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जापान में मोदी ने कहा, हर भारतीय के डीएनए में अहिंसा

तोक्यो: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि अहिंसा भारतीयों के डीएनए में है. यब बात उन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने की वजह से उपजी अंतराष्ट्रीय समुदाय की चिंता को दूर करने के लिए कही. नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि शांति और अहिंसा के लिए देश की प्रतिबद्धता ‘‘भारतीय समाज के […]

तोक्यो: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि अहिंसा भारतीयों के डीएनए में है. यब बात उन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने की वजह से उपजी अंतराष्ट्रीय समुदाय की चिंता को दूर करने के लिए कही.
नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि शांति और अहिंसा के लिए देश की प्रतिबद्धता ‘‘भारतीय समाज के डीएनए’’ में रची बसी है जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि या प्रक्रियाओं से बहुत उपर है.
मोदी ने यहां सैक्रेड हार्ट यूनिवर्सिटी में एक छात्र के प्रश्न के जवाब में कहा, ‘‘भारत भगवान बुद्ध की धरती है. बुद्ध शांति के लिए जिये और हमेशा शांति का पैगाम दिया तथा यह संदेश भारत में गहराई तक व्याप्त है.’’
संवाद के दौरान उनसे पूछा गया था कि परमाणु अप्रसार संधि पर अपना रुख बदले बिना भारत अंतराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास कैसे हासिल करेगा. परमाणु हथियार रखने के बावजूद भारत इस संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर चुका है.
जापान दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां परमाणु बम गिराया गया था। फिलहाल जापान की यात्र पर यहां आए मोदी ने इस अवसर का उपयोग करते हुए तोक्यो के साथ असैन्य परमाणु करार करने के प्रयासों के बीच इस मुद्दे पर अपना यह संदेश दिया.
भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है क्योंकि वह इसे खामीयुक्त मानता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि अहिंसा के लिए भारत की पूर्ण प्रतिबद्धता है और यह ‘‘भारतीय समाज के डीएनए में रची बसी है तथा यह किसी भीअंतराष्ट्रीयसे बहुत उपर है.’’
उनका संदर्भ भारत के, परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार की ओर था.
मोदी ने संधियों से उपर उठने की जरुरत पर जोर देते हुए कहा, ‘‘अंतराष्ट्रीय मामलों में, कुछ प्रक्रियाएं होती हैं. लेकिन समाज की प्रतिबद्धता सबसे ऊपर है.’’
अपनी बात पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में पूरे समाज के साथ अहिंसा के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए भारत ने इस तरह स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया कि पूरी दुनिया आश्चर्यचकित रह गई.
उन्होंने कहा कि हजारों साल से भारत की आस्था सूत्र वाक्य ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ :पूरी दुनिया एक परिवार है: में रही है. ‘‘जब हम पूरी दुनिया को एक परिवार मानते हैं तो हम ऐसा कुछ करने की कैसे सोच सकते हैं जिससे किसी को नुकसान हो.’’
भारत ने हाल ही में आईएईए के साथ हस्ताक्षरित ‘‘सुरक्षा करार पर अतिरिक्त प्रोटोकॉल’’ :एडीशनल प्रोटोकॉल ऑन सैफेगार्डस एग्रीमेंट: की अभिपुष्टि की है. इस संदर्भ में प्रधानमंत्री से पूछा गया था कि क्या भारत परमाणु निगरानी एजेंसी के निरीक्षकों को भारत के असैन्य परमाणु संयंत्रों की आसानी से निगरानी की अनुमति देगा.
संवाद सत्र के दौरान, एक अन्य छात्र ने मोदी से पूछा कि चीन के विस्तारवादी प्रयासों के बावजूद एशिया में शांति कैसे रह सकती है.
इस पर मोदी ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि आप चीन से परेशान हैं.’’ हालांकि छात्रों को संबोधित कर रहे मोदी की राय थी कि छात्र पत्रकारों की तरह सवाल पूछ रहे थे.
ऐसा लग रहा था जैसे यूनिवर्सिटी में बोल रहे मोदी कोई प्रोफेसर हों. उन्होंने जापानी छात्रों को प्रकृति के संदर्भ में भारतीय लोकाचार के बारे में भी बताया.
छात्रों ने उनसे पूछा था कि तेजी से विकास कर रहा भारत उर्जा के स्रोतों की दिशा में आगे बढते हुए पारिस्थितिकी का संरक्षण कैसे करेगा.
मोदी ने कहा कि भारत ऐसा देश है जहां लोग प्रकृति से प्यार और संवाद करते हैं. इस संबंध में उन्होंने कहा कि पृथ्वी को मां की तरह सम्मान दिया जाता है, चंद्रमा को ‘मामा’ माना जाता है, सूर्य तथा हिमालय को दादा की तरह, नदियों को मां की तरह माना जाता है और वृक्षों को ईश्वर की तरह पूजा जाता है.
मोदी ने कहा कि मैं आपको अपनी कहानी बताता हूं. मैं बेहद निर्धन परिवार से हूं. मेरे चाचा ने एक बार लकड़ी का कारोबार शुरु किया था. मेरी मां पढी लिखी नहीं हैं लेकिन उन्होंने उनसे कहा कि पेडों को काटना अपराध है और इससे रुपये कमाने के बजाय परिवार भूखा रहना पसंद करेगा.
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रकृति के साथ अगर ऐसा व्यवहार किया जाता है तब तो भारतीय लोग पर्यावरण को बिल्कुल नुकसान नहीं पहुंचा सकते.
जलवायु परिवर्तन की टर्मिनोलॉजी के बारे में मोदी ने सवाल किया कि क्या यह सही है. उन्होंने कहा, ‘‘क्या यह जलवायु परिवर्तन है या आदतों में बदलाव है. हमारी आदतें बदल गई हैं और हम प्रकृति के साथ छेडछाड कर रहे हैं.
मोदी ने छात्रों को जलवायु पर लिखी ‘‘कन्वीनिएन्ट एक्शन’’ किताब पढने का सुझाव दिया. इससे पहले उन्होंने लडकियों की एक गोष्ठी में भारत में महिलाओं की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें विभिन्न रुपों में देवी की तरह पूजा जाता है.
प्रधानमंत्री ने कहा, भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां ईश्वर देवी के रुप में हैं. एक मंत्रिमंडल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा का संबंध देवी सरस्वती से, वित्त का संबंधी देवी लक्ष्मी से, गृह संबंधी मामलों का सरोकार देवी महाकाली से और खाद्य सुरक्षा का संबंध देवी अन्नपूर्णा से है.
उन्होंने यह भी कहा कि भारत में स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण प्राप्त है.
मोदी ने लडकियों की शिक्षा के प्रति अपने निजी रुझान के बारे में भी बताया.
उन्होंने कहा कि जब वह प्रधानमंत्री बने तो गुजरात छोडते समय उन्होंने, अपने 14 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में मिले सभी उपहारों की नीलामी की. इस नीलामी से 78 करोड रुपये एकत्र हुए और वह राशि लडकियों की शिक्षा के लिए उपयोग की खातिर सरकारी कोष में जमा कर दी गई.
विश्वविद्यालय में मोदी ने उन्हें देख कर रोमांचित हुए भारतीयों के एक समूह के साथ ‘सेल्फी’ के लिए पोज भी दिया.

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