. अगर कोई लाइन खराब हो जाती थी, तो हमें पूरा गाना फिर से गाना पड़ता था. इस प्रक्रिया ने हमारा बेस मजबूत किया. यही कारण है कि आज भी मेरी आवाज में वह दम और शुद्धता है. हालांकि, मैं तकनीक के खिलाफ नहीं हूं. आजकल हम भी तकनीकी सुविधाओं का उपयोग करते हैं, लेकिन विषय वस्तु पर ध्यान देना बहुत जरूरी है.
Q. भोजपुरी में आज भी जातिगत गानों का चलन है, और बड़े-बड़े कलाकार इन्हें गा रहे हैं.
– यह बहुत गलत है. पारंपरिक रूप से कुछ जातियों पर गीत तब बने थे, जब समाज अलग था. लेकिन आज के समय में, जब हम संविधान और डॉ भीमराव अंबेडकर के दर्शन की बात करते हैं, ऐसे गानों को बढ़ावा देना हमें पीछे ले जाएगा. पवन सिंह और खेसारी लाल जैसे कलाकार भी इन्हें गाते हैं, जो मुझे लगता है कि ठीक नहीं है. हमें एक बिहारी की पहचान को आगे बढ़ाना चाहिए, न कि जातिगत पहचान को.
Q. बिहार में स्थानीय कलाकारों को बड़े कलाकारों की तरह सम्मान दिया जाता है?
– यह बहुत बड़ा सवाल है. हाल ही में राजगीर महोत्सव में जुबिन नौटियाल को डेढ़ करोड़ रुपये दिए गए, जबकि भिखारी ठाकुर जैसे हमारे स्थानीय नायकों के पूरे कार्यक्रम का बजट सिर्फ 7 लाख था. सरकार को इस पर सोचने की जरूरत है. अगर सरकार कलाकारों को सराहेगी, तो वे बेहतर काम करेंगे.
Q. आप कलाकारों के कम पारिश्रमिक पर भी बात कर रही हैं. यह कैसे ठीक हो सकता है?
– भोजपुरी में अभी पैसा नहीं है, लेकिन मैं चाहती हूं कि हमारे कलाकार आवाज उठाएं. जब मैं अपना पेमेंट बढ़ाती हूं, तो मेरे पीछे की महिला गायिकाओं का भी पेमेंट खुद-ब-खुद 50 फीसदी तक बढ़ जाता है. मैं भोजपुरी के सुपरस्टार्स से भी अनुरोध करती हूं कि वे सिर्फ अपने लिए न सोचें, बल्कि अपने पीछे आने वाली पीढ़ी के लिए भी सोचें.
Q. आपके भविष्य की क्या योजनाएं हैं और आप भोजपुरी के लिए क्या करना चाहती हैं?
– मेरी कई योजनाएं हैं. मैं चाहती हूं कि पटना के गंगा घाट पर बनारस की तरह सांस्कृतिक मंच बनें, जहां सप्ताह के अंत में लोक संगीत के कार्यक्रम हों. इससे ग्रामीण कलाकारों को रोजगार मिलेगा और युवाओं को प्रेरणा. मैं यह भी चाहती हूं कि बिहार के ध्रुपद घराने, जो लुप्त हो गए हैं, उन्हें वापस लाया जाए. नालंदा जैसे स्थलों पर संगीत महोत्सव होने चाहिए, ताकि लोग हमारी संस्कृति के बारे में जानें.
Q. आपने शारदा सिन्हा जी का भी जिक्र किया, उनके लिए सरकार को कुछ करने की जरूरत है?
– जी हां. मैं सरकार से गुजारिश करूंगी कि पटना के छठ घाट पर शारदा सिन्हा जी के नाम पर एक बड़ा स्मारक बनाया जाए. यह स्मारक नए गीतकारों और संगीतकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा. यह एक श्रद्धांजलि होगी, और हम वहां जाकर उनकी विरासत को आगे बढ़ाने पर चर्चा भी कर सकते हैं.

