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तालिबान ने ढहाया ‘सिनेमा का बमियान’, 65 साल से था आबाद अब इसलिए हुआ कुर्बान

Afghanistan Ariana Cinema bulldozed by Taliban: काबुल का एरियाना सिनेमा अफगानिस्तान के आधुनिक इतिहास का गवाह रहा है. यह मूवी थिएटर 1960 में बना था, लेकिन तालिबान की दोबारा और दमदार वापसी के सामने यह भी नहीं टिक सका और अब एक शॉपिंग मॉल के लिए ढहा दिया गया है.

Afghanistan Ariana Cinema bulldozed by Taliban: 2021 में तालिबान की एक बार फिर सत्ता में वापसी के बाद अफगानिस्तान के सामाजिक, सांस्कृतिक और सार्वजनिक जीवन में गहरे और व्यापक बदलाव देखने को मिले हैं. कला, मनोरंजन और अभिव्यक्ति से जुड़े कई प्रतीक या तो पूरी तरह बंद कर दिए गए हैं या फिर धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं. महिलाओं को घर की दहलीज तक महदूद कर दिया गया है. भले ही भारत के साथ उसके रिश्ते इस दौरान काफी सुधरते दिख रहे हैं. लेकिन देश के भीतर तालिबान ने नियंत्रण का एक सख्त और व्यापक ढांचा खड़ा कर लिया है. काबुल का एरियाना सिनेमा भी इसी बदलाव का शिकार बना है. अफगानिस्तान के आधुनिक इतिहास का गवाह रहा यह मूवी थिएटर 1960 में बना था. लेकिन तालिबान की दोबारा और दमदार वापसी के सामने यह भी नहीं टिक सका और अब एक शॉपिंग मॉल के लिए ढहा दिया गया है.

अफगानिस्तान के आधुनिक इतिहास का साक्षी रहा यह मूवी थिएटर वर्ष 1960 में बना था. दशकों तक यह सिनेमा काबुल की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा रहा, लेकिन तालिबान की दूसरी और कहीं ज्यादा सख्त वापसी के सामने यह भी टिक नहीं सका और अब इसे शॉपिंग मॉल के निर्माण के लिए गिरा दिया गया है. इसका टूटना सिर्फ एक इमारत का ढहना नहीं है, बल्कि इसे एक पूरे सांस्कृतिक दौर के अंत के रूप में देखा जा रहा है. इस खबर की हेडिंग में हमने इस हॉल को सिनेमा का बमियान नाम दिया है. ऐसा नहीं है कि यह सबसे पुराना सिनेमा हॉल था, लेकिन यह निशानी था, उस खुले समाज का, जो कभी इस जमीन पर आबाद था.

एरियाना सिनेमा 1960 के दशक की उस खुली और जीवंत काबुल संस्कृति का प्रतीक था, जिसने बाद में तालिबान के दो दौर के कठोर शासन भी देखे. 2021 में तालिबान के फिर से सत्ता में आने के बाद यह थिएटर बंद हो गया था और यहां केवल कभी-कभार प्रचार से जुड़ी फिल्में दिखाई जाती थीं. इसके बावजूद, यह काबुल के मध्य इलाके में कला और मनोरंजन की एक अहम पहचान बना हुआ था. तालिबान ने अपने पहले कार्यकाल में बमियान बुद्ध की मूर्ति को बम विस्फोट कर उड़ाया था और इस बार हल्के हाथ से आधुनिकता का नाम देकर ढहा दिया.

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एरियाना सिनेमा हाल की तोड़ी गई बिल्डिंग. फोटो- एक्स

पिछले सप्ताह इस ऐतिहासिक इमारत को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. काबुल नगर प्रशासन के अनुसार, इसकी जगह लगभग 3.5 मिलियन डॉलर की लागत से एक बहुमंजिला शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाया जाएगा, जिसमें सैकड़ों दुकानें, रेस्टोरेंट, एक होटल और एक मस्जिद शामिल होंगी. यह फैसला तालिबान सरकार की मौजूदा आर्थिक और वैचारिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और विदेशी सहायता के रुक जाने के बाद तालिबान नए राजस्व स्रोतों की तलाश में है और ऐसे व्यावसायिक प्रोजेक्ट्स उसी दिशा में उठाया गया कदम हैं.

एरियाना सिनेमा की स्थापना 1960 के दशक की शुरुआत में हुई थी. यह उस दौर की पहचान था, जब काबुल को ‘मध्य एशिया का पेरिस’ कहा जाता था और लोग भारतीय बॉलीवुड और ईरानी फिल्मों का आनंद लेने यहां आते थे. उस समय यहां हिप्पियों से लेकर पड़ोसी देशों के पर्यटकों तक की आवाजाही रहती थी. काबुल की समृद्ध शहरी आबादी 1969 में खुले इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में जाया करती थी, जो शानदार भोजन और भव्य पार्टियों के लिए मशहूर था.

1990 के दशक के गृहयुद्ध में यह सिनेमा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था और तालिबान के पहले शासनकाल (1996-2001) में पूरी तरह बंद रहा. बाद में फ्रेंच फिल्ममेकर्स की सहायता से, 2004 में इसका नवीनीकरण किया गया और यह फिर से लोगों के मिलने-जुलने का केंद्र बन गया. लेकिन अब इसके गिराए जाने को कलाकार और सांस्कृतिक हस्तियां अफगान राजधानी के सांस्कृतिक जीवन के एक अध्याय के अंत के रूप में देख रही हैं.

काबुल की उम्मीद की आखिरी निशानी था एरियाना

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कभी पास में बेकरी चलाने वाले मोहम्मद नईम जबरखेल बताते हैं कि सिनेमा की तकनीकी खामियां, जैसे फिल्म का बार-बार रुक जाना और दर्शकों का अगले दिन आकर फिल्म का अंत देखना भी इसकी पहचान बन गई थीं. प्रसिद्ध अफगान अभिनेता और निर्देशक बासिर मुजाहिद का कहना है कि एरियाना सिनेमा काबुल के उस उम्मीद भरे दौर की आखिरी निशानियों में से एक था. उन्होंने याद किया कि 2018 में ईद के दौरान संघर्ष विराम के समय कई तालिबान लड़ाके झंडों और हथियारों के साथ उनकी एक फिल्म देखने यहां आए थे.

मुजाहिद के मुताबिक, एरियाना सिनेमा का गिराया जाना सिर्फ एक निर्माण कार्य नहीं है, बल्कि यह अफगान राजधानी के सांस्कृतिक जीवन के एक पूरे युग का अंत है. हालांकि नगर प्रशासन का तर्क है कि यह इमारत एक व्यावसायिक स्थल थी, ऐतिहासिक धरोहर नहीं, क्योंकि यहां टिकट बेचे जाते थे और यह कारोबार का हिस्सा थी. प्रशासन के अनुसार, 12 साल के अनुबंध के तहत नए प्रोजेक्ट में शहर की 45 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी, जबकि शेष हिस्सा एक निजी कंपनी के पास रहेगा. निर्माण कार्य को पूरा होने में लगभग एक साल लगने की उम्मीद है.

तालिबान ने लागू किया है कड़ा प्रतिबंध

बीते वर्षों में लगाए गए सख्त सामाजिक प्रतिबंध यह साफ संकेत देते हैं कि तालिबान शासन में सिनेमा या सार्वजनिक मनोरंजन की वापसी की संभावना बेहद कम है. राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर विदेशी धारावाहिकों पर रोक लगाई जा चुकी है और हाल ही में किसी भी जीवित प्राणी की तस्वीर या वीडियो दिखाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है. यह इस्लामी कानून की कड़ी व्याख्या पर आधारित है, जिसमें इंसानों और जानवरों की छवियों को दिखाना मना किया गया है.

इसके अलावा, अफगानों को यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर वीडियो अपलोड करने से भी रोका गया है. इसी महीने तालिबान के ‘वाइस एंड वर्च्यू विभाग’ ने पश्चिमी शहर हेरात में चार युवकों को हिरासत में लिया, क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश टीवी सीरीज ‘पीकी ब्लाइंडर्स’ के किरदारों जैसे कपड़े पहन रखे थे. अधिकारियों ने उन पर पश्चिमी मूल्यों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. काबुल के अन्य पुराने सिनेमा हॉल भी अब तक बंद पड़े हैं.

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर संघर्ष कर रहा तालिबान-अफगानिस्तान

इस तरह, एरियाना सिनेमा अब केवल यादों में जिंदा रहेगा और उसका अंत तालिबान शासन में बदलते अफगान समाज और उसकी प्राथमिकताओं की एक गहरी तस्वीर पेश करता है. भले ही विश्व बैंक के मुताबिक इस साल अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था में 4.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय में गिरावट आई है, क्योंकि बड़ी संख्या में लौटे शरणार्थियों से जनसंख्या में तेज बढ़ोतरी हुई है. इन शरणार्थियों की वापसी से निर्माण गतिविधियों में तेजी आई है, जिसे तालिबान जमीन बेचकर और व्यावसायिक परियोजनाओं के जरिये भुनाने की कोशिश कर रहा है. प्रशासन का कहना है कि सिनेमा से जुड़ा उपकरण और रिकॉर्ड सुरक्षित रखे जाएंगे, लेकिन मौजूदा हालात में थिएटर को चालू रखना संभव नहीं था.

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Anant Narayan Shukla
Anant Narayan Shukla
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट. करियर की शुरुआत प्रभात खबर के लिए खेल पत्रकारिता से की और एक साल तक कवर किया. इतिहास, राजनीति और विज्ञान में गहरी रुचि ने इंटरनेशनल घटनाक्रम में दिलचस्पी जगाई. अब हर पल बदलते ग्लोबल जियोपोलिटिक्स की खबरों के लिए प्रभात खबर के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

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