प्रो अरुण कुमार
अर्थशास्त्री
यह बजट पूरी तरह से चुनावी बजट ही कहा जायेगा. लेकिन, यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बजट का गणित सही नहीं है. कई चीजों में छूट दी गयी है, जिसके लिए सरकार को पैसा लगाना पड़ेगा, मसलन किसानों के लिए 75 हजार करोड़ रुपये बजट रखा गया है, तो यह पैसा कहां से आयेगा. सरकार ने बजट में जितने भी वादे किये हैं, उनको पूरा करने में इतना पैसा खर्च होगा कि इससे राजकोषीय घाटा बढ़ जायेगा, जो कि अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है.
अभी जो राजकोषीय घाटा 3.4 प्रतिशत है, वह चार प्रतिशत के करीब पहुंच जायेगा. दूसरी बात यह है कि जब एक अप्रैल से अगला वित्त वर्ष शुरू होगा, तब बजट में किये गये सारे वादों को पूरा करने के लिए जब तक क्रियान्वयन शुरू होगा, तब तक नयी सरकार आ जायेगी. अब नयी सरकार इन योजनाओं को आगे बढ़ायेगी या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है.
बीते सालों में सरकार ने कई ऐसे वादे किये, जो पूरे नहीं हो पाये. ऐसे में सरकार के दोबारा किये गये इन वादों से जनता का विश्वास कम होगा. जनता के मन में यह बात गहरी बैठ जायेगी कि ये लोग वादे तो बहुत करते हैं, लेकिन उन्हें पूरा नहीं करते. इस स्थिति के चलते इस लोकलुभावन और चुनावी बजट का कोई राजनीतिक फायदा नहीं होगा.
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किसानों की प्रतिक्रिया भी आयी है कि सालाना छह हजार तो कुछ भी नहीं है. दूसरी बात यह है कि छह हजार का ऐलान तो हो गया, लेकिन यह कबसे और किस प्रक्रिया के तहत मिलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. ऐसे ही सवाल बाकी चीजों के बजट को लेकर भी है, जो जनता के मन में उठ रहे हैं. इसलिए इसमें दो राय नहीं कि इस बजट का कोई राजनीतिक फायदा नहीं होनेवाला है, जितना कि सरकार सोच रही है.
क्योंकि, ऐसे वादों के लिए बहुत देर हो चुकी है और चुनाव हम सबके सामने है. रोजगार सृजन को लेकर क्या योजना है, इसकी कोई तस्वीर नहीं दिख रही है. एमएसएमई क्षेत्र के लिए कुछ ऐलान जरूर हुए हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन पर अस्पष्टता है.
वैसे तो बजट बहुत पहले से तैयार किया जाता है और इसकी एक खास प्रक्रिया भी है. लेकिन, ऐसा लगता है कि कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने कहा था कि गरीबों के लिए न्यूनतम आय की व्यवस्था करेंगे, तो इस सरकार में बैठे लोगों ने सोचा कि इस बजट में जनता के लिए हम भी कुछ करेंगे. और इस तरह पूरा बजट चुनावी बजट बना दिया गया.
यही वजह है कि इसका गणित सही नहीं दिख रहा है. कुछ चीजें तो ऐसे ही ऐलान कर दी गयी हैं कि आगे चलके उसका क्रियान्वयन कर देंगे. दरअसल, अगर इनको यह लगता कि अगली सरकार भी इन्हीं की बनेगी, तो ये लोग इतने वादे नहीं किये होते. इन्हें विश्वास ही नहीं है कि अगली सरकार इनकी बनेगी, इसलिए इन्होंने लोकलुभावन बजट बना दिया है. सरकार ऐसा करने से बच सकती थी.
(बातचीत : वसीम अकरम)