Pakistan Big Bet After Trump Shahbaz Munir Meeting: पाकिस्तान फिर एक बार दुनिया के रणनीतिक नक्शे पर चर्चा में है. फील्ड मार्शल असीम मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की हालिया व्हाइट हाउस यात्रा के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के सामने एक बड़ा आर्थिक प्रस्ताव रखा है वो है अरब सागर पर नया बंदरगाह बनाने का. यह सिर्फ एक बंदरगाह नहीं, बल्कि पाकिस्तान की नई विदेश नीति और अमेरिका से रिश्तों की बदलती कहानी का प्रतीक माना जा रहा है. फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट ने इस पूरी योजना का खुलासा किया है, जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान ने अमेरिकी निवेशकों को बलूचिस्तान के पासनी शहर में बंदरगाह बनाने और उसे संचालित करने का प्रस्ताव दिया है. यानी, ग्वादर के बाद अब पासनी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति का अगला केंद्र बनने जा रहा है.
Pakistan Big Bet After Trump Shahbaz Munir Meeting: अरब सागर पर नया पावर पॉइंट
रिपोर्ट के मुताबिक, असीम मुनीर के सलाहकारों ने अमेरिकी अधिकारियों से संपर्क कर इस बंदरगाह परियोजना का खाका साझा किया है. इस योजना में अमेरिकी निवेशकों द्वारा पासनी में एक टर्मिनल का निर्माण और संचालन शामिल है, जिसका मकसद पाकिस्तान के महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों तक आसान पहुंच बनाना है. पासनी, बलूचिस्तान प्रांत के ग्वादर जिले में स्थित है. यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से बेहद अहम है, क्योंकि इसकी सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से मिलती हैं. फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, यह बंदरगाह किसी भी अमेरिकी सैन्य ठिकाने के लिए नहीं, बल्कि पश्चिमी पाकिस्तान के खनिज-समृद्ध प्रांतों से जोड़ने वाले रेल नेटवर्क के विकास के लिए फंड जुटाने की योजना का हिस्सा है.
व्हाइट हाउस मीटिंग से जुड़ा लिंक
फाइनेंशियल टाइम्स ने बताया कि यह प्रस्ताव सितंबर में व्हाइट हाउस में हुई मुलाकात के तुरंत बाद अमेरिका को सौंपा गया. इस बैठक में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख असीम मुनीर मौजूद थे. शरीफ ने ट्रंप से कृषि, प्रौद्योगिकी, खनन और ऊर्जा क्षेत्रों में अमेरिकी निवेश की मांग की थी. यह प्रस्ताव ट्रंप से मिलने से पहले ही कुछ अमेरिकी अधिकारियों को दिखाया गया था, ताकि मुलाकात के दौरान दोनों पक्ष एक ठोस आर्थिक एजेंडे पर बात कर सकें.
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि ट्रंप का पाकिस्तान के प्रति नया रुख अमेरिकी नीति में एक बड़ा बदलाव दिखाता है. पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने पूरे कार्यकाल में पाकिस्तान से दूरी बनाए रखी थी और यहां तक कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद वॉशिंगटन इस्लामाबाद पर शक की नजरों से देखता था. लेकिन जनवरी में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही पाकिस्तान-अमेरिका रिश्तों में अप्रत्याशित नजदीकी आई. जून में ट्रंप और असीम मुनीर की निजी बैठक इस बदलते समीकरण का पहला संकेत थी.
क्रिप्टो डील से शुरू हुआ नया रिश्ता
एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, मई में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष से ठीक पहले, ट्रंप परिवार की एक कंपनी ने इस्लामाबाद के साथ क्रिप्टोकरेंसी को लेकर समझौता किया था. यानी, आर्थिक रिश्तों का पहला धागा क्रिप्टो डील से जुड़ा था जो अब वही रिश्ता अरब सागर तक पहुंच गया है.
व्हाइट हाउस में क्या हुई बातचीत
व्हाइट हाउस में हुई इस बैठक में क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी सहयोग और आर्थिक साझेदारी जैसे मुद्दे उठे. प्रधानमंत्री कार्यालय के बयान में कहा गया कि शहबाज शरीफ ने ट्रंप को “शांति पुरुष” कहा और भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने में उनके “साहसी और निर्णायक नेतृत्व” की तारीफ की. शरीफ ने यह भी कहा कि पाकिस्तान अमेरिकी कंपनियों को कृषि, आईटी, खान, खनिज और ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश करने के लिए आमंत्रित करता है. यह वही संदेश था जो पाकिस्तान लंबे समय बाद वॉशिंगटन में देना चाहता था “हम फिर से तैयार हैं, अब निवेश करें.”
अमेरिका-पाकिस्तान व्यापार का आंकड़ों की जुबानी देखें
दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्ते भी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहे हैं. 2024 में अमेरिका-पाकिस्तान का वस्तु और सेवा व्यापार 10.1 अरब अमेरिकी डॉलर का रहा, जो 2023 की तुलना में 6.3% (52.3 करोड़ डॉलर) अधिक था. अमेरिका ने पाकिस्तान को 2.1 अरब डॉलर का निर्यात किया, जो पिछले साल से 3.3% बढ़ा. वहीं पाकिस्तान से 5.1 अरब डॉलर का आयात हुआ, जो 4.8% ज्यादा था. कुल मिलाकर अमेरिका का पाकिस्तान के साथ व्यापार घाटा 3 अरब डॉलर का रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 5.9% बढ़ा.
ग्वादर बनाम पासनी- रणनीति की दोधारी तलवार
पाकिस्तान में पहले से ही चीन की मदद से ग्वादर बंदरगाह मौजूद है, जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है. लेकिन अब पासनी में अमेरिकी निवेश वाला बंदरगाह लाने की योजना पाकिस्तान की विदेश नीति में संतुलन साधने की कोशिश मानी जा रही है. यानी, एक ओर बीजिंग से साझेदारी बनी रहे और दूसरी ओर वॉशिंगटन से भी आर्थिक रिश्ता मजबूत हो.
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