US Space Policy Donald Trump Executive Order: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तेजी से एक के बाद एक नई नीतियों को मंजूरी दे रहे हैं. नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटजी और पैक्स सिलिका जैसे अहम मुद्दों पर फैसले लेने के बाद अब राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका की नई अंतरिक्ष नीति को भी स्वीकृति दे दी है. मून मिशनों की समय-सीमा, परमाणु ऊर्जा के उपयोग और भविष्य के अंतरिक्ष इंफ्रास्ट्रक्चर को ध्यान में रखते हुए ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें अन्वेषण, सुरक्षा और आर्थिक विस्तार को केंद्र में रखकर नई अमेरिकी स्पेस रणनीति की रूपरेखा तय की गई है.
इस नई नीति के तहत 2028 तक अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों की चंद्रमा पर वापसी को अनिवार्य लक्ष्य बनाया गया है. वहीं 2030 तक स्थायी लूनर बेस के शुरुआती घटकों की स्थापना की योजना है. कार्यकारी आदेश में ऑर्बिट और चंद्रमा पर परमाणु रिएक्टर तैनात करने का भी प्रावधान किया गया है. इसमें मून के सरफेस पर एक परमाणु रिएक्टर लगाने की योजना शामिल है, जिसके 2030 तक पूरी तरह ऑपरेशनल होने की उम्मीद जताई गई है.
अंतरिक्ष सुरक्षा और व्यावसायिक नजरिए पर जोर
नई US Space Policy में अंतरिक्ष सुरक्षा को विशेष प्राथमिकता दी गई है. इसके तहत अमेरिकी एजेंसियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अमेरिका के अंतरिक्ष हितों के खिलाफ संभावित खतरों की पहचान, उनका विश्लेषण और उनसे निपटने की अपनी क्षमताओं को और मजबूत करें. प्रशासन का कहना है कि यह कदम प्रतिद्वंद्वी देशों की ओर से बढ़ती चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है.
वहीं व्यावसायिक दृष्टिकोण से यह कार्यकारी आदेश 2030 तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के विकल्प के रूप में एक वाणिज्यिक प्लेटफॉर्म विकसित करने और लॉन्च इंफ्रास्ट्रक्चर के आधुनिकीकरण का लक्ष्य तय करता है. व्हाइट हाउस की ओर से जारी फैक्ट शीट के मुताबिक, इस पहल का मकसद लो-अर्थ ऑर्बिट में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना भी है.
विभागों के आपसी तालमेल पर जोर
राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति के समन्वय की जिम्मेदारी राष्ट्रपति के विज्ञान और प्रौद्योगिकी सलाहकार को सौंपी गई है. इसके साथ ही विभिन्न संघीय विभागों और एजेंसियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे रणनीति के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आपसी तालमेल के साथ काम करें. इसमें खरीद प्रक्रियाओं को सरल बनाना, अंतरिक्ष सुरक्षा रणनीतियों को लागू करना और उपयुक्त कार्यबल सुनिश्चित करना शामिल है. प्रशासन के अनुसार, अंतरिक्ष क्षमताओं के विस्तार से सटीक कृषि, बेहतर मौसम पूर्वानुमान, सैटेलाइट आधारित ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी और पोजिशनिंग, नेविगेशन व टाइमिंग जैसी नागरिक सेवाओं को भी बढ़ावा मिलेगा.
निजी क्षेत्र की भूमिका अहम
यह कार्यकारी आदेश अमेरिकी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के विस्तार में निजी क्षेत्र की अहम भूमिका को दोहराता है और अंतरिक्ष निवेश को रोजगार सृजन से जोड़ता है, खासतौर पर एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में. इसके साथ ही इसमें ट्रंप के पहले कार्यकाल की पहलों का भी जिक्र है, जिनमें अमेरिकी स्पेस फोर्स की स्थापना, जारी किए गए स्पेस पॉलिसी डायरेक्टिव्स और अंतरिक्ष संसाधनों के उपयोग को प्रोत्साहित करने वाले कार्यकारी कदम शामिल रहे हैं.

US Space Policy: व्हाइट हाउस की ओर से जारी किए गए एग्जीक्यूटिव ऑर्डर, जिसका नाम अमेरिकी अंतरिक्ष श्रेष्ठता सुनिश्चित करना है, में इन बिंदुओं पर बात रखी गई है.
- अंतरिक्ष में बढ़त अमेरिका की राष्ट्रीय सोच, इच्छाशक्ति और ताकत का पैमाना है. स्पेस टेक्नोलॉजी देश की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और समृद्धि को मजबूत बनाती है.
- अमेरिका मानव खोज के दायरे को बढ़ाने और नए स्पेस युग की नींव रखने की नीति अपनाएगा. इसमें सुरक्षा हित, आर्थिक हित और वाणिज्यिक विकास को प्राथमिकता दी जाएगी.
- 2028 तक आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत अमेरिकियों को फिर से चंद्रमा पर भेजा जाएगा. इसका लक्ष्य नेतृत्व स्थापित करना, चंद्र अर्थव्यवस्था और मंगल मिशन की तैयारी है.
- 2030 तक चंद्रमा पर स्थायी लूनर आउटपोस्ट के शुरुआती ढांचे तैयार किए जाएंगे. इससे अंतरिक्ष में अमेरिका की निरंतर मौजूदगी सुनिश्चित होगी.
- लॉन्च और एक्सप्लोरेशन सिस्टम को ज्यादा टिकाऊ और कम लागत वाला बनाया जाएगा. कमर्शियल लॉन्च सेवाओं और चंद्र मिशनों को बढ़ावा मिलेगा.
- अंतरिक्ष से जुड़े राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा हितों की रक्षा पर जोर होगा. अमेरिका स्पेस, पृथ्वी और सिसलूनर क्षेत्र में खतरों से निपटने की क्षमता बढ़ाएगा.
- 2028 तक अगली पीढ़ी की मिसाइल डिफेंस तकनीकों का विकास और परीक्षण होगा. यह “आयरन डोम फॉर अमेरिका” पहल के तहत किया जाएगा.
- बहुत निचली कक्षा से लेकर चंद्र क्षेत्र तक खतरों की पहचान और जवाब की क्षमता विकसित होगी. अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों की तैनाती पर भी नजर रखी जाएगी.
- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए तेज और लचीला स्पेस आर्किटेक्चर बनाया जाएगा. खरीद प्रक्रियाओं में सुधार और निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ेगी.
- सहयोगी देशों की स्पेस सुरक्षा में भूमिका मजबूत की जाएगी. साझा संचालन, बेसिंग समझौते और निवेश को बढ़ावा मिलेगा.
- अमेरिकी फ्री एंटरप्राइज के जरिए मजबूत कमर्शियल स्पेस इकोनॉमी बनाई जाएगी. 2028 तक कम से कम 50 अरब डॉलर के नए निवेश का लक्ष्य है.
- लॉन्च और री-एंट्री की संख्या बढ़ाने के लिए नए और उन्नत स्पेस फैसिलिटी विकसित होंगी. नीतिगत सुधारों से संचालन ज्यादा कुशल बनाया जाएगा.
- स्पेक्ट्रम लीडरशिप दिखाकर अमेरिकी स्पेस टेक्नोलॉजी की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाई जाएगी. बेहतर स्पेक्ट्रम प्रबंधन से अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच मजबूत होगी.
- 2030 तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के विकल्प के रूप में निजी स्पेस स्टेशन का रास्ता तैयार होगा. इसमें निजी क्षेत्र की अहम भूमिका होगी.
- स्पेस रिसर्च और डेवलपमेंट निवेश को प्रशासन के तात्कालिक लक्ष्यों से जोड़ा जाएगा. नई तकनीकें और वैज्ञानिक खोजें मिशन क्षमता बढ़ाएंगी.
- चंद्रमा और कक्षा में न्यूक्लियर पावर के इस्तेमाल को सक्षम किया जाएगा. 2030 तक लूनर सरफेस न्यूक्लियर रिएक्टर लॉन्च के लिए तैयार होगा.
- पृथ्वी और अंतरिक्ष के मौसम पूर्वानुमान और संचालन में सुधार किया जाएगा. फिक्स्ड-प्राइस और “एज-ए-सर्विस” मॉडल अपनाए जाएंगे.
- स्पेस ट्रैफिक मैनेजमेंट और ऑर्बिटल मलबा नियंत्रण पर खास ध्यान दिया जाएगा. सुरक्षित और जिम्मेदार स्पेस ऑपरेशन को बढ़ावा मिलेगा.
- पोजिशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग में अमेरिका को वैश्विक मानक-निर्धारक बनाया जाएगा. इसमें पृथ्वी, अंतरिक्ष और चंद्र क्षेत्र सभी शामिल होंगे.
- जमीन, अंतरिक्ष और चंद्रमा से जुड़ा बुनियादी ढांचा और मानक विकसित किए जाएंगे. इससे मजबूत स्पेस इंडस्ट्रियल बेस और दीर्घकालिक प्राथमिकताओं को समर्थन मिलेगा.
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