Birth of Pakistan: पाकिस्तान 1947 में अस्तित्व में आया, जिसे बनाने में भारत के दो हाथ काट दिए गए. पश्चिमी छोर पर पंजाब, सिंध और कश्मीर, तो पूर्वी हिस्से में बंगाल को छिन्न-भिन्न कर दिया गया. भारत के विभाजन (Partition of India) पर कभी खुलकर चर्चा नहीं होती थी, लेकिन इतिहास में एक अहम मोड़ तब आया जब आज से ठीक 88 साल पहले पहली बार ‘पाकिस्तान’ नाम सार्वजनिक तौर पर सामने आया. यह नाम उस कल्पना का प्रतीक था, जिसमें उपमहाद्वीप के मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र बनाने की बात की गई थी. अंग्रेजों की पीठ पीछे के षड्यंत्र और अलीगढ़ स्कूल जैसे विचारों को पाकिस्तान के जन्म की कोख कहा जाए, तो मोहम्मद अली जिन्ना, चौधरी रहमत अली और ‘अल्लामा’ इकबाल जैसे लोग उसकी संतान. तो आइए पाकिस्तान के ज्नम के इस नजरिए पर भी एक नजर दौड़ाते हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों की स्थिति बहुत खराब होने लगी थी. वे भारत जैसे उपमहाद्वीप को नियंत्रण में रखने के काबिल नहीं बचे थे. हिटलर के खिलाफ ‘महान जीत’ हासिल करने वाले ब्रिटिश प्रधानमंत्री विस्टर्न चर्चिल भी चुनाव हार गए. दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य अंग्रेजी शासन व्यवस्था में लेबर पार्टी की एंट्री हुई, जिसने सितंबर 1945 में भारत को डोमिनियन जैसी स्वतंत्रता देने का ऐलान किया. मार्च 1946 में इसके तहत एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया. इसमें भारत को एक संघ बनाने का प्लान बनाने का प्लान पेश किया गया, जिसमें हिंदू बहुल प्रांत, मुस्लिम बहुल पश्चिमी प्रांत और मुस्लिम बहुल पूर्वी प्रांत बनाने का प्रस्ताव था. इसने पाकिस्तान बनने की मांग एक तरह से खारिज कर दी थी, इस पर मुस्लिम लीग को ऐतराज था, तो कांग्रेस को मजहब के आधार पर देश बंटवारा स्वीकार नहीं था. वाल्टर रीड अपनी किताब कीपिंग द ज्वेल इन क्राउन में इसे अंग्रेजों की भारत और हिंद महासागर में अपने हितों की रक्षा का प्लान बताते हैं.
हालांकि कांग्रेस ने किसी तरह मुद्दे को संभाला और कैबिनेट मिशन के तहत एक अंतरिम सरकार का गठन किया. इसने सभी मुद्दों पर चर्चा की जिस पर दोनों लगभग एकमत हो गए. इसी बीच कांग्रेस ने इसमें यह बात जोड़ी कि भारत की संविधान सभा गठन के बाद कैबिनेट मिशन योजना के प्रस्तावों को खारिज करने का अधिकार होगा. इसके साथ ही उसने समूहों वाले प्रस्ताव को खारिज कर दिया. इस पर मुस्लिम लीग भड़क गई. उसने प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस मनाने का ऐलान कर दिया और 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में हजारों मासूमों का खून बहा दिया गया. इसका एकमात्र लक्ष्य था पाकिस्तान बनाना और बाद में यह एक तरह से सफल भी हुआ. मानव इतिहास के अतीत और आज वर्तमान तक दुनिया का सबसे बड़ा विभाजन हुआ, जिसमें करोड़ों लोग मारे गए, विस्थापित हुए और दो धर्मों के बीच ऐसी कटुता पैदा कर गया, जिसे पाटने में भारत 78 साल से लगा हुआ है.

पाकिस्तान शब्द का जन्म कैसे हुआ?
पाकिस्तान एक कौमी नजरिया है. जिसे इस्लाम के नाम पर बनाया गया. इस शब्द को पैदा करने वाला शख्स कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला एक आम इंसान था. चौधरी रहमत अली को पाकिस्तान आंदोलन का आरंभकर्ता कहा जाता है. ब्रिटिश हुकूमत की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति के दौर में जब धर्म के आधार पर अलग देश की धारणा आकार ले रही थी, तब सबसे पहले ‘पाकिस्तान’ नाम का खाका रहमत अली ने ही पेश किया. वे मुस्लिम राष्ट्रवाद के समर्थक माने जाते थे. कहा जाता है कि 1932 में कैम्ब्रिज में रहमत अली ने पहली बार कागज पर ‘Pakistan’ लिखा. इसका मतलब उनके अनुसार पवित्र भूमि था. फारसी और उर्दू में पाक का मतलब होता है शुद्ध और स्तान/स्थान का अर्थ भूमि से है. उनके साथी अब्दुल करीम जब्बार ने बताया था कि 1932 में थेम्स नदी किनारे घूमते हुए यह नाम अली के दिमाग में आया. वहीं उनकी सेक्रेटरी मिस फ्रॉस्ट के अनुसार, अली को यह नाम लंदन की एक बस में अचानक सूझा.
रहमत अली और ‘पाकिस्तान’ नाम
चौधरी रहमत अली खुद को ‘पाकिस्तान नेशनल मूवमेंट का संस्थापक’ कहा करते थे. 28 जनवरी 1933 को उन्होंने एक पुस्तिका/पैम्फलेट/पर्ची जारी की जिसका नाम था- नाउ ऑर नेवर: आर वी टू लिव ऑर पेरिश फॉरएवर (अभी नहीं तो कभी नहीं…). इसमें उन्होंने भारत की पाँच उत्तरी इकाइयों में रहने वाले तीन करोड़ मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्रीय पहचान की जोरदार माँग की और कहा कि उन्हें धार्मिक, सामाजिक और ऐतिहासिक आधार पर एक अलग संघीय संविधान दिया जाना चाहिए. कई इतिहासकारों के अनुसार, पाकिस्तान की अवधारणा का वास्तविक जन्म इसी दस्तावेज से माना जाता है, एक ऐसा विचार जो 1940 के दशक तक मुख्यधारा बन गया.
रहमत अली का ‘पाकिस्तान’
चौधरी रहमत अली कहना था कि ब्रिटिश भारत एक ही राष्ट्र का घर नहीं था, बल्कि यह एक राजनीतिक संरचना थी जिसे अंग्रेजों ने पहली बार इतिहास में बनाया. उनके मुताबिक, भारत में प्राचीन काल से ही कई राष्ट्र मौजूद थे, जिनमें से एक उनका अपना राष्ट्र था. यहां उनके राष्ट्र का अर्थ कौम से था. जो धर्म, मजहब और संस्कृति के लिहाज से बिल्कुल अलग था. उनका पाकिस्तान पाँच उत्तरी प्रांतों- पंजाब (P), नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस/अफगान प्रांत (A), कश्मीर (K), सिंध (S) और बलूचिस्तान (tan) से मिलकर बना था. उन्होंने तर्क दिया कि यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट राष्ट्रीय पहचान रखता है और अखिल भारतीय महासंघ में शामिल होकर दस में एक अल्पसंख्यक बन जाएगा. उन्होंने अपनी पैंफलेट (पर्ची) में इन क्षेत्रों को मिलाकर एक मैप भी बनाया था.
‘एक सपना’ जिसे गंभीरता नहीं मिली
रहमत अली की पुस्तिका को उस समय खास प्रतिक्रिया नहीं मिली. कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने उनके विचार को एक दिवास्वप्न करार दिया. 1934 में जब वे जिन्ना से मिले और अपने विचार बताए, तो जिन्ना ने बेहद उपेक्षापूर्ण ढंग से जवाब दिया- मेरे प्यारे लड़के, जल्दबाजी मत करो. पानी को बहने दो, वह खुद ही अपना रास्ता बना लेगा. लेकिन रहमत अली रुके नहीं. उन्होंने Pakistan: The Fatherland of Pak Nation (पाकिस्तान: पाक राष्ट्र की जन्मभूमि) प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने अपने विचार को और विस्तार दिया. हालाँकि पुस्तक में ऐतिहासिक तथ्यों का अनुपात कमजोर था, फिर भी यह आने वाले वर्षों में कई लोगों को प्रभावित करने वाली थी.

अल्लामा इकबाल की भूमिका
अल्लामा का अर्थ है विद्वान. निश्चित तौर पर उन्होंने जब 1904 में सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान लिखा था, तो इसने भारत की एकता में जान फूंक दी. लेकिन उन्होंने कुछ ही साल बाद 1910 में मिल्ली तराना लिखा, जिसमें उन्होंने मुस्लिम हैं, सारा वतन जहां हमारा लिखा. ऐसे में कुछ इतिहासकारों ने दावा किया कि पाकिस्तान का विचार सबसे पहले मशहूर शायर और राजनैतिक चिंतक मोहम्मद इकबाल ने दिया था. यह बात पूरी तरह न सही, लेकिन आंशिक रूप से ठीक मानी जाती है.
1930 में रहमत अली, इंग्लैंड में अल्लामा इकबाल से मिले थे. वे उस समय इकबाल इलाहाबाद अधिवेशन में अलग मुस्लिम राष्ट्र की आवश्यकता पर बोल चुके थे. इस बातचीत में ‘पाकिस्तान’ जैसे शब्द पर विचार हुआ था, लेकिन इसका प्रचार उस समय नहीं किया गया. जवाहरलाल नेहरू और एडवर्ड थॉम्पसन जैसे लोगों ने भी लिखा कि पाकिस्तान की सोच के पीछे इकबाल का प्रभाव था. लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि सबसे पहले इसे औपचारिक रूप से दुनिया के सामने रहमत अली ने रखा और इसी से पाकिस्तान आंदोलन की शुरुआत हुई.
जिन्ना ने बदला नजरिया और लड़ाई तेज हो गई
1937 के बाद हालात बदलने लगे. कांग्रेस से जिन्ना का संबंध खराब हो चुका था और उनकी राजनीति अब अलगाववाद की ओर मुड़ रही थी. इसी दौरान रहमत अली की पाकिस्तान संबंधी अवधारणाएँ मुख्यधारा विमर्श में जगह पाने लगीं. 1940 में मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में प्रसिद्ध लाहौर प्रस्ताव पारित हुआ, जिसमें उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी भारत के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों को स्वतंत्र और संप्रभु राज्यों में बदलने की बात कही गई. हालाँकि इस प्रस्ताव में पाकिस्तान शब्द नहीं था, लेकिन जिन्ना के भाषणों में रहमत अली की प्रतिध्वनि साफ सुनाई देती थी.
1940 से 1943 के बीच पाकिस्तान शब्द जिन्ना और मुस्लिम लीग के नेताओं के भाषणों और पत्राचार में शामिल होने लगा. भारतीय इतिहास पर एक समग्र किताब लिखने वाले राजीव अहीर लिखते हैं कि 1930 के दशक के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मुसलमानों की सहभागिता बिल्कुल कम होने लगी थी. यह अंग्रेजों की फूट डालों और राज करो की शत प्रतिशत न सही तो कम से 90% सफलता तो बिल्कुल कही जा सकती है. 1905 में बंगाल विभाजन के बाद से 1947 में भारत विभाजन और रहमत अली का सपना पाकिस्तान हकीकत में बदल गया.

रहमत अली की भूमिका
रहमत अली न तो कोई बड़े नेता थे, न ही उन्होंने 1930-40 के दशक में उपमहाद्वीप में अधिक समय बिताया. उनकी भूमिका केवल विचार और लेखन तक सीमित थी. वे अल्लामा इकबाल की तरह वे बड़े जनसमूह तक नहीं पहुँचे. लेकिन पाकिस्तान की कल्पना को जन्म देने में उनका योगदान महत्वपूर्ण था, शायद अनिवार्य भी. उनकी लेखनी में द्विराष्ट्र सिद्धांत (टू नेशन थ्योरी) का सबसे साहसी और स्पष्ट रूप देखने को मिलता है, वही सिद्धांत जिसे बाद में जिन्ना और मुस्लिम लीग ने लोकप्रिय बनाया. रहमत अली ने पाकिस्तान की उसी कल्पना की पहली नींव रखी. जिन्ना या इकबाल जितनी शोहरत भले ही उन्होंने न पाई हो, लेकिन पाकिस्तान का बीज सबसे पहले उनके ही मन में अंकुरित हुआ था.
उसी पाकिस्तान में दफन न हो पाए रहमत अली
लेकिन पाकिस्तान जब बना तो यही चौधरी रहमत अली अपने उसी कैंब्रिज शहर के हम्बर स्टोन रोड की एक बिल्डिंग के तीसरे तल्ले पर उदास बैठा था. उसे पूछने वाला कोई नहीं था. रहमत भारत के बंटवारे और पाकिस्तान के जन्म से खुश नहीं था, क्योंकि उसे पूरा पंजाब चाहिए था. उसे लगा कि जिन्ना ने पंजाब का बंटवारा करके सही नहीं किया. लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लापिएरे की किताब फ्रीडम एट मिडनाइट में चौधरी के बारे में जिक्र आता है कि वह इस बारे में गंभीर विश्लेषण तैयार कर रहा था. लेकिन इस बार उसकी बातों पर ध्यान देने वाला कोई नहीं था. भारत को तोड़कर पाकिस्तान को जन्म देने वाला बीज तैयार करने वाला चौधरी रहमत अली 3 फरवरी, 1951 को कैंब्रिज में मरा और उसे पाकिस्तान में दो गज जमीन भी न मिली. कयामत की रात का इंतजार करने के लिए उसे कैंब्रिज के ही न्यू मार्केट का कब्रिस्तान मिला.
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