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बिहार के वो ‘बाहुबली बाप’, जिन्‍होंने अपने बच्‍चों को बनाया ‘सिस्‍टम का सिपाही’ आज हैं चुनावी मैदान में

Bihar: कभी गोलियों की गूंज से कांपता बिहार आज नई कहानियां लिख रहा है. वो दौर जब खेतों में फसल नहीं, बंदूकें बोई जाती थीं, अब शिक्षा, संघर्ष और सुधार की फसल दे रहा है. बाहुबलियों के बेटे-बेटियां अब अपराध नहीं, सिस्टम के सिपाही बनकर नया बिहार गढ़ रहे हैं.

Bihar, केशव सुमन सिंह: बिहार का वो दौर तो आपको याद ही होगा. जब यहां खेतों में फसलें कम, बंदूकें ज्‍यादा बोयी जाती थीं. यहां का सिस्‍टम प्रतिभाएं नहीं अपराधी और बाहुब‍ली पैदा करता था. बिहार में जीने की एक शर्त थी ‘बाहुबल’. इस दौर ने बिहार को कई ऐसे बाहुबली दिए, जो खुद ही ‘सरकार थे’ और ‘सिस्‍टम’ भी उनका था. लेकिन आज ऐसे बाहुबलियों के बच्‍चे अपराध से दूर ‘सिस्‍टम के सिपाही’ बन कर उभर रहे हैं. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि कोई इंसान पैदाइशी अपराधी नहीं होता. उसे हालात, मजबूरियां अपराधी बनने पर मजबूर कर देते हैं.

हर अपराधी दिल के अंदर कहीं न कहीं यह ख्वाहिश जरूर होती है कि उसके बच्चे उस अंधेरे को न देखें, जिसमें वह खुद डूबा रहा है. इनमें कामदेव सिंह, आनंद मोहन, मुन्ना शुक्ला और सुनील पांडेय जैसे नाम इसी सोच के प्रतीक हैं. अपराध और राजनीति के मिलन बिंदु पर खड़े ये चारो कभी ‘बाहुबली’ कहे जाते थे. मगर अपनी अगली पीढ़ी के लिए उन्होंने किताबों और शिक्षा की राह चुनी है.

तस्कर सम्राट के बेटे ने रामजस कॉलेज से की पढ़ाई

बेगूसराय के कामदेव सिंह, गरीबों के लिए ‘रॉबिनहुड’ थे. वे तस्करी के पैसों से लोगों की मदद करते, और उनके गांव में नाम का डंका बजता था. पुलिस उन्हें “तस्कर सम्राट” कहती थी, इंटरपोल तक उनकी तलाश में थी. 1980 में पुलिस छापे के दौरान वे गंगा में कूद गये और वहीं उनकी कहानी खत्म हुई. लेकिन उनकी सोच वहीं नहीं रुकी.

कामदेव सिंह ने अपने बेटे राज कुमार सिंह को अपराध से बहुत दूर रखा. उसे पढ़ाई के लिए दिल्ली भेजा. राज कुमार सिंह ने बिना पिता की ताकत का सहारा लिये अपनी मेहनत से नाम बनाया मैट्रिक में जिला टॉपर बने, फिर दिल्ली के रामजस कॉलेज से स्नातक किया. व्यवसाय की दुनिया में कदम रखा, और 2020 में राजनीति में लौटे लेकिन एक साफ छवि के साथ. अब वे जदयू से मटिहानी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

आनंद मोहन के बच्चे क्या कर रहे

बिहार में बहुबलियों की बात हो और उसमें आनंद मोहन सिंह की बात न हो तो बिहार की वो कहानी अधूरी रह जाएगी, जिसके लिए कभी बिहार जाना जाता है. बिहार के कद्दावर राजपूत नेता, पूर्व सांसद और बिहार पीपुल्स पार्टी के संस्थापक रहे, जिनकी पहचान राजनीति और आपराधिक मामलों दोनों से है. खासकर 1994 में गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णय्या की मॉब-लिंचिंग केस. 2007 में निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा दी, जिसे पटना हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदला और 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा.

15 साल की सजा काटने के बाद 2023 में बिहार जेल मैन्युअल में बदलाव से उनकी रिहाई संभव हुई. लेकिन में रहने के बावजूद उन्‍होंने अपने बच्‍चे, चेतन आनंद और अंशुमान को अपराध से दूर रखा. इस दौरान उन्होंने तीन पुस्तक “कैद में आजाद कलम”, “गांधी (कैक्टस के फूल)”, और “स्वाधीन अभिव्यक्ति” लिखी. इसके अलावा “परवत पुरुष दशरथ” शीर्षक एक अध्याय भी लिखा जो एक संकलन में शामिल हुआ और सीबीएसई कक्षा 8 के पाठ्यक्रम में पढ़ाया गया. आज उनके बेटे चेतन आनंद जेडीयू के टिकट पर औरंगाबाद के नबीनगर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी स्कूली शिक्षा देहरादून के वेल्हम बॉयज़ स्कूल से हुई. जिसके बाद वे राजनीति से पहले सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हैं.

जेल में पीएचडी करने वाला बाहुबली और उसकी लंदन लौटी बेटी

वैशाली के डॉ. विजय कुमार शुक्ला, उर्फ मुन्ना शुक्ला, बिहार की राजनीति के चर्चित नामों में रहे. हत्या, साजिश और गैंगवार से घिरे इस नेता की कहानी विरोधाभासों से भरी है, एक तरफ अपराध के आरोप, दूसरी तरफ किताबों से गहरा रिश्ता. 2012 में, जेल में रहते हुए उन्होंने ‘उपन्यासों में राजनीतिक चेतना की अभिव्यक्ति’ पर पीएचडी की. लेकिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि शायद उनकी बेटी शिवानी शुक्ला हैं.

मुन्ना शुक्ला ने शिवानी को राजनीति नहीं, शिक्षा की राह दिखाई. दिल्ली पब्लिक स्कूल, आरके पुरम से स्कूलिंग, बेंगलुरू की एलायंस यूनिवर्सिटी से बीए-एलएलबी, और फिर लंदन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स से एलएलएम. 28 साल की शिवानी अब अपने पिता की “छवि नहीं, संघर्ष” विरासत में लेकर मैदान में हैं. वे लालगंज से राजद की उम्मीदवार हैं. अपने पिता को न्याय दिलाने के लिए जनता की अदालत में उतरीं.

सुनील पांडेय के परिवार का हाल

आरा के डॉ. नरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ़ सुनील पांडेय, कभी बिहार की राजनीति के बाहुबली चेहरे थे. अपहरण, लूट और हत्या की साजिश के 23 मुकदमों का सामना किया. लेकिन जेल में रहते हुए उन्होंने भगवान महावीर की अहिंसा पर पीएचडी कर सबको चौंका दिया. समता पार्टी से विधायक बनने वाले पांडेय ने चार बार चुनाव जीता, मगर अब उन्होंने अपनी विरासत बेटे विशाल प्रशांत को सौंप दी है.

विशाल को दिल्ली भेजा गया ताकि वह बाप की छाया से बाहर, एक नई पहचान बनाए. अब वही भाजपा के युवा चेहरे हैं. उनकी पत्नी ऐश्वर्या राज ने इस घर में एक नई रोशनी लाई पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर और जून 2025 में ‘मिसेज बिहार’ चुनी गईं. दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट, फाइनेंस में मास्टर्स और राज्य स्तरीय बास्केटबॉल खिलाड़ी. सुनील पांडेय के घर की कहानी अब अपराध से ज्यादा, आकांक्षा और बदलाव की कहानी है.

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शिक्षा से सिस्‍टम की ओर

अब बिहार का वो जंगल राज का दौर बीत चुका है. इन चारों कहानियों में एक कॉमन बात ये है कि भले ही पिता का जीवन अपराध की अंधी गलियों में गुजरा हो. मगर इन बहुबली पिताओं ने अपने पिता होने का फर्ज निभाया. उन्‍होंने अपने बच्‍चों को विरासत में अपराध की अंधेरी गलियां नहीं सौंपी. बल्कि उनके लिए शिक्षा और सिस्‍टम का उजाला चुना. इनमें पप्‍पू यादव और अनंत सिंह जैसे नेताओं का भी नाम शा‍मिल है.

भले ही ये दोनों पिता अपराधी, दबंग और बाहुबली कहे जाते हों मगर पप्‍पू यादव के बेटे शशांक रंजन फिलहाल राजनीति से दूर खेल को समर्पित हैं. वहीं, अनंत सिंह के बेटे अभिषेक, अंकित और अभिनव हैं. जिसे उनके पिता ने अपने अपराध की परछाईं से दूर रखा है. इन्‍होंने यह साबित कर दिया कि आने वाली पीढ़ी को नई दिशा देना ही असली सुधार है.

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Paritosh Shahi
Paritosh Shahi
परितोष शाही डिजिटल माध्यम में पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में एक्टिव हैं. करियर की शुरुआत राजस्थान पत्रिका से की. अभी प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. देश और राज्य की राजनीति, सिनेमा और खेल (क्रिकेट) में रुचि रखते हैं.

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