Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी में वामपंथी दल भाकपा (माले-लिबरेशन) ने अपने अनुभवी और जमीनी नेता महबूब आलम को एक बार फिर बलरामपुर सीट से उम्मीदवार बनाकर चुनावी रण में उतार दिया है. पार्टी ने अपने पुराने और भरोसेमंद चेहरों पर विश्वास जताते हुए इस बार भी आलम को ही टिकट दिया है. वे फिलहाल इसी सीट से वर्तमान विधायक हैं और अब लगातार चौथी बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं.
पार्टी की सेंट्रल कमेटी के सदस्य हैं महबूब आलम
महबूब आलम भाकपा (माले) की सेंट्रल कमेटी और बिहार स्टेट कमेटी के सदस्य हैं. वे उन नेताओं में गिने जाते हैं जिन्होंने पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को जमीनी स्तर पर मजबूती दी है. बलरामपुर और आसपास के इलाकों में उनका प्रभाव सिर्फ एक विधायक तक सीमित नहीं, बल्कि जनसंघर्ष और वर्गीय आंदोलनों की विरासत से जुड़ा हुआ है.
जमीन से जुड़े नेता
महबूब आलम की पृष्ठभूमि बेहद साधारण है. उन्होंने केवल 12वीं तक की पढ़ाई की है और उनका परिवार पारंपरिक रूप से कृषि कार्य से जुड़ा रहा है. वे आज भी एक साधारण घर में रहते हैं और किसानों व मजदूरों के मुद्दों पर निरंतर आवाज उठाते रहे हैं. यही वजह है कि उन्होंने अपने क्षेत्र में जनता का गहरा भरोसा कमाया है.
2020 में मिला था 1,04,489 वोट
2020 के विधानसभा चुनाव में आलम ने बलरामपुर से 1,04,489 वोट हासिल किए थे और अपने प्रतिद्वंद्वी को 53,597 मतों के भारी अंतर से हराया था. यह जीत का सबसे बड़ा मार्जिन था. बलरामपुर एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, जहां करीब 60% से अधिक मतदाता मुस्लिम हैं. यहां महबूब आलम की लोकप्रियता उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बनाती है.
वामपंथ का भरोसेमंद चेहरा
भाकपा (माले) ने 2020 के चुनाव में महागठबंधन के तहत 19 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 12 उम्मीदवार विजयी हुए थे. इस बार पार्टी लगभग 25 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है और उम्मीदवारों की सूची जारी करना शुरू कर दिया है. बलरामपुर से महबूब आलम को फिर मौका देना इस बात का संकेत है कि पार्टी अब भी अनुभव और विश्वसनीयता को प्राथमिकता दे रही है.
रणनीतिक दृष्टि से अहम सीट
बलरामपुर विधानसभा क्षेत्र बंगाल की सीमा से सटा हुआ है और लंबे समय से वामपंथी राजनीति का गढ़ माना जाता है. यहां के नतीजे कई बार बिहार की सीमावर्ती सीटों पर असर डालते हैं. महबूब आलम 2000 से अब तक इस क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं और कई बार चुनाव जीत चुके हैं.
पार्टी सूत्रों का कहना है कि आलम की उम्मीदवारी न सिर्फ राजनीतिक मजबूती का प्रतीक है, बल्कि वामपंथी विचारधारा के उस “जनसंघर्ष मॉडल” का प्रतिनिधित्व भी करती है, जिसकी जड़ें बिहार की मिट्टी में गहराई तक फैली हैं.

