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ओलचिकी लिपि का पहरुआ : रामकुमार सोरेन
रामदुलार पंडा संताली समाज के विकास तथा भाषा-संस्कृति की रक्षा को लेकर समाज के लोगों को जागरूक करना तथा महत्वपूर्ण विषयों पर क्षेत्र में प्रचार-प्रसार करना रामकुमार सोरेन के जीवनचर्या का अभिन्न हिस्सा है. ओलचिकी के प्रति रामकुमार के समर्पण भाव ने समाज के लोगों को भी काफी हद तक प्रेरित किया है. उन्होंने हाल […]
रामदुलार पंडा
संताली समाज के विकास तथा भाषा-संस्कृति की रक्षा को लेकर समाज के लोगों को जागरूक करना तथा महत्वपूर्ण विषयों पर क्षेत्र में प्रचार-प्रसार करना रामकुमार सोरेन के जीवनचर्या का अभिन्न हिस्सा है.
ओलचिकी के प्रति रामकुमार के समर्पण भाव ने समाज के लोगों को भी काफी हद तक प्रेरित किया है. उन्होंने हाल के तीन वर्षों में हजारीबाग, बोकारो और रामगढ़ में ओलचिकी को नये सिरे से प्रतिष्ठापित किया है. आज सोरेन की देखरेख में तीनों जिलों में दो दर्जन से अधिक ओलचिकी इतुन आसड़ा यानी संताली स्कूल चल रहे हैं.
यहां गरीब संताली परिवारों के बच्चों को ओलचिकी में नि:शुल्क पढ़ाई करायी जाती है. 30 वर्षीय रामकुमार सोरेन बोकारो जिला के गोमिया प्रखंड अंतर्गत तिलैया ललपनिया के रहनेवाले हैं. उन्होंने अपने समाज की भाषा, लिपि व संस्कृति की रक्षा व प्रचार-प्रसार को दिन-रात मेहनत कर अपने समाज के वास्तविक चिंतक के रूप में पहचान स्थापित की है.
अपने गुरु व संताल संस्कृति व परंपरा के जानकार व विद्वान किशन मुर्मू के मार्गदर्शन व विचारों से ओतप्रोत होकर उन्होंने संताली भाषा की लिपि ओलचिकी के प्रचार-प्रसार की ऐसी रार ठानी कि आज हजारीबाग, बोकारो व रामगढ़ में 25 ओलचिकी स्कूल स्थापित कर दिये और संताली बच्चों को निःशुल्क पढ़ाई की सेवा दे रहे हैं. इसके लिये रामकुमार ने संताली युवाओं की एक टोली तैयार की और अपनी मंजिल की ओर कूच किया. वर्ष 2016 में उन्होंने तिलैया में लुगुबुरु ओलचिकी इतुन आसड़ा की शुरुआत की. फिर पहली दफे 22 दिसंबर 2016 को भाषा दिवस का आयोजन कर ओलचिकी पर खूब प्रकाश डाला.
संतालियों ने रुझान दिखाया, तो यहां से पूरी टीम का मनोबल ऊंचा हुआ और फिर पीछे मुड़ कर इन्होंने नहीं देखा. प्राथमिक विद्यालय तिलैया में छुट्टी होने के बाद ओलचिकी का स्कूल चलाया जाता. रविवार को भी पढ़ाई होती. गांव-गांव भ्रमण कर लुगुबुरु ओलचिकी इतुन आसड़ा के लोग रामकुमार के नेतृत्व में ओलचिकी के प्रति लोगों को जागरूक करते. मांझी हड़ाम, मुखिया, संताली बुद्धिजीवी वर्ग से संपर्क करते और अभियान के तहत जहां शाम ढल जाती, वहीं रात रुक जाते.
इस प्रकार ओलचिकी के विस्तार को मेहनत अभी भी जारी है. स्थापना वर्ष से लेकर अभी तक बोकारो के गोमिया प्रखंड में कुल 10 आसड़ा, हजारीबाग के चुरचू, दारू व इचाक में तीन-तीन व टाटीझरिया प्रखंड में पांच आसड़ा चलाये जा रहे हैं.
जबकि, रामगढ़ के गोला में एक आसड़ा संचालित है. इन सब में कुल कारण ढाई हजार के आसपास संताली बच्चे अध्ययनरत हैं. कुल 50 ओलचिकी शिक्षक निःशुल्क सेवा दे रहे हैं. वहीं, आसड़ा में करीब 50 सदस्य विभिन्न रूप से संचालन में सहयोग कर रहे हैं. हर सत्र की वार्षिक परीक्षा एसेका घाटशिला के सहयोग से ली जाती है.
रामकुमार सोरेन को उनके साथी विश्वनाथ बास्के, बुधन हांसदा, बाहा मरांडी, बिरसमुनि मरांडी, नीलू मरांडी, दशमी मरांडी, संगीता सोरेन, गौतम सोरेन, सागराम सोरेन, सोनमती मरांडी, अर्जुन बेसरा, सरिता हांसदा, सविता हेंब्रम, विनोद हांसदा, रामेश्वर किस्कू, बसंती हेंब्रम, परमेश्वर सोरेन, महादेव मुर्मू, दिलीप किस्कू, सुमित्रा सोरेन आदि भरपूर सहयोग के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं.
संताली संस्कृति की रक्षा को भी अनेक गतिविधियां : लुगुबुरु ओलचिकी इतुन आसड़ा तिलैया ओलचिकी के विस्तार को गंभीर तो है ही, अपनी संस्कृति व सामाजिक विकास के प्रति भी गंभीर है. ओलचिकी के विस्तार व जागरूकता अभियान के वक्त ड्रेस कोड का पूर्ण पालन किया जाता है.
लोकगीतों व लोकनृत्य के माध्यम से संताली संस्कृति का बखान भी होता है. समाज के कार्यों में भी आसड़ा के सदस्य बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. संताली भाषा दिवस, ओल बोंगा-बिंदू चांदान(माघ कुनामी) बोंगा बुरु, ओलचिकी के जनक पंडित रघुनाथ मुर्मू के जन्मदिन पर बैशाख कुनामी, हूल दिवस आदि धूमधाम से आयोजित कर सामाजिक जागरूकता पर भी बल दिया जाता है.
प्रशासनिक अफसरों व जनप्रतिनिधियों के सहयोग ने भी बढ़ाया मनोबल : इसी वर्ष जनवरी में रामकुमार सोरेन के नेतृत्व में आसड़ा के एक दल ने उपयुक्त बोकारो व हजारीबाग से मुलाकात की.
इसके बाद 12 जनवरी को बोकारो प्रशासन व एक फरवरी को हजारीबाग प्रशासन की ओर से आसड़ा को बसें उपलब्ध करायी गयीं, जिनके माध्यम से ओलचिकी विद्यार्थियों व शिक्षकों ने ओडिसा के मयूरभंज अंतर्गत डांडबूस स्थित ओलचिकी के जनक पंडित रघुनाथ मुर्मू की जन्मस्थली का त्रिदिवसीय शैक्षणिक भ्रमण किया. इसी तरह, तत्कालीन विधायक गोमिया योगेंद्र प्रसाद व वर्तमान विधायक बबिता देवी तथा पूर्व सांसद रवींद्र कुमार पांडेय की तरफ से भी आसड़ा को सहयोग किये जाने से मनोबल ऊंचा हुआ है.
लेकिन फिर भी आसड़ा को अनुदान राशि कहीं से न मिलने से समस्या तो आती है लेकिन पग डगमगाते नहीं बल्कि और मजबूती से समस्या से पार पाने में मेहनत करते हैं. सरकार अगर थोड़ा भी ध्यान इधर दे तो आसड़ा और ऊंचाईयों तक ओलचिकी को स्थापित करेगी. इससे झारखंड राज्य में संतालियों के उत्थान से जुड़ी परिकल्पनाओं को पंख लगेंगे.
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