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-11 साल पहले शुरू हुआ सफर
आज से करीब 11 साल पहले 18 सितंबर, 2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चंद्रयान-2 मिशन को मंजूरी दी थी. चंद्रयान-1 के बाद चंद्रयान-2 चांद पर भारत का दूसरा मिशन है. चंद्रयान-1 ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब 14 नवंबर, 2008 को चंद्रमा की सतह पर उतरा था, जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लहराने वाला चौथा देश बन गया था.
इससे पहले, 12 नवंबर 2007 को इसरो और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (रोसकोसमोस) के प्रतिनिधियों ने चंद्रयान-2 परियोजना पर साथ काम करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे. समझौते में यह तय हुआ था कि ऑर्बिटर तथा रोवर की मुख्य जिम्मेदारी इसरो की होगी और रूसी एजेंसी रोसकोसमोस लैंडर बनायेगा. अंतरिक्ष यान के डिजाइन को अगस्त, 2009 में पूास कर लिया गया जिसमें दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने अपना संयुक्त योगदान दिया. हालांकि, इसरो ने चंद्रयान-2 कार्यक्रम के अनुसार पेलोड को अंतिम रूप दिया.
लेकिन, अभियान को जनवरी 2013 में स्थगित कर दिया गया. 2016 में इस अभियान को एक बार फिर से शुरू किया गया क्योंकि रूस लैंडर को समय से डेवलप नहीं कर सका. रोसकोसमोस को बाद में मंगल ग्रह के लिए भेजे फोबोस-ग्रंट अभियान में मिली विफलता के कारण चंद्रयान-2 से अलग कर दिया गया. इसके बाद भारत ने मिशन मून को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का फैसला किया. इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 मिशन को सफल बनाने के लिए दिन-रात मेहनत की है.
चंद्रयान-1 से इसरो को मिला सबक: चंद्रयान-1 में लगे नासा के उपकरण मून मिनरोलॉजी मैपर (एम-3) ने चांद पर पानी के संकेत दिये थे. यह आंकड़ा इसरो के पास था, जिसे उसने नासा को दिया था और नासा ने इसका विश्लेषण कर चंाद पर पानी होने का दावा किया था. यानी इसरो ने जुटाया, पर श्रेय नासा को मिल गया.
चंद्रयान-2 से प्राप्त सभी आंकड़े नासा से साझा नहीं करेगा इसरो : चंद्रयान-2 से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण इसरो स्वयं करेगा. इस बार इसरो आंकड़े नासा सहित किसी दूसरी विदेशी एजेंसी से साझा नहीं करेगा. दरअसल, इसरो आंकड़ों का विश्लेषण कर कई शोध-पत्र प्रकाशित करने की तैयारी में है.
ये भी जानें
छह देशों में भारत भी, जिसके पास अपना जीपीएस सिस्टम
2007 में भारत और रूस के बीच चंद्रयान के लिए हुई थी डील
20 अगस्त : सुबह 9.02 बजे चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश
02 सितंबर : दोपहर 1.15 बजे ऑर्बिटर से अलग हुआ लैंडर ‘विक्रम’
14 दिनों तक प्रज्ञान और लैंडर विक्रम को करना है चंद्रमा की सतह का अध्ययन
एनर्जी पैदा करने के लिए रोवर में लगा है सोलर पैनल
चंद्रमा पर रिसर्च वर्क के लिए लगे हैं 13 पेलोड
ऐसे हुई इतिहास रचने की शुरुआत
चंद्रमा की सतह से 400 मी दूरी : विक्रम लैंडर कुछ पलों के लिए रुका, चांद के ऊपर मंडराने के बाद बढ़ा आगे
चांद की सतह से 7.4 किमी दूर : 526 किमी/घंटे की स्पीड, किसी कमर्शियल जेट की स्पीड के बराबर
चंद्रमा की सतह से 100 मी की दूरी : 25 सेकंड के लिए पॉज, उतरने के लिए सतह का चुनाव
चंद्रमा की सतह से पांच किमी दूर : 38 सेकंड में लैंडर की स्पीड घट कर 331.2 किमी/घंटे
चंद्रमा से 10 मीटर ऊपर : टचडाउन से महज 13 सेकंड दूर, अपोजिट फोर्स जेनरेट करने के लिए जलाये गये इंजन
सेटेलाइट पर होती है सोने सी परत, नासा भी करता है इस्तेमाल : हमने हमेशा तस्वीरों में देखा है कि सेटेलाइट किसी सुनहरी चीज में लिपटा होता है. इस सुनहरी को मल्टी लेयर इंसुलेशन कहते हैं. इसे बनाने में पॉलिमाइड या पॉलीस्टर फिल्म्स या सोने का भी इस्तेमाल होता है. सोना अंतरिक्ष में होने वाले रेडिएशन से सेटेलाइट को बचाता है.