Taliban Foreign minister Visit India: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले का शांत कस्बा देवबंद, जहां से कभी धार्मिक शिक्षा की मशाल जली थी, अब वही जगह अफगानिस्तान की राजनीति और दक्षिण एशिया की कूटनीति के केंद्र में आ गई है. कारण है कि तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा. कहा जा रहा है कि अपने सप्ताहभर के भारत दौरे के दौरान मुत्ताकी दारुल उलूम देवबंद जा सकते हैं. पहली नजर में यह एक धार्मिक यात्रा लगती है, लेकिन जो अंदर चल रहा है, वह बहुत गहरी भू-राजनीतिक कहानी बयान करता है.
Taliban Foreign minister Visit India: भारत दौरा और उसका असली मतलब
16 अक्टूबर तक चलने वाले इस भारत दौरे में मुत्ताकी भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करेंगे. संभावना यह भी है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भेंट करें. बैठकों में राजनीतिक, आर्थिक और व्यापारिक सहयोग, कांसुलर सेवाएं, सूखे मेवों का निर्यात, स्वास्थ्य क्षेत्र में साझेदारी और बंदरगाह प्रबंधन जैसे मुद्दे शामिल रहेंगे. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन मुत्ताकी को पूरा राजनयिक सम्मान दिया जाएगा.
यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब तालिबान ने रूस की अगुवाई वाले “मॉस्को फॉर्मेट” संवाद में हिस्सा लिया था. इससे संकेत मिलता है कि काबुल अब खुद को क्षेत्रीय शक्तियों के साथ जोड़ने की कोशिश में है.
Taliban Foreign minister Visit India: देवबंद क्यों महत्वपूर्ण है?
मुत्ताकी की संभावित देवबंद यात्रा को तालिबान की “आध्यात्मिक कूटनीति (Spiritual Diplomacy)” का हिस्सा माना जा रहा है. इसका मतलब है कि भारत के साथ तालिबान के रिश्तों को सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर मजबूत करना. विश्वस्तरीय रूप से देवबंद इस्लामी शिक्षा का नामी संस्थान है और हनफी विचारधारा का केंद्र भी. पाकिस्तान में स्थित दारुल उलूम हक्कानिया जिसे लोग “तालिबान की पाठशाला” कहते हैं ये भी इसी देवबंद के असर का विस्तार है.
यहीं पढ़े थे मुल्ला उमर (तालिबान के संस्थापक) और उनके कई सीनियर कमांडर. संस्थान के फाउंडर मौलाना अब्दुल हक खुद देवबंद के छात्र थे, और उनके बेटे सामी-उल-हक को लोग “तालिबान का जनक” कहते हैं. मुत्ताकी का यह दौरा केवल धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि पुराने रिश्तों और प्रभाव का नया संकेत भी माना जा रहा है.
पाकिस्तान से दूरी, भारत की ओर रुख
दशकों से पाकिस्तान खुद को देवबंदी इस्लाम का संरक्षक बताता आया है. वह तालिबान गुटों को राजनीतिक और सैन्य दोनों तरह से समर्थन देता रहा है. लेकिन मुत्ताकी की देवबंद यात्रा उस दावे को सीधी चुनौती देती है. तालिबान अब यह दिखाना चाहता है कि उसकी बौद्धिक और धार्मिक जड़ें पाकिस्तान नहीं, बल्कि भारत की भूमि में हैं. यह कदम तालिबान के लिए पाकिस्तान से धीरे-धीरे दूरी बनाने और भारत जैसे नए साझेदारों से जुड़ाव बढ़ाने की रणनीतिक पहल है.
भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ डिप्लोमेसी
नई दिल्ली की नजर में यह यात्रा एक “सॉफ्ट पावर” का अवसर है. भारत तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता दिए बिना भी संवाद का रास्ता खुला रख सकता है. भारतीय सुरक्षा हलकों में देवबंद को “स्थिरता का पुल (Bridge of Stability)” कहा जा रहा है. एक ऐसा माध्यम जो धार्मिक-सांस्कृतिक संवाद के जरिए तालिबान के साथ मानवीय जुड़ाव बनाए रख सकता है.
यह भारत के लिए एक संतुलित डिप्लोमैटिक कदम है जिससे वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति बनाए रखते हुए अफगानिस्तान के भीतर मानवता और स्थिरता के पक्ष में खड़ा रह सके.
तालिबान की विदेश नीति में बदलाव
अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में सत्ता संभालने के बाद तालिबान अब अपनी विदेश नीति को बहुआयामी बना रहा है. वह अब सिर्फ पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहना चाहता, बल्कि रूस, चीन, ईरान और भारत जैसे देशों के साथ रिश्तों को नए सिरे से गढ़ रहा है. मुत्ताकी की भारत यात्रा और संभावित देवबंद दर्शन उसी रणनीतिक बदलाव का प्रतीक हैं.
अब यह देखना बाकी है कि क्या मुत्ताकी की यह यात्रा दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन को प्रभावित करेगी या नहीं. लेकिन इतना तो तय है कि तालिबान अब अपने कूटनीतिक नक्शे को फिर से खींच रहा है, और उस नक्शे में भारत की उपस्थिति अब दर्ज हो चुकी है.
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