Pentagon Report on China: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन, भारत और अमेरिका के रिश्तों में लगातार बदलती परिस्थितियां क्षेत्रीय सुरक्षा और राजनीतिक संतुलन के लिए अहम हैं. हाल ही में अमेरिकी युद्ध विभाग की एक रिपोर्ट ने चीन-भारत संबंधों और अमेरिका-भारत रणनीतिक जुड़ाव को लेकर नई जानकारी पेश की है, जो भविष्य की कूटनीति और क्षेत्रीय संतुलन को समझने में महत्वपूर्ण है. अमेरिकी युद्ध विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, चीन संभवतः एलएसी पर तनाव कम होने का अवसर लेकर भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करना चाहता है. साथ ही, चीन यह भी चाहता है कि अमेरिका और भारत के संबंध और अधिक मजबूत न हों.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट में चीन के बढ़ते दावों और रणनीतिक रुख का खुलासा हुआ है. इसमें कहा गया है कि चीन ने अब भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश को अपनी ‘कोर इंटरेस्ट’ की सूची में शामिल कर लिया है, जिसका मतलब है कि इस मामले पर बीजिंग किसी भी तरह की बातचीत या समझौते के लिए तैयार नहीं है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि चीन ने ताइवान, साउथ चाइना सी में समुद्री विवाद और जापान के सेनकाकू द्वीपों को भी अपने प्रमुख हितों में शामिल किया है. चीनी नेतृत्व का मानना है कि इन क्षेत्रों पर नियंत्रण और एकीकरण चीन के ‘महान राष्ट्र पुनरुत्थान’ के लक्ष्य के लिए अनिवार्य है, जिसे 2049 तक पूरा करना है. इसके अलावा, चीन अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और संप्रभुता की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है और इस पर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगा.
चीन का कोर इंट्रेस्ट भारत के लिए कड़ी चुनौती
रिपोर्ट में भारत-चीन संबंधों और एलएसी के हालात पर भी प्रकाश डाला गया है. अक्टूबर 2024 में दोनों देशों ने एलएसी पर शेष गतिरोध वाले क्षेत्रों से सैनिकों को हटाने पर समझौता किया था, जो ब्रिक्स समिट के दो दिन पहले राष्ट्रपति शी चिनफिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के दौरान हुआ. इस मुलाकात के बाद मासिक उच्च स्तरीय बैठकों की शुरुआत हुई, जिनमें सीमा प्रबंधन, द्विपक्षीय सहयोग और यात्रा, वीजा, शिक्षा और मीडिया के आदान-प्रदान जैसे कदम शामिल थे.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन एलएसी पर तनाव कम करने की कोशिश करेगा ताकि द्विपक्षीय रिश्ते स्थिर हों और अमेरिका-भारत के संबंध और मजबूत न हो पाएं, लेकिन भारत चीन के इरादों को लेकर सतर्क रहेगा और दोनों पक्षों में अविश्वास बना रहेगा. कुल मिलाकर, चीन का कड़ा रुख और ‘कोर इंटरेस्ट’ की प्राथमिकता भारत के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर 2024 में भारतीय नेतृत्व ने चीन के साथ एक समझौते की घोषणा और ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शी चिनफिंग और नरेंद्र मोदी की द्विपक्षीय बैठक के बाद मासिक उच्च स्तरीय बैठकें शुरू हुईं, जिसमें सीमा प्रबंधन और द्विपक्षीय सहयोग के अगले कदमों पर चर्चा हुई, जैसे कि सीधी उड़ानें, वीजा सुविधा और शिक्षा तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में आदान-प्रदान. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत चीन की मंशा और कार्यवाहियों को लेकर सतर्क है और आपसी अविश्वास और अनसुलझे मुद्दे दोनों देशों के संबंधों में सीमाएं डालते हैं.
चीन की रणनीति और हित
चीन की राष्ट्रीय रणनीति 2049 तक ‘चीनी राष्ट्र का बड़ा पुनरुत्थान’ हासिल करने की है. इसके लिए चीन ने अपनी प्रभाव-क्षमता और वैश्विक सेना को मजबूत किया है, ताकि देश की संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके. रिपोर्ट में चीन के तीन मुख्य हितों को भी रेखांकित किया गया है. इसमें पहला- सीसीपी का नियंत्रण बनाए रखना. दूसरा- आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और तीसरा- संप्रभुता और क्षेत्रीय दावों की रक्षा और विस्तार करना.
पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका समेत कई देशों में बेस बनाना चाहता है चीन
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) की हालिया रिपोर्ट में चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य और अंतरिक्ष क्षेत्रों में बढ़ते सहयोग पर भी प्रकाश डाला गया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन ने पाकिस्तान में संभावित सैन्य अड्डा स्थापित करने पर विचार किया है. अमेरिकी युद्ध विभाग ने मंगलवार को संसद में प्रस्तुत अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘चीन गणराज्य से संबंधित सैन्य और सुरक्षा घटनाक्रम’ में बताया कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अतिरिक्त सैन्य आधार और सुविधाएं स्थापित करने की सक्रिय योजना बना रही है.
रिपोर्ट के अनुसार, ये नए सैन्य ठिकाने थलसेना, नौसेना और वायुसेना सभी की मदद करेंगे. पाकिस्तान उन देशों में से एक है, जहाँ चीन ने इस तरह के संभावित अड्डे लगाने पर विचार किया है. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि चीन ने विश्वभर में कई देशों में अड्डा स्थापित करने की संभावना पर ध्यान दिया है, जिनमें अंगोला, बांग्लादेश, बर्मा, क्यूबा, इंडोनेशिया, केन्या, मोजाम्बिक, नामीबिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, ताजिकिस्तान, थाईलैंड, तंजानिया, संयुक्त अरब अमीरात और वनुआतु शामिल हैं.
सैन्य सहायता भी कर रहा चीन
इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पीएलए मुख्य रूप से मलक्का जलडमरूमध्य, हॉर्मूज जलडमरूमध्य और अफ्रीका तथा मध्य एशिया में समुद्री मार्गों पर अपना सैन्य प्रभाव स्थापित करने में रुचि रखती है. रिपोर्ट में चीन के तीन प्रमुख लड़ाकू विमानों का भी जिक्र है, जिनमें पांचवीं पीढ़ी का एफसी-31, चौथी पीढ़ी का जे-10सी मल्टीरोल विमान, और चीन-पाकिस्तान के संयुक्त उत्पादन का जेएफ-17 हल्का लड़ाकू विमान शामिल हैं.
इसके अतिरिक्त, चीन ने काइहोंग और विंग लूंग ड्रोन कई देशों को सप्लाई किए हैं, जिनमें अल्जीरिया, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, इराक, मोरक्को, म्यांमार, पाकिस्तान, सर्बिया और यूएई शामिल हैं. रिपोर्ट के अनुसार, मई 2025 तक चीन ने पाकिस्तान को 20 जे-10सी लड़ाकू विमान उपलब्ध करवा दिए हैं, जिससे दोनों देशों के सैन्य संबंध और अधिक गहरे हुए हैं.
अमेरिका की भूमिका क्या होगी?
रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा करना चाहता है, लेकिन किसी देश पर प्रभुत्व जमाने या उसे अपमानित करने का इरादा नहीं रखता. इसके बजाय अमेरिका चीन के साथ रणनीतिक संवाद बढ़ाकर तनाव कम करने और टकराव से बचने की दिशा में काम करेगा.
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