अरविंद मोहन
अर्थशास्त्री
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इंडस्ट्रीज को लेकर घोषणा नहीं, रोजगार और विकास से ज्यादा चुनाव को तवज्जो
अरविंद मोहनअर्थशास्त्री यह बजट से ज्यादा चुनावी अभियान की शुरुआत है. मौटे तौर पर हर वर्ग को खुश करने की कोशिश की गयी है. बजट में कुछ घोषणाएं अच्छी भी हैं. खेती-किसानी की हालत लगातार खराब हो रही है. कृषि को प्रत्यक्ष लाभ के तहत सालाना 6000 रुपये देने की घोषणा की गयी है. अगर […]
यह बजट से ज्यादा चुनावी अभियान की शुरुआत है. मौटे तौर पर हर वर्ग को खुश करने की कोशिश की गयी है. बजट में कुछ घोषणाएं अच्छी भी हैं. खेती-किसानी की हालत लगातार खराब हो रही है. कृषि को प्रत्यक्ष लाभ के तहत सालाना 6000 रुपये देने की घोषणा की गयी है. अगर यह योजना दो वर्ष पहले आयी होती, तो यह एक अच्छा फैसला हो सकता था.
मध्यम वर्ग के लिए आयकर सीमा को पांच लाख करने के साथ-साथ हाउसिंग सेक्टर को राहत देने का प्रयास किया गया है. पूंजीगत लाभ कर में राहत देने के साथ दूसरा घर खरीदनेवालों के लिए प्रकल्पित कर (प्रिज्मटिव टैक्स) हटा दिया गया है. घर खरीद के लिए जीएसटी कम करने हेतु मंत्री समूह बनाने की घोषणा की गयी है.
साथ ही नयी पेंशन योजना में सरकार की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दी गयी है. अगर इन सभी घोषणाओं को देखें, तो एक साथ मध्यम वर्ग, किसान और मजदूर वर्ग को साधने की कोशिश की गयी है.
यहां पूरे बजट को दो पहलुओं में देखना चाहिए, पहला यह कि राजकोषीय संतुलन के लिहाज से देखें, तो देश में 2003 में एफआरबीएम एक्ट आने के बाद से एक राजकोषीय संतुलन बनाने की कोशिश की जा रही है. यहां यह समझना मुश्किल है कि यह कैसे संभव हो सकता है कि किसानों के लिए एक झटके में 75 हजार करोड़ की स्कीम ले आयें, तीन करोड़ लोगों को टैक्स नेट से बाहर कर दें, कैपिटल गेन और जीएसटी दर को भी कम कर दें. यानी एक तरफ कर संग्रह को नीचे ले जा रहे हैं और दूसरी तरफ खर्च बढ़ाने की घोषणा कर रहे हैं. पहले से चल रहा आयुष्मान भारत अगर ढंग से लागू किया जाता है, तो खर्च बढ़ेगा ही. राजकोषीय संतुलन कैसे सधेगा, यह बजट से बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं हो रहा है.
वित्त मंत्री ने कहा है कि 2019-20 में राजकोषीय घाटा तीन प्रतिशत रखेंगे, लेकिन बजट को देखकर ऐसा नहीं लगता कि कोई गंभीर पहल हुई है. वित्त मंत्री को मालूम है कि तकनीकी रूप से यह ‘वोट ऑन अकाउंट’ बजट है, क्योंकि सरकार का कार्यकाल अब तीन महीने ही बचा है. इसके बाद नयी सरकार अपना बजट लेकर आयेगी और वही बजट लागू होगा. जितने भी फैसले हैं, चाहे आयकर सीमा में छूट हो या पूंजीगत लाभ कर कम करने की बात हो, यह कुछ भी लागू होने नहीं जा रहा है.
अगर सभी घोषणाओं पर एक साथ पहल होती है, तो राजकोषीय संतुलन बनाना मुश्किल हो जायेगा. दूसरा सच है कि देश में किसानों के लिए सपोर्ट सिस्टम और सामाजिक सुरक्षा की सख्त कमी है. चाहे वह पेंशन योजना हो या किसानों के लिए किसी प्रकार की मदद, वह बेहद जरूरी है. लेकिन, इस प्रकार की घोषणाओं का यह समय बिल्कुल गलत है.
इससे स्पष्ट है कि समाधान के प्रति गंभीरता कम है. दूसरे, सुधार के लिए कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा तो कर रहे हैं, लेकिन विकास को लेकर कोई स्पष्ट दृष्टिकोण इस बजट में नहीं दिख रहा है.
किसानों के लिए लाभकारी योजनाएं तो ठीक हैं, लेकिन ग्रामीण विकास के लिए नये सिरे से काम करने की जरूरत है. चुनावों में किसान और मध्य वर्ग दोनों ही महत्वपूर्ण हैं. कृषि वाले प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश आदि में बेहतर प्रदर्शन किये बगैर किसी पार्टी की केंद्र में सरकार नहीं बन सकती. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर इस बजट को चुनावी घोषणा की तरह पेश किया गया है. यहां फील गुड कराने की कोशिश की गयी है.
वर्तमान में रोजगार का मसला बहुत बड़ा है. रोजगार पैदा करने के मामले में न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुके हैं. रोजगार का बढ़ना तभी संभव है, जब विकास को गति दे पायेंगे. खास बात है कि इस बजट में उस दिशा में कोई प्रयास होता नहीं दिखा. अर्थव्यवस्था की मूलभूत समस्याएं, विशेषकर युवाओं के लिए रोजगार और किसानों की निश्चित आमदनी, जिसके लिए बार-बार कहा जाता है कि हम किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे, लेकिन इस बजट में ऐसा कोई प्रयास होता नहीं दिखा है.
विकासोन्मुख बजट नहीं होने से वित्तीय स्वास्थ्य और खराब ही होगा. इससे आनेवाली नयी सरकार के लिए बहुत बड़ा दबाव होगा. जिस प्रकार घोषणाएं की गयी हैं, उससे नयी सरकार को पीछे जाने में मुश्किलें आयेंगी. इस बजट में इंडस्ट्री के लिए कोई विशेष घोषणा नहीं है. हालांकि, कैपिटल गेन और जीएसटी को कम करने से हाउसिंग सेक्टर को राहत मिलेगी.
अगर यह सेक्टर पटरी पर लौटता है, तो इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी. मेगासिटी में तमाम फ्लैट्स खड़े हैं, आज उनका कोई खरीदार नहीं है. अगर इस शुरुआत को एक पैकेज के रूप में सरकार आगे ले जाती है, तो निश्चित ही हाउसिंग सेक्टर को बड़ी राहत मिल सकती है. हाउसिंग सेक्टर की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि इससे जुड़े क्षेत्र सीमेंट, स्टील आदि को भी लाभ मिलता है.
इंडस्ट्री या स्टार्ट अप के लिए कुछ भी नया नहीं हुआ है. अगर हम केवल घोषणाओं पर जायें, तो मध्यम वर्ग को खुश किया गया है. लेकिन, इनका कोई मतलब नहीं है. योजनाएं नये बजट से लागू होंगी, जो कि नयी सरकार पर निर्भर करेगा.
(बातचीत : ब्रह्मानंद मिश्र)
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