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चीन बना रहा दुनिया का पहला ऐसा आईलैंड, 4 महीने तक समुंदर में रह सकेगा आत्मनिर्भर, परमाणु हमला भी होगा बेअसर

China Deep Sea Floating Island: चीन 78,000 टन वजनी एक कृत्रिम द्वीप बना रहा है, जो परमाणु हमलों को भी सहन कर सकता है. यह एक मोबाइल, सेमी-सबमर्सिबल, ट्विन-हॉल प्लेटफॉर्म है, जो बिना नई सप्लाई के 238 लोगों को चार महीने तक सपोर्ट कर सकता है. चीन 2028 तक इसे संचालन में लाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है.

China Deep Sea Floating Island: चीन अपनी सैन्य क्षमताओं को और बढ़ाने की दिशा में एक और भारी कदम चल रहा है. एशिया का ड्रैगन चीन 78,000 टन वजनी एक कृत्रिम द्वीप बना रहा है, जो परमाणु हमलों को भी सहन कर सकता है. यह एक मोबाइल, सेमी-सबमर्सिबल, ट्विन-हॉल प्लेटफॉर्म है, जो बिना नई सप्लाई के 238 लोगों को चार महीने तक सपोर्ट कर सकता है. यह चीन के द्वारा बनाया गया नया फुजियान एयरक्राफ्ट कैरियर के लगभग बराबर है. यह डीप-सी ऑल-वेदर रेजिडेंट फ्लोटिंग रिसर्च फैसिलिटी दुनिया की पहली मोबाइल, आत्मनिर्भर कृत्रिम द्वीप सुविधा मानी जा रही है. 2028 में परिचालन शुरू करने के बाद, यह घर से दूर समुद्र में संचालित हो सकेगी और विवादित समुद्री क्षेत्रों में अभूतपूर्व तरीके से शक्ति प्रदर्शित करने में सक्षम होगीय

दिसंबर 2024 में चाइना स्टेट शिपबिल्डिंग कॉरपोरेशन के साथ इसका डिजाइन कॉन्ट्रैक्ट हुआ था. यह दिखाता है कि प्लेटफॉर्म 138 मीटर लंबा और 85 मीटर चौड़ा होगा. इसका मुख्य डेक पानी की सतह से 45 मीटर ऊपर होगा. ट्विन-हॉल संरचना को सी स्टेट 7 में काम करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो 6-9 मीटर ऊँची लहरों को झेल सकता है और कैटेगरी 17 के टाइफून तक में टिक सकता है. यह सबसे शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय तूफान माने जाते हैं. इसकी 15 नॉट्स की रफ्तार पर महीनों तक समुद्र में रहने की क्षमता इसे लंबे समय तक अनुसंधान गतिविधियों, जैसे डीप-सी मॉनिटरिंग, उपकरण परीक्षण और संभावित समुद्री तल संसाधन अन्वेषण में सक्षम बनाती है.

दुर्लभ परमाणु-विस्फोट-प्रतिरोधी डिजाइन

हालाँकि चीन इस प्लेटफॉर्म को नागरिक वैज्ञानिक अवसंरचना बताता है, लेकिन इसके डिजाइन में GJB 1060.1-1991 मिलिटरी स्टैंडर्ड स्पेसिफिकेशन है, जो परमाणु विस्फोट-प्रतिरोध की एक का संदर्भ देता है. इसका अर्थ है कि यह संरचना परमाणु हमले की सबसे खराब स्थिति को भी झेलने में सक्षम होगी. इसमें एक दुर्लभ, परमाणु-विस्फोट-प्रतिरोधी डिजाइन, जिसमें मेटामटेरियल सैंडविच पैनल का उपयोग किया गया है, जो इस प्लेटफॉर्म का सबसे प्रमुख हिस्सा है. यह तैरता प्लेटफॉर्म सिर्फ इंजीनियरिंग का कारनामा नहीं, बल्कि चीन की नई रणनीतिक चाल है. यह बीजिंग को एक मोबाइल, लचीली और लगातार मौजूद रहने वाली ताकत देता है. विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले महीनों में दक्षिण चीन सागर नया वैश्विक हॉटस्पॉट बन सकता है,  जहाँ हर निर्माण, हर तैनाती और हर कदम नए विवाद की शुरुआत करेगा.

विनाशकारी झटकों को हल्के दबाव में बदल देगा

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीनी वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तकनीक “विनाशकारी झटकों को हल्के दबाव” में बदल सकती है. चीनी शोधकर्ताओं ने चीनी जर्नल ऑफ शिप रिसर्च में प्रकाशित एक पीयर-रिव्यू पेपर में लंबी अवधि तक, हर मौसम में समुद्र में टिके रहने में सक्षम इस नई गहरे समुद्र की तैरती अनुसंधान सुविधा के विस्तृत योजनाओं का उल्लेख किया है. टीम ने कहा, “इसके सुपर-स्ट्रक्चर में ऐसे महत्वपूर्ण कम्पार्टमेंट हैं जो इमरजेंसी पावर, कम्युनिकेशन और नेविगेशन कंट्रोल सुनिश्चित करते हैं, इसलिए इन स्थानों के लिए परमाणु विस्फोट सुरक्षा बिल्कुल आवश्यक है.”

लंबी अवधि तक समुद्र में निवास के लिए किया गया डिजाइन

इसका आधिकारिक नाम डीप-सी ऑल-वेदर रेजिडेंट फ्लोटिंग रिसर्च फैसिलिटी  है, जिसका अर्थ है दूर-समुद्री तैरता मोबाइल द्वीप. इस परियोजना के पीछे एक दशक से अधिक का शोध और योजना है. शंघाई जियाओ तोंग यूनिवर्सिटी- SJTU के प्रोफेसर यांग डेकिंग के नेतृत्व वाली टीम ने बताया, “यह डीप-सी मेजर साइंटिफिक फैसिलिटी हर मौसम में लंबी अवधि तक समुद्र में निवास के लिए डिजाइन की गई है.” टीम के अनुसार, इसकी सुपर-स्ट्रक्चर में इमरजेंसी पावर, कम्युनिकेशन और नेविगेशन कंट्रोल के लिए कम्पार्टमेंट शामिल हैं, जिनके लिए न्यूक्लियर ब्लास्ट प्रोटेक्शन बिल्कुल आवश्यक माना गया है.

चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना के तहत 2028 तक संचालन में

इसे चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना के तहत एक राष्ट्रीय वैज्ञानिक अवसंरचना कार्यक्रम के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. SJTU के अनुसार यह प्लेटफॉर्म पिछले एक दशक से विकासाधीन है. परियोजना का नेतृत्व कर रहे अकादमिक लिन झोंगकिन ने पिछले साल इकोनॉमिक इन्फॉर्मेशन डेली को बताया था, “हम डिजाइन और निर्माण को पूरा करने के लिए तेजी से काम कर रहे हैं और 2028 तक इसे संचालन में लाने का लक्ष्य है.” परियोजना के निर्धारित परिचालन क्षेत्र व्यापक महासागरीय क्षेत्रों को कवर करते हैं, जिनमें संभवतः दक्षिण चीन सागर जैसे विवादित जलक्षेत्र भी शामिल हो सकते हैं, वे क्षेत्र जहाँ बीजिंग ने हाल के वर्षों में अपनी समुद्री उपस्थिति और बुनियादी ढांचे का विस्तार किया है.

1. आखिर क्या है यह आर्टिफिशियल आइलैंड?

चीन ने इसे दूरगामी समुद्री मिशनों के लिए डिजाइन किया है.

इसे किसी भी लोकेशन पर ले जाकर तुरंत तैनात किया जा सकता है.

प्लेटफॉर्म में कमांड सेंटर, एडवांस्ड रडार, एंटी-मिसाइल सुरक्षा और अत्यधिक तापमान झेलने वाली आर्मर्ड लेयर लगाई गई है.

सबसे बड़ा दावा, यह न्यूक्लियर अटैक के बाद भी यह अपनी ऑपरेशनल क्षमता बनाए रख सकता है.

2. क्यों बनाया गया यह न्यूक्लियर-सेफ समुद्री किला?

दक्षिण चीन सागर, दुनिया के लगभग 30% समुद्री व्यापार का मार्ग है.

चीन “नाइन-डैश लाइन” के आधार पर इस सम्पूर्ण क्षेत्र पर दावा करता है, जिसे अंतरराष्ट्रीय अदालत पहले ही खारिज कर चुकी है.

चीन की नीति है कि अगर कानूनी दावा न चले, तो जमीनी (या समुद्री) हकीकत बदल दो.

यही वजह है कि यह क्षेत्रीय देशों को डराता भी है और चीन की रणनीतिक मंशा को उजागर भी करता है.

आर्टिफिशियल द्वीप और अब यह फ्लोटिंग आइलैंड इसी रणनीति के उन्नत संस्करण हैं:
इसे डुबाना कठिन

मिसाइलों से नष्ट करना मुश्किल

हर मौसम में सक्रिय

3. किसे होगी सबसे ज्यादा चिंता?

वियतनाम, फिलीपींस, ताइवान, जापान और चीन के बीच साउथ चाइना सी में दशकों पुराना विवाद है.

चीन पहले ही वियतनामी मछली पकड़ने वाली नावों को रोके, तेल खोज मिशन बाधित कर चुका है.

फिलीपींस के साथ उसका समुद्री एरिया को लेकर विवाद है. 

4. समुद्री विवादों में चीन का सबसे बड़ा दांव: स्थायी सैन्य उपस्थिति

चीन जानता है कि अंतरराष्ट्रीय कानून और कूटनीति उसके दावों को वैध नहीं बना सकते.

इसलिए वह ग्राउंड रियलिटी यानी वास्तविक नियंत्रण बनाने में लगा है.

उसकी रणनीति में शामिल है:
आर्टिफिशियल द्वीप

मिसाइल बेस

हवाई रनवे

और अब यह मोबाइल सैन्य प्लेटफॉर्म

संदेश साफ है कि पहले कब्जा करो, फिर विरोध करने वालों को खुद सोचने दो कि वे कितनी दूर जा सकते हैं.

5. क्या दक्षिण चीन सागर और अस्थिर होगा?

विशेषज्ञों का कहना है:
यदि चीन ऐसे कई फ्लोटिंग आइलैंड तैनात करता है, तो यह क्षेत्र भू-राजनीतिक तनाव से कभी मुक्त नहीं रहेगा.

वियतनाम मिसाइल-डिटरेंस बढ़ा सकता है.

फिलिपींस अमेरिकी सहयोग से नौसेना मजबूत कर रहा है.

भारत भी वियतनाम को ब्रह्मोस उपलब्ध कराने पर विचार कर चुका है.

यानी यह सीधे-सीधे सैन्य शक्ति के संतुलन का खेल बनता जा रहा है.

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Anant Narayan Shukla
Anant Narayan Shukla
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक। वर्तमानः डिजिटल पत्रकार @ प्रभात खबर। इतिहास को समझना, समाज पर लिखना, धर्म को जीना, खेल खेलना, राजनीति देखना, संगीत सुनना और साहित्य पढ़ना, जीवन की हर विधा पसंद है। क्रिकेट से लगाव है, इसलिए खेल पत्रकारिता से जुड़ा हूँ.

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