US Nuclear Scientist MIT Professor shot at home: अमेरिकी सुरक्षा महकमों में हड़कंप मचा हुआ है. वजह है US के प्रमुख न्यूक्लियर फ्यूजन वैज्ञानिक और एमआईटी के प्लाज्मा साइंस एंड फ्यूजन सेंटर के डायरेक्टर नूनो लौरेइरो (Nuno Loureiro) की मौत. 47 वर्षीय लौरेइरो की 15 दिसंबर 2025 को मैसाचुसेट्स के ब्रुकलाइन स्थित उनके घर के अंदर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने उनकी मौत को हत्या करार दिया है और कहा है कि जांच जारी है, लेकिन अब तक न तो किसी संदिग्ध की पहचान की गई है और न ही किसी मकसद का सार्वजनिक रूप से खुलासा किया गया है. लौरेइरो की मौत ने वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय को झकझोर कर रख दिया है. उनके कत्ल के संभावित कारणों को लेकर ऑनलाइन अटकलों की बाढ़ आ गई है.
द बॉस्टन ग्लोब की रिपोर्ट के मुताबिक, लौरेइरो की पड़ोसी लुईस कोहेन ने सोमवार रात करीब 8:30 बजे गोलियों की आवाज सुनी, जब वह हनुक्का मेनोराह जला रही थीं. तीन मंजिला अपार्टमेंट बिल्डिंग में गोलीबारी की सूचना मिलने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची और लौरेइरो को बोस्टन के एक अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई. पुलिस ने पुष्टि की है कि लौरेइरो की मौत गोली लगने से हुई और मामले की जांच हत्या के रूप में की जा रही है. अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है और पुलिस ने संभावित संदिग्धों या मकसद से जुड़ी कोई जानकारी साझा नहीं की है. जांच एजेंसियों ने लोगों से संयम बरतने की अपील की है और बिना पुख्ता सबूत के निष्कर्ष निकालने से चेताया है.
नूनो लौरेइरो कौन थे
डॉ. नूनो लौरेइरो का जन्म और पालन-पोषण मध्य पुर्तगाल के वीजेउ (Viseu) में हुआ था. उन्होंने लिस्बन स्थित इंस्टीट्यूटो सुपीरियर टेक्निको से भौतिकी में स्नातक की पढ़ाई की और 2005 में इम्पीरियल कॉलेज लंदन से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने लिस्बन में परमाणु संलयन (न्यूक्लियर फ्यूजन) के क्षेत्र में शोधकर्ता के रूप में काम किया. लौरेइरो की मौत को विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र के लिए एक बड़ी क्षति के रूप में देखा जा रहा है. छात्र और सहकर्मी उन्हें उनकी उदारता, मार्गदर्शन और जटिल भौतिकी को सरल तरीके से समझाने की क्षमता के लिए याद कर रहे हैं. वे ऐसे आदर्श थे, जिन्होंने यह दिखाया कि सामान्य कक्षाओं से निकलकर वैश्विक शोध के शीर्ष स्तर तक पहुँचना संभव है.
द न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) के अनुसार, न्यू जर्सी के प्रिंसटन प्लाज्मा फिजिक्स लेबोरेटरी और ब्रिटेन की राष्ट्रीय फ्यूजन अनुसंधान प्रयोगशाला, कुल्हम सेंटर फॉर फ्यूजन एनर्जी में पोस्टडॉक्टोरल कार्य पूरा करने के बाद वह पुर्तगाल लौटे. वहां उन्होंने इंस्टीट्यूटो सुपीरियर टेक्निको के संस्थान में प्लाज्मा और परमाणु संलयन के लिए प्रमुख अन्वेषक (प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर) के रूप में काम किया. डॉ. लौरेइरो 2016 में MIT के फैकल्टी में शामिल हुए. 2022 में उन्हें प्लाज्मा साइंस एंड फ्यूजन सेंटर का उप-निदेशक नियुक्त किया गया.
लौरेइरो एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित प्लाज्मा भौतिक विज्ञानी थे. उन्होंने एमआईटी में 10 साल से भी अधिक समय तक परमाणु संलयन से जुड़ी सबसे कठिन समस्याओं पर काम किया. प्लाज्मा साइंस एंड फ्यूजन सेंटर के निदेशक के रूप में उन्होंने प्लाज्मा में टर्बुलेंस और मैग्नेटिक रिकनेक्शन जैसे विषयों पर शोध का नेतृत्व किया, जो फ्यूजन रिएक्टरों को स्थिर और प्रभावी बनाने की प्रमुख चुनौतियाँ हैं. उनके साथी उन्हें गहरी सैद्धांतिक समझ और उत्कृष्ट शिक्षण क्षमता का दुर्लभ संयोग मानते थे.
वैज्ञानिक की मौत के बाद ऑनलाइन अटकलों की लहर
पुर्तगाल मूल के नूनो लौरेइरो की मौत की खबर सामने आते ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अटकलों और दावों की भरमार हो गई. आधिकारिक जानकारी के अभाव में सोशल मीडिया पर तेजी से तरह-तरह के सिद्धांत सामने आने लगे हैं, जिनमें उनकी मौत को परमाणु संलयन ऊर्जा की वैश्विक दौड़ से जोड़कर देखा जा रहा है. कुछ यूजर्स ने उन्हें फ्यूजन वॉर्स का पहला शिकार बताया और दावा किया कि परमाणु संलयन पर उनका काम स्थापित ऊर्जा उद्योगों, खासकर जीवाश्म ईंधन कंपनियों के लिए खतरा बन रहा था, क्योंकि इससे स्वच्छ और दीर्घकालिक ऊर्जा समाधान का रास्ता तेजी से खुल सकता था. कुछ लोगों ने कहा कि बड़े पैमाने पर फ्यूजन तकनीक के विकसित होने से पवन और सौर ऊर्जा में किए गए मौजूदा निवेश मॉडल भी प्रभावित हो सकते हैं.
हालांकि अटकलों में जियोपॉलिटिक्स की भी महक आ रही है. सोशल मीडिया पर कहा गया कि अगली पीढ़ी की ऊर्जा तकनीकों, खासकर परमाणु संलयन की वैश्विक दौड़ में शामिल विदेशी सरकारें लौरेइरो के शोध को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मान सकती थीं. फ्यूजन को केवल वैज्ञानिक लक्ष्य नहीं, बल्कि भविष्य की आर्थिक और भू-राजनीतिक शक्ति के स्रोत के रूप में पेश किया गया. कुछ पोस्ट्स में तो राज्य-स्तरीय हस्तक्षेप या इंडस्ट्रियल जासूसी तक के आरोप लगाए गए. कुछ वायरल पोस्ट्स में यह भी दावा किया गया कि लौरेइरो किसी बड़ी वैज्ञानिक सफलता के बेहद करीब थे, जिससे फ्यूजन ऊर्जा की व्यावसायिक उपयोगिता तेजी से बढ़ सकती थी.
हालांकि, ये सभी अटकलें ही हैं, क्योंकि अधिकारियों ने बार-बार स्पष्ट किया है कि लौरेइरो की हत्या का उनके शोध, उद्योग हितों या भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से जुड़े होने का कोई सबूत नहीं है. एजेंसियों ने न तो किसी मकसद की पुष्टि की है, न ही किसी संदिग्ध का नाम बताया है और न ही यह संकेत दिया है कि उनकी पेशेवर गतिविधियों का इस हत्या से कोई संबंध था.
भारत भी झेल चुका है वैज्ञानिकों को खोने का दंश
भारत पिछले कई सालों में अपने ढेर सारे परमाणु वैज्ञानिकों को खो चुका है. 2015 में आई एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक उस साल से पहले के बीते चार सालों (2009-2013) में भारत के 11 वैज्ञानिकों की मौत हुई, जो किसी न किसी रूप में न्यूक्लियर शोध से जुड़े हुए थे. इनमें से 8 BARC से जुडे़ हुए थे, जो किसी बम विस्फोट या समुद्र में डूब कर मर गए. भारत के परमाणु विज्ञान के पिता डॉ होमी जहांगीर भाभा की मृत्यु पर भी लोगों ने शंका पैदा की थी. हालांकि उस पर ज्यादा जांच नहीं की गई. ऐसे में अमेरिका में हुई इस मृत्यु पर भी लोगों का शक जताना बिल्कुल भारतीयों जैसी ही है.
फ्यूजन रिसर्च पर इतना ध्यान क्यों
फ्यूजन ऊर्जा को अक्सर जलवायु परिवर्तन और वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा का भविष्य का समाधान माना जाता है, क्योंकि इससे बिना कार्बन उत्सर्जन के और बहुत कम दीर्घकालिक रेडियोधर्मी कचरे के साथ ऊर्जा पैदा की जा सकती है. हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि इस क्षेत्र में प्रगति के बावजूद फ्यूजन अभी भी एक दीर्घकालिक वैज्ञानिक चुनौती है, जिसमें विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और निजी कंपनियों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत होती है. कोई एक वैज्ञानिक या संस्थान फ्यूजन विकास की गति या उसके अंतिम परिणाम को तय नहीं कर सकता.
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