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ईसाई होकर भी मूंछ क्यों नहीं रखते थे अब्राहम लिंकन? बच्ची का लेटर, दाढ़ी और जान बचाने का अनोखा किस्सा

Why did Abraham Lincoln not have a mustache: 1860 का अमेरिका राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था. देश गुलामी, गृहयुद्ध और नेतृत्व के संकट से जूझ रहा था. इसी बीच राष्ट्रपति पद की दौड़ में आए अब्राहम लिंकन. व्यक्तिगत रूप से लिंकन को न तो आकर्षक माना जाता था और न ही प्रभावशाली दिखने वाला नेता, लेकिन असाधारण नेता की एक अलग पहचान भी थी, उनकी मशहूर दाढ़ी, लेकिन बिना मूंछों के.

Why did Abraham Lincoln not have a mustache: जब सबसे महान और सबसे ताकतवर अमेरिकी राष्ट्रपति की बात आती है, तो अब तक चुने गए 46 प्रेसिडेंट्स में से अब्राहम लिंकन सभी से ऊपर दिखाई देते हैं. 1861-65 के गृहयुद्ध के दौरान उन्होंने असाधारण कार्यकारी अधिकारों का इस्तेमाल किया, हैबियस कॉर्पस को निलंबित किया और 1863 में दास प्रथा के अंत की दिशा में ऐतिहासिक एमैंसिपेशन प्रोक्लेमेशन जारी की. उनके नेतृत्व ने न सिर्फ यूनियन को बचाया, बल्कि संघीय सरकार और राज्यों के रिश्ते को भी हमेशा के लिए बदल दिया, असल मायनों में उन्होंने अमेरिका को बचाया. इसी असाधारण नेता की एक अलग पहचान भी थी, उनकी मशहूर दाढ़ी, लेकिन बिना मूंछों के. सवाल यही है कि इतना प्रभावशाली राष्ट्रपति मूंछ क्यों नहीं रखता था?

1860 का अमेरिका राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था. देश गुलामी, गृहयुद्ध और नेतृत्व के संकट से जूझ रहा था. इसी बीच राष्ट्रपति पद की दौड़ में एक ऐसा व्यक्ति खड़ा था, जिसे लोग उसकी ईमानदारी के कारण तो पसंद करते थे, लेकिन उसकी शक्ल-सूरत को लेकर खुलकर आलोचना भी करते थे. यह व्यक्ति था- अब्राहम लिंकन. लिंकन को उनके समर्थक प्यार से ‘ऑनेस्ट आबे’ कहते थे, क्योंकि वे उन्हें भरोसेमंद और सच्चा मानते थे. यही ईमानदारी उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी, क्योंकि व्यक्तिगत रूप से लिंकन को न तो आकर्षक माना जाता था और न ही प्रभावशाली दिखने वाला नेता. 1860 के चुनाव में वे पूरी तरह क्लीन-शेव थे और कई आलोचकों ने तो उन्हें सीधे-सीधे बदसूरत तक कह दिया था.

आलोचना के घेरे में लिंकन की शक्ल

लिंकन लंबे, दुबले-पतले कद के थे. उनके गाल धंसे हुए थे, बाल काले और आंखें धूसर थीं. उनकी शक्ल में एक अजीब-सी उदासी झलकती थी. कुछ लोगों को वे किसी एडगर भूतिया कहानी के किरदार जैसे- थोड़े डरावने और निर्जीव लगते थे. एक अखबार ने तो उन्हें ‘हॉरिड-लुकिंग रैच’ यानी डरावना दिखने वाला अभागा तक कह दिया. इसके बावजूद, जनता ने उनकी ईमानदारी पर भरोसा किया और अब्राहम लिंकन 1860 का चुनाव जीतकर अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति बन गए. वे अमेरिका के 6वें नेता थे, जिन्हें राष्ट्रपति का दूसरा कार्यकाल मिला था, लेकिन केवल एक महीने बाद ही उनकी 15 अप्रैल 1865 को गोली मारकर हत्या कर दी गई. 

एक 11 साल की लड़की का असाधारण पत्र

अब बात करते हैं, अब्राहम लिंकन की बिना मूछों के दाढ़ी के. उन्होंने अपने आपको कभी ईसाई के रूप में प्रचारित नहीं किया. हालांकि, उनका बपतिस्मा हुआ था. वह एक ऐसा समय था, जब अमेरिका में रिलीजन को लेकर बहुत ज्यादा बहस नहीं होती थी, लेकिन अधिकतम जनसंख्या ईसाई ही थी, तो नेताओं को किसी तरह के दिखावे की जरूरत महसूस नहीं होती थी. अक्टूबर 1860 की शुरुआती शरद ऋतु में, रिपब्लिकन पार्टी से नामांकन मिलने के बाद, न्यूयॉर्क के अपस्टेट इलाके में रहने वाली 11 साल की एक लड़की ग्रेस बेडेल ने 15 अक्टूबर को लिंकन को एक पत्र लिखा. 

यह कोई साधारण प्रशंसक पत्र नहीं था, बल्कि उसमें एक मासूम लेकिन बेहद व्यावहारिक राजनीतिक सलाह छिपी थी. ग्रेस ने लिखा कि उसका चेहरा बहुत पतला है और अगर वे दाढ़ी (whiskers) बढ़ा लें तो कहीं बेहतर दिखेंगे. उसने यह भी दावा किया कि महिलाएं दाढ़ी पसंद करती हैं और वे अपने पतियों को लिंकन के पक्ष में वोट देने के लिए मना लेंगी. उसने यहां तक कहा कि वह अपने भाइयों को भी लिंकन के लिए वोट देने को राजी कर सकती है. यह पत्र न सिर्फ मासूम था, बल्कि अपने समय के हिसाब से राजनीतिक रूप से भी काफी समझदार. यह पत्र इतना खूबसूरती से लिखा गया है कि इसे पूरा उद्धृत करना दिलचस्प है-

“मेरे पिता अभी मेले से घर आए हैं और वे आपकी और मिस्टर हैमलिन (लिंकन के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार) की तस्वीर लेकर आए हैं. मैं सिर्फ 11 साल की एक छोटी लड़की हूं, लेकिन मैं चाहती हूं कि आप संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बनें. मुझे उम्मीद है कि आप मुझे इतना साहसी नहीं समझेंगे कि मैं इतने महान व्यक्ति को पत्र लिख रही हूं. क्या आपके पास मेरी उम्र की कोई छोटी बेटियां हैं? अगर हैं तो उन्हें मेरा प्यार दीजिए और उनसे कहिए कि अगर आप इस पत्र का जवाब नहीं दे सकें तो वे मुझे लिखें. मेरे चार भाई हैं और उनमें से कुछ तो वैसे भी आपको वोट देंगे, लेकिन अगर आप अपनी दाढ़ी (whiskers) बढ़ा लें तो मैं बाकी भाइयों को भी आपके पक्ष में वोट दिलाने की कोशिश करूंगी. आपका चेहरा बहुत पतला है और दाढ़ी में आप कहीं ज्यादा अच्छे लगेंगे. सभी महिलाएं दाढ़ी पसंद करती हैं और वे अपने पतियों को आपको वोट देने के लिए मनाएंगी, तब आप राष्ट्रपति बन जाएंगे. मेरे पिता आपको वोट देंगे और अगर मैं पुरुष होती तो मैं भी आपको वोट देती. फिर भी मैं जितने लोगों को मना सकती हूं, कोशिश करूंगी कि वे आपको वोट दें. आपकी तस्वीर के चारों ओर बनी रेल की बाड़ मुझे बहुत सुंदर लगती है. मेरी एक छोटी बहन भी है, जो सिर्फ नौ हफ्ते की है और बहुत प्यारी है.”

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अब्राहम लिंकन गृह युद्ध से पहले बिना मूछों के. फोटो- एक्स.

लिंकन की प्रतिक्रिया और मन का द्वंद्व

लिंकन ने इस पत्र का तुरंत और बेहद विनम्र जवाब दिया. उन्होंने 19 अक्टूबर को ग्रेस को लिखे पत्र में धन्यवाद दिया, अपने परिवार के बारे में बताया और दाढ़ी पर संदेह भी जताया. लिंकन ने कहा कि उन्होंने कभी दाढ़ी नहीं रखी है. क्या यह नहीं लगता कि अगर वे अब दाढ़ी बढ़ाने लगें तो लोग इसे बनावटी या अजीब समझेंगे? हालांकि उन्होंने कोई वादा नहीं किया, लेकिन यह साफ था कि पत्र ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया. लिंकन ने पत्र के जवाब में जो लिखा- 

“15 तारीख को लिखा गया आपका बहुत ही सुखद पत्र मुझे मिल गया है. मुझे यह बताते हुए खेद है कि मेरी कोई बेटी नहीं है. मेरे तीन बेटे हैं- एक 17 साल का, एक 9 साल का और एक 7 साल का. वे और उनकी मां ही मेरा पूरा परिवार हैं. जहां तक दाढ़ी की बात है, मैंने कभी दाढ़ी नहीं रखी है. क्या आपको नहीं लगता कि अगर मैं अब दाढ़ी बढ़ाना शुरू करूं तो लोग इसे बनावटी या अजीब नहीं समझेंगे?”

चुनाव जीतने के बाद आया बड़ा बदलाव

चुनाव से ठीक पहले दाढ़ी बढ़ाने का मौका नहीं था, लेकिन लिंकन जीत गए. इसके बाद उन्होंने ग्रेस की सलाह मानते हुए दाढ़ी बढ़ाना शुरू कर दिया. अगस्त 1860 में वे बिना दाढ़ी थे, नवंबर 1860 में चुनाव जीतने के बाद  उनकी दाढ़ी उभरने लगी और फरवरी 1861 तक, शपथ-ग्रहण से पहले, वे पूरी दाढ़ी में नजर आने लगे. अपने शपथ-ग्रहण के लिए जाते समय वे उसके शहर से गुजरे और उससे व्यक्तिगत रूप से मिले, ताकि उसे दाढ़ी दिखा सकें. ग्रेस को यह पसंद आई, हालांकि इस बात की पुष्टि वाला साक्ष्य कहीं नहीं मिला.

सवाल: दाढ़ी तो बढ़ी, मूंछें क्यों नहीं?

यह दाढ़ी शेनान्डोआ या स्पेड दाढ़ी कहलाती है, जिसमें ठोड़ी और जबड़े पर दाढ़ी होती है, लेकिन ऊपरी होंठ पूरी तरह साफ रहता है. दाढ़ी ने लिंकन के दुबले चेहरे को संतुलित किया और उनकी कठोर बनावट को नरम किया. सिर्फ मूंछें रखने से यह प्रभाव नहीं आता. हालांकि केवल दाढ़ी; यह सवाल इतिहासकारों को आज तक दिलचस्प लगता है. इसके पीछे कई कारण माने जाते हैं-

1. सौंदर्य कारण, व्यक्तिगत पसंद

लिंकन खुद अपनी शक्ल को लेकर असहज रहते थे. उन्होंने अपने लंबे जबड़े को मजाक में ‘हॉरिबल लैंटर्न जॉज’ कहा था. दाढ़ी उनके धंसे गालों और जबड़े को संतुलित करती थी. माना जाता है कि मूंछें चेहरे की असमानता को और उभार देतीं, जबकि दाढ़ी उसे ढक लेती थी. 1860 से पहले की तस्वीरों में लिंकन या तो क्लीन शेव दिखते हैं या हल्की साइडबर्न्स में. उन्हें भारी जबड़े और धंसे गालों को ढकने वाली दाढ़ी ज्यादा पसंद आई. ग्रेस के पत्र में भी “whiskers” यानी दाढ़ी की ही सलाह दी गई थी, सिर्फ मूंछों की नहीं.

2. सामाजिक और धार्मिक संकेत

19वीं सदी में बिना मूंछ की दाढ़ी अक्सर पादरियों और अमीश-मेनोनाइट जैसे शांतिवादी समुदायों से जुड़ी होती थी. इसके उलट, मूंछें सैन्य छवि से जुड़ी थीं. ऐसे समय में, जब देश गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा था, लिंकन का यह गैर-सैन्य लुक एक तरह का मौन संदेश भी था- शांति और नैतिकता का. उस दौर में चेहरे के बाल सामाजिक पहचान भी दर्शाते थे. सिर्फ मूंछें रखना अमेरिकी राजनेताओं में कम प्रचलित था. पूरी दाढ़ी एक गंभीर, जिम्मेदार और पिता-सरीखी छवि पेश करती थी, जो देश के संकट के समय लिंकन के लिए उपयुक्त थी.

3. व्यावहारिक कारण

मूंछों की देखभाल कठिन मानी जाती थी. खाने-पीने में परेशानी और नियमित ट्रिमिंग की जरूरत होती थी. कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं लिंकन के ऊपरी होंठ पर बाल बहुत हल्के या घुंघराले थे, जिससे पूरी और आकर्षक मूंछ बन पाना मुश्किल था. ऐसे में उस हिस्से को साफ रखना ज़्यादा आसान था. लिंकन की शुरुआती दाढ़ी भी पूरी नहीं थी. यह ‘चिनस्ट्रैप’ या ‘चिन कर्टन’ स्टाइल थी, जिसमें ठोड़ी और जबड़े के चारों ओर दाढ़ी होती है, लेकिन ऊपरी होंठ पूरी तरह साफ रहता है.

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अब्राहम लिंकन.

दाढ़ी बनी सुरक्षा कवच

राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले ही लिंकन को अपने खिलाफ संभावित हत्या की साजिश की खबर मिल गई थी. उन्हें यह नहीं पता था कि हमला कब और कहां होगा, सिर्फ इतना अंदेशा था कि ऐसा हो सकता है. इसलिए उन्होंने बड़ी टोपी पहनी और अपनी नई दाढ़ी का इस्तेमाल वेश बदलने के लिए किया, ताकि शपथ-ग्रहण के लिए वॉशिंगटन, डी.सी. जाते समय उन्हें पहचाना न जा सके. फोर्ड्स थिएटर और द हिस्ट्री रीडर के अनुसार, यह रणनीति सफल रही.

ट्रेन से यात्रा करते हुए वे टोपी नीचे झुकाए और सिर झुकाकर बैठे रहे, जिससे कोई उन्हें पहचान नहीं सका. लोग लिंकन को अब तक बिना दाढ़ी, धंसे गालों वाले चुनावी चित्रों में ही देखने के आदी थे. किसी को पूरी दाढ़ी वाले लिंकन की उम्मीद नहीं थी. वे सुरक्षित अपने शपथ-ग्रहण तक पहुंच गए. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अब्राहम लिंकन की दाढ़ी और ग्रेस बेडेल नाम की एक छोटी लड़की ने शायद राष्ट्रपति की जान बचाने में अहम भूमिका निभाई.

बाद में कई राष्ट्रपतियों ने रखी दाढ़ी

संभवतः यह उनका व्यक्तिगत फैसला था. उस दौर में पूरी दाढ़ी आम नहीं थी, हालांकि कुछ ही वर्षों बाद यह चलन बन गया. 1869 से 1897 के बीच के सभी अमेरिकी राष्ट्रपति जैसे- ग्रांट, हेज, गारफील्ड, आर्थर, क्लीवलैंड और हैरिसन किसी न किसी तरह की दाढ़ी या मूंछ रखते थे. उस समय बिना मूंछ की दाढ़ी या आधी दाढ़ी भी काफी आम थी. हालांकि लिंकन को उनके त्याग के लिए बेहिसाब सम्मान आज तक मिलता है. 5 डॉलर के नोट पर उनकी फोटो भी है, हालांकि यहां भी वे बिना मूछों के ही हैं.

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अब्राहम लिंकन. फोटो- कैनवा

अमेरिका का निश्चित तौर पर सबसे ताकतवर राष्ट्रपति

अमेरिका के इतिहास में सबसे ताकतवर राष्ट्रपति कौन था? यह सवाल अक्सर उठता रहा है. ताकत को मापने का कोई एक पैमाना नहीं है, लेकिन इतिहासकारों की आम सहमति है कि कुछ राष्ट्रपतियों ने या तो राष्ट्रपति पद की शक्तियों को असाधारण रूप से बढ़ाया या फिर वैश्विक स्तर पर अमेरिका के प्रभाव को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने महामंदी और द्वितीय विश्व युद्ध के दौर में देश का नेतृत्व किया, हैरी ट्रूमैन ने परमाणु बम के इस्तेमाल और शीत युद्ध की शुरुआत के साथ अमेरिका को “फ्री वर्ल्ड” का नेता बनाया, जॉर्ज वॉशिंगटन ने स्वेच्छा से सत्ता छोड़कर लोकतांत्रिक परंपरा की नींव रखी और लिंडन बी. जॉनसन ने कांग्रेस पर मजबूत पकड़ के जरिए सिविल राइट्स एक्ट और ‘ग्रेट सोसाइटी’ जैसे ऐतिहासिक सुधार लागू कराए. लेकिन जब सबसे महान और सबसे ताकतवर अमेरिकी राष्ट्रपति की बात आती है, तो अब्राहम लिंकन सभी से ऊपर दिखाई देते हैं. गृहयुद्ध के दौरान उन्होंने असाधारण कार्यकारी अधिकारों का इस्तेमाल किया असल मायनों में आधुनिक अमेरिका की स्थापना की. 

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Anant Narayan Shukla
Anant Narayan Shukla
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट. करियर की शुरुआत प्रभात खबर के लिए खेल पत्रकारिता से की और एक साल तक कवर किया. इतिहास, राजनीति और विज्ञान में गहरी रुचि ने इंटरनेशनल घटनाक्रम में दिलचस्पी जगाई. अब हर पल बदलते ग्लोबल जियोपोलिटिक्स की खबरों के लिए प्रभात खबर के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

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