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यूं ही नहीं हथियाना चाहते हैं ट्रंप, ग्रीनलैंड में मिला बहुत बड़ा खजाना, वैज्ञानिक भी हुए अलर्ट 

Arctic Ocean Gas Hydrate: आर्कटिक महासागर की सतह के नीचे वैज्ञानिकों ने एक ऐसी दुनिया की खोज की है जहां से मिथेन गैस के फव्वारे निकल रहे हैं और अलग किस्म की प्रजातियां रहती हैं. यह खोज पृथ्वी के सबसे गहरे समुद्री जीवन को लेकर इंसानों की सोच को बदल सकती है.  

Arctic Ocean Gas Hydrate: हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अमेरिका को  ग्रीनलैंड की जरूरत है, जिसके बाद लुइजियाना के गवर्नर जेफ लैंड्री को ग्रीनलैंड के लिए विशेष दूत भी नियुक्त किया. इसी बीच आर्कटिक महासागर से एक बड़ा ही हैरान कर देना वाला रिसर्च सामने आया है. वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड सागर में समुद्र की गहराई में एक नए इकोसिस्टम की खोज की है. यहां मीथेन गैस का बड़ा भंडार मौजूद है, जहां ऐसे जीव जंतु रहते हैं जो सामान्य परिस्थितियों में जीवित नहीं रह सकते हैं.

वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस खोज में मीथेन गैस, कच्चा तेल और अलग तरह के समुद्री जीव जंतु वाली प्रजातियां पाईं गई है. यह रिसर्च नेचर कम्यूनिकेशंस (Nature Communications) नाम के जर्नल में पब्लिश किया गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह खोज आर्कटिक क्षेत्र के भविष्य और समुद्र की गहराइयों में चलने वाली छिपी हुई प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए बहुत जरूरी है. आर्कटिक महासागर में फ्रेया हाइड्रेट माउंड्स की ये खोज अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने की है. 

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी कई बार आर्टिक क्षेत्र को वैज्ञानिकों के रिसर्च के लिए खोलने की बात कही है. इसी बीच ग्रीनलैंड सागर से इस रिसर्च का सामने आना एक बड़ा संकेत है कि आने वाले समय में इस क्षेत्र को पूरी तरह से रिसर्च के लिए खोल दिया जाए.

वैज्ञानिकों ने आर्कटिक महासागर की गहराई में एक अलग तरह की खोज की है. ग्रीनलैंड सागर में 3640 मीटर की गरहाई पर, रिसर्चर्स ने मीथेन गैस के भंडार से समृद्ध और असामान्य मीथेन गैस के इलाके को फ्रेया हाइड्रेट माउंड्स नाम दिया गया है, जो कि दुनिया में खोजा गया अब तक का सबसे गहरा गैस हाइड्रेट कोल्ड सीप माना जा रहा है. इस खोज ने वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया है. वैज्ञानिकों ने यहां समुद्र की गहराई में एक बहुत ही बड़ा टीला देखा जहां से लगातार मीथेन गैस और कच्चा तेल रिसता रहता है. यह खोज जितना हैरान करने वाली है उतनी ही चिंताजनक भी है. वैज्ञानिकों ने पाया कि यहां से निकलने वाली मीथेन गैस की धाराएं समुद्र से 3300 मीटर ऊपर तक उठ रही है. 

फ्रेया हाइड्रेट माउंड्स क्यों हैं खास ?

फ्रेया हाइड्रेट माउंड्स अपनी गहराई के लिए जाना जाता है. आमतौर पर गैस हाइड्रेट माउंड्स समुद्र की सतह से 2000 मीटर से कम की गहराई में पाए जाते हैं, लेकिन यह इकोसिस्टम समुद्री सतह से लगभग 1800 मीटर के आसपास पाया गया है. इस खोज ने वैज्ञानिकों की पुरानी मान्यताओं को चुनौती दी है, साथ ही यह दिखाता है कि आर्कटिक महासागर का समुद्री तल अब भी काफी हद तक अनजान है.

समुद्र के नीचे पनप रही एक अनोखी इकोसिस्टम

सबसे बड़ी हैरानी की बात है कि जहां सूरज की रौशनी तक नहीं पहुंचती वहां भी कुछ जीव पनप रहे हैं. फ्रेया हाइड्रेट माउंड्स के आसपास वैज्ञानिकों को ऐसे जीव भी मिले हैं जो धूप की बजाय केमिकल्स से एनर्जी लेते हैं, जिन्हें केमोसिंथेटिक जीव कहा जाता है. इन्ही जीवों में ट्यूबवॉर्म, स्नेल्स और छोटे समुद्री जीव जैसे एम्फीपॉड्स भी शामिल है. 

सबसे खास बात है कि यह दिखने में बिल्कुल भी उन समुद्री जीवों की तरह लगते हैं, जो हाइड्रोथर्मल वेंट के पास पाए जाते हैं जहां से गर्म पानी निकलता है. जबकि फ्रेया हाइड्रेट माउंड्स एक ठंडी रिसाव वाली जगह है. इससे यह साफ पता चलता है कि समुद्र की गहराइयों में मौजूद अलग-अलग वातावरणों के बीच भी आपसी संबंध हो सकते हैं.

इस रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि इन जीवों के फैलाव और रहन सहन पर और भी गहरे शोध की जरूरत है. उनके अनुसार, इस इलाके में ऐसे और भी कई टीले छिपे हो सकते हैं. पर्यावरण के हिसाब से यह खोज बहुत ही चौंकाने वाला और चिंता बढ़ाने वाला है. इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि समुद्र की गहराई से निकलने वाली मीथेन गैस की लपटें पानी से 3300 मीटर ऊपर तक उठ रही हैं जो कि अब तक सबसे बड़ी मीथेन गैस धाराओं में से एक है. 

मीथेन एक ग्रीनहाउस गैस है जो कार्बन डाइऑक्साइड से कहीं ज्यादा हीट को अब्जॉर्ब करने का काम करती है. रिसर्च में सामने आया कि यह गैस समुद्र के नीचे मौजूद मायोसीन सेडिमेंट्स से निकलती हुई लग रही है, जो समुद्र के अंदर कोई भूवैज्ञानिक गतिविधि का संकेत देती है. साथ ही इतनी गहराई में कच्चे तेल का मिलना इसे और भी अहम बनाता है.

इस रिसर्च की मुख्य वैज्ञानिक जूलियाना पनिएरी ने इस खोज को असाधारण बताया है. उनका कहना है कि यह रिसर्च आर्कटिक महासागर की गहराइयों में मौजूद जीवन और पर्यावरण को लेकर हमारी सोच को पूरी तरह बदल सकती है. जूलियाना ने आगे कहा कि यह जगह भूवैज्ञानिक रूप से बेहद अहम है जो कि टेक्टोनिक हलचल और गर्मी की बहाव से बनी है. यही कारण है कि यहां एक जीवित इकोसिस्टम बन गया है.

गैस हाइड्रेट कैसे बनते हैं?

गैस हाइड्रेट को अक्सर फायर आइस के नाम से भी जाना जाता है. यह तब बनते हैं जब पानी और गैस बहुत ठंडे तापमान और दबाव की वजह से आपस में मिल जाते हैं. यह दिखने में बिल्कुल बर्फ जैसे होते हैं लेकिन इनमें आग भी लग सकती है. गैस हाइड्रेट को भविष्य के लिए एनर्जी का एक बड़ा सोर्स माना जा रहा है. लेकिन अगर यही अनियंत्रित रूप से पिघलने लग गए तो पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन सकता है.

ऊर्जा का बड़ा भंडार छिपा है

आर्कटिक क्षेत्र में इनकी मौजूदगी यह दिखाती है कि यहां एनर्जी का बहुत बड़ा भंडार है. इसी के साथ वैज्ञानिकों ने मानव दखल को लेकर कड़ी चेतावनी दी है, कहा कि जैसे जैसे दुनिया भर में आर्कटिक महासागर में लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है वैसे ही समुद्र की गहराई में खनन भी तेजी से बढ़ता ही जा रहा है. कई देश यहां के प्राकृतिक संसाधनों पर नजर लगाए हुए हैं जो कि इस क्षेत्र के लिए अच्छा नहीं है. 

एलेक्स रोजर्स समते कई रिसर्चर्स का कहना है कि खनन से समुद्री इकोसिस्टम हमेशा के लिए नष्ट हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि समुद्र के सभी हिस्से आपस में जुड़े हुए हैं इसलिए अगर एक जगह भी नुकसान हुआ तो पूरे आर्कटिक महासागर में दूर तक फैल सकता है. इसलिए वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इस क्षेत्र में कोई भी औद्योिगिक गतिविधियों को बड़ी सावधानी और जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए. 

फ्रेया हाइड्रेट माउंड्स नेचुरल लैब की तरह है

फ्रेया हाइड्रेट माउंड्स (टीले) सिर्फ संरचनाएं नहीं है बल्कि ये वैज्ञानिकों के लिए एक नेचुरल लैब की तरह काम करते हैं.  इस जगह पर मीथेन गैस के व्यवहार और समुद्र के तापमान बढ़ने के आसार को समझा जा सकता है. फ्रैम स्ट्रेट इलाके का समुद्री पानी धीरे-धीरे गर्म हो रहा है जिससे गैस हाइड्रेट के अस्थिर होने का खतरा बढ़ता जा रहा है. 

अगर ये हाइड्रेट पिघल गए तो मीथेन गैस की बहुत बड़ी मात्रा बाहर निकल सकती है, जिससे की क्लाइमेट चेंज पर बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा.आर्टिफिशियल ROV कैमरे की मदद से वैज्ञानिकों ने देखा कि ये माउंड्स लगातार बन रहे हैं और टूट भी रहे हैं. इसका मतलब है कि यह प्रक्रिया अब भी चल रही है और ये जगह पूरी तरह स्थिर नहीं है.

जलवायु खतरों से निपटने में होगी आसानी

इस बात पर जूलियाना पनिएरी जोर देते हुए कहती हैं कि यह हाइड्रेट माउंड्स पर्यावरण में होने वाले छोटे से बदलाव के प्रति भी बेहद संवेदनशील हैं. इसलिए इस पर लगातार शोध करना और नजर बनाए रखना जरूरी है. समुद्र में इस छिपी हुई दुनिया को समझना जरूरी है क्योंकि इससे भविष्य में पर्यावरण में होने वाले जलवायु खतरों का अनुमान लगाना और उससे निपटने में काफी मददगार साबित हो सकता है.  

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Sakshi Badal
Sakshi Badal
नमस्कार! मैं साक्षी बादल, MCU भोपाल से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी कर वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल में इंटर्न के तौर पर काम कर रही हूं, जहां हर दिन अपने लेखन को और बेहतर बनाने और खुद को निखारने का प्रयास करती हूं. मुझे लिखना पसंद है, मैं अपनी कहानियों और शब्दों के जरिए कुछ नया सीखने और लोगों तक पहुंचने की कोशिश करती हूं.

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