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विटामिन डी की चमक के पीछे खड़ा है पूंजी का काला बाजार
लिज साबो वरिष्ठ संवाददाता, कैसर हेल्थ न्यूज, अमेरिका बेहतर स्वास्थ्य और सौंदर्य की स्वाभाविक चाह ने संबंधित उद्योग को बड़े कारोबार में बदल दिया है. इसका एक पहलू यह है कि दुनिया की ज्यादा आबादी के लिए दवाइयां और प्रसाधन सामग्रियों की उपलब्धता बढ़ी है, पर इसकी आड़ में भ्रामक और फर्जी दावों के जरिये […]
लिज साबो
वरिष्ठ संवाददाता,
कैसर हेल्थ न्यूज, अमेरिका
बेहतर स्वास्थ्य और सौंदर्य की स्वाभाविक चाह ने संबंधित उद्योग को बड़े कारोबार में बदल दिया है. इसका एक पहलू यह है कि दुनिया की ज्यादा आबादी के लिए दवाइयां और प्रसाधन सामग्रियों की उपलब्धता बढ़ी है, पर इसकी आड़ में भ्रामक और फर्जी दावों के जरिये बड़ी कमाई भी की जा रही है.
बीते कुछ समय से विटामिन डी की कमी की भरपाई के लिए गोलियां बेचने के मामले में वैश्विक विवाद जारी है. ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में छपे विश्लेषण में बताया गया है कि इस गोली को बनानेवाली कंपनियों ने उस शोधकर्ता डॉक्टर को करोड़ों रुपये का भुगतान किया है, जिसने इसकी जरूरत को रेखांकित करते हुए शोध रिपोर्ट दिया है. इस चर्चा की अहमियत को देखते हुए पेश है अमेरिकी अखबार में प्रकाशित लेख.
मनुष्यों के लिए विटामिन डी की आवश्यकता के प्रति डॉ माइकल होलिक का उत्साह आसानी से आत्यंतिक कहा जा सकता है. बोस्टन यूनिवर्सिटी में एंडोक्रिनोलॉजी (अंतःस्रावी शास्त्र) के इस विशेषज्ञ को इसका श्रेय दिया जा सकता है कि उन्होंने विटामिन डी की जांच तथा उसके विक्रय से संबद्ध अरबों डॉलरों के अभियान को किसी भी अन्य कार्य की अपेक्षा कहीं अधिक गति दी है.
वे स्वयं भी विटामिन डी की पूरक खुराकों तथा विटामिन डी मिश्रित दूध का सेवन किया करते हैं. जब भी वे अपनी बाइक से कहीं बाहर निकलते हैं, तो अपनी त्वचा पर कभी सनस्क्रीन नहीं मला करते. उन्होंने अपने पुस्तकाकार लेखों एवं व्याख्याओं द्वारा इस विटामिन के कसीदे गाये हैं और अपने बहुत सारे विद्वत्तापूर्ण आलेखों के जरिये ‘विटामिन डी की अल्पता (कमी) रूपी महामारी’ की चेतावनी देते हुए इस बीमारी तथा इसकी वजह से पूरे विश्व में व्याप्त स्वास्थ्य के अपूर्ण स्तर की व्याख्या की है.
उनका यह लगाव इतना तीव्र है कि इसने अपनी जद में डायनासोरों को भी समेट लिया है. आपको यह जान कर कैसा लगेगा, यदि यह कहा जाये कि साढ़े छह करोड़ वर्ष पूर्व के इन भीमकाय जंतुओं के विनाश की वजह उनके आहार की कमी नहीं, बल्कि धूप की कमी से कमजोर हुई उनकी हड्डियां थीं?
डॉ होलिक लिख चुके हैं कि, ‘मैं कभी-कभी सोचता हूं, क्या डायनासोर सूखा रोग एवं हड्डियों के नरम पड़ जाने (विटामिन डी की अल्पता से पैदा बीमारियां) के कारण तो नहीं मरे?’
विटामिन डी मार्गदर्शिका का प्रभाव
राष्ट्रीय विटामिन डी मार्गदर्शिका का मसौदा तैयार करने में डॉ होलिक की भूमिका तथा डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य सलाहकारों द्वारा उनके संदेश को अंगीकार करने की वजह से विटामिन डी के पूरक आहारों की बिक्री वर्ष 2017 में 93.60 करोड़ डॉलर तक पहुंच गयी, जो पिछले दशक से 9 गुना अधिक थी. विटामिन डी की अल्पता की जांच भी बेतहाशा बढ़ी है. वर्ष 2016 में डॉक्टरों ने एक करोड़ से भी अधिक जांचें करायीं, जो 2007 की तुलना में 547 प्रतिशत ज्यादा थीं और उनमें 36.50 करोड़ डॉलर खर्च किये गये.
किंतु विटामिन डी की इस सनक के शिकार अमेरिकियों में बहुत कम ही इस बात से वाकिफ हैं कि इस उद्योग ने डॉ होलिक को भी बड़ी धनराशियां दी हैं.
द न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए काम करनेवाले एक स्वास्थ्य समाचार अनुसंधान एजेंसी ने यह पता लगाया है कि डॉक्टरों के समुदाय में अपनी प्रतिष्ठा का उपयोग करते हुए डॉ होलिक ने जिन परिपाटियों का प्रचार-प्रसार किया है, उन्होंने दवा निर्माता तथा इनडोर टैनिंग (सूर्य की कृत्रिम किरणों का सेवन कर त्वचा का रंग सुधारने की लोकप्रिय कवायद) उद्योगों तथा देश की सबसे बड़ी रोग जांच लैब शृंखला को काफी आर्थिक लाभ पहुंचाया तथा बदले में डॉ होलिक को लाखों डॉलर दिये गये.
एक इंटरव्यू में डॉ होलिक ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने विटामिन डी की जांच करनेवाले ‘क्वेस्ट डायग्नोस्टिक्स’ के परामर्शी के तौर पर 1979 से ही काम किया है. हाल ही में 72 वर्ष की उम्र में पहुंचे डॉ होलिक ने बताया, ‘विटामिन डी के स्वास्थ्य लाभों की बातें करने के विषय में इन उद्योगों की धनराशियों का मुझ पर कोई असर नहीं होता.’
इसमें संदेह की कोई वजह नहीं कि कई तरह के हॉर्मोन की भूमिका भी अहम होती है, जिनकी पर्याप्तता के बगैर हड्डियां कमजोर एवं भुरभुरी हो सकती हैं और उनका आकार बिगड़ सकता है, जिसकी वजह से बच्चों में सूखा रोग तथा वयस्कों में ‘ओस्टोमलेसिया’ नामक बीमारी हो सकती है. मुद्दे की बात तो यह है कि विटामिन डी की कितनी मात्रा जरूरी है तथा शरीर में इसके किस स्तर को अल्पता माना जायेगा.
इस बहस को दिशा देने में देने में डॉ होलिक की महत्वपूर्ण भूमिका वर्ष 2011 में सामने आयी थी. पिछले ही वर्ष के उत्तरार्द्ध में अमेरिका की प्रतिष्ठित नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिसिन (जिसे तब इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिसिन के नाम से जाना जाता था) एवं स्वतंत्र वैज्ञानिक विशेषज्ञों के एक दल ने विटामिन डी की अल्पता पर 1,132 पृष्ठों की एक रिपोर्ट जारी की थी.
इसका निष्कर्ष यह था कि अधिसंख्य अमेरिकियों के पास प्राकृतिक रूप से ही पर्याप्त हॉर्मोन होता है और इसने डॉक्टरों को यह सलाह दी थी कि वे ‘ओस्टोपोरोसिस’ जैसी किसी खास गड़बड़ी के जोखिम झेलते मरीजों की ही जांच कराया करें.
इसके कुछ ही महीने बाद, जून 2011 में डॉ होलिक की देख-रेख में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें बिल्कुल दूसरा ही नजरिया व्यक्त था. ‘जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबाॅलिज्म’ में यह आलेख ‘एंडोक्राइन सोसाइटी’ द्वारा प्रकाशित किया गया था, जो इस क्षेत्र का अग्रणी पेशेवर समूह है तथा जिसकी मार्गदर्शिका अस्पतालों, डॉक्टरों एवं क्वेस्ट समेत सभी वाणिज्यिक जांच लैब शृंखलाओं द्वारा पूरे अमेरिका में प्रयुक्त की जाती है.
इस सोसाइटी ने डॉ होलिक की यह मान्यता अंगीकार की कि ‘सभी आयुवर्गों में विटामिन डी की अल्पता बहुत सामान्य है’ और इसने विटामिन डी की जांच संबंधी सुविधाओं के व्यापक प्रसार की वकालत की, जो अश्वेतों, स्पेनीभाषियों तथा स्थूलकाय लोगों समेत अमेरिका की आधी से भी अधिक वैसी आबादी को इस जांच के दायरे में ला सकें, जिनमें विटामिन डी की अल्पता की संभावनाएं होती हैं.
कॉर्पोरेट जगत को मिला मौका
ये अनुशंसाएं विटामिन डी उद्योगों के लिए एक ऐसा मौका थीं, उन्होंने जिसकी उम्मीद भी न की थी. इससे क्वेस्ट तथा अन्य वाणिज्यिक जांच लैबों को बहुत फायदा पहुंचा. आज विटामिन डी की जांच ‘मेडिकेयर’ (अमेरिका की राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिचर्या योजना) द्वारा आच्छादित पांचवीं सर्वाधिक सामान्य जांच है.
इस मार्गदर्शिका ने विटामिन डी उद्योगों को एक-दूसरे तरीके से भी लाभ पहुंचाया. जहां नेशनल एकेडमी ने रक्त में इसके 20 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर के स्तर को विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा का सूचक माना, वहीं एंडोक्राइन सोसाइटी ने बताया कि दरअसल रक्त में इसकी कहीं अधिक मात्रा, यानी कम से कम 30 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर आवश्यक है. क्वेस्ट एवं लैबकॉर्प समेत कई वाणिज्यिक जांच लैबों ने इस उच्चतर मानक को अपनाया.
फिर भी, नेशनल एकेडमी की रिपोर्ट के एक सह लेखक तथा ‘मेन मेडिकल सेंटर रिसर्च’ के एक वरीय वैज्ञानिक, डॉ क्लिफोर्ड रोसेन कहते हैं, ‘इसका कोई सबूत नहीं है कि विटामिन डी के उच्चतर स्तर से संपन्न व्यक्ति उसके निम्न स्तर वाले व्यक्तियों की तुलना में अधिक स्वस्थ हैं.’
एंडोक्राइन सोसाइटी के उच्चतर स्तर का उपयोग एक महामारी जैसी धारणा पैदा करता है, क्योंकि इसके अनुसार अमेरिका की आबादी का 80 प्रतिशत हिस्सा विटामिन डी की अपर्याप्तता से ग्रस्त है. डॉ रोसेन के अनुसार, ‘हम बराबर ऐसे लोगों की जांच तथा उनका उपचार होता देखते हैं, जो इस खुशफहमी के शिकार होते हैं कि आप विटामिन डी का पूरक आहार लेकर ज्यादा स्वस्थ रह सकते हैं.’
बार-बार जांच की सलाहें
स्वास्थ्य सलाह देनेवाले एक विशेषज्ञ अमेरिकी समूह, ‘यूनाइटेड स्टेट्स प्रिवेंटिव सर्विसेज टास्कफोर्स’ के उपाध्यक्ष तथा एक पारिवारिक चिकित्सक, डॉ अलेक्स क्रिस्ट कहते हैं कि ‘विटामिन डी के निम्न स्तरवाले मरीजों को प्रायः पूरक खुराकें लेने तथा कुछ महीनों बाद फिर से जांच कराने को कहा जाता है.’
फिर बहुत सारे डॉक्टर वर्ष में एक बार इस जांच को दोबारा कराने को कहते हैं. डॉ क्रिस्ट के कहे अनुसार ‘मरीजों को विटामिन डी के निम्न स्तरवाला बताया जाना इन डॉक्टरों के वित्तीय हित में होता है.’
वर्ष 2010 में लिखी अपनी पुस्तक ‘दि विटामिन डी सल्यूशन’ में डॉ होलिक ने पाठकों को अपने रक्त की जांच कराने को प्रोत्साहित करने हेतु कई उपाय बताये. चूंकि कई पाठकों ने विटामिन डी जांच की ऊंची लागत को लेकर अपने चिंताएं व्यक्त कीं थीं, जिनमें 40 से लेकर 225 डॉलर खर्च होते हैं, इसलिए उन्होंने उन उपयुक्त रीइंबर्समेंट (प्रतिपूर्ति) कोड की सूची दी, जिनका इस्तेमाल कर डॉक्टर इंश्योरेंस कंपनियों से दावा कर सकते थे.
डॉ होलिक ने लिखा, ‘यदि वे गलत कोड का इस्तेमाल करेंगे, तो उन्हें यह प्रतिपूर्ति नहीं मिलेगी और इस सूरत में अंततः आपको इस जांच की लागत का भुगतान स्वयं करना होगा.’
डॉ होलिक ने एंडोक्राइन सोसाइटी मार्गदर्शिका में प्रकाशित अपने वित्तीय डिस्क्लोजर (खुलासा) विवरण में क्वेस्ट तथा अन्य कंपनियों के साथ अपने वित्तीय संबंधों को स्वीकार किया. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि पिछले चार दशकों से क्वेस्ट के लिए काम करने से, जिसके लिए मुझे वर्तमान में 1,000 डॉलर प्रतिमाह मिलते हैं, मेरी चिकित्सकीय सलाहों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. उन्होंने कहा, ‘वे चाहे एक जांच करें अथवा एक अरब, मुझे उसके लिए कोई अतिरिक्त पैसे नहीं मिलते.’
क्वेस्ट की प्रवक्ता, वेंडी बोस्ट ने बताया कि कंपनी बहुत-से विशेषज्ञ परामर्शियों की सलाह लेती है, ‘यह हमारा दृढ़ विचार है कि चाहे विटामिन डी हो अथवा कोई अन्य विषय, उस क्षेत्र के शीर्ष विशेषज्ञों के साथ काम करने से हमारे मरीजों एवं हमारे डॉक्टरों दोनों के लिए बेहतर गुणवत्ता तथा बेहतर जानकारी हासिल होती है.’
वर्ष 2011 से ही, विटामिन डी के लिए डॉ होलिक की पैरोकारी को स्वास्थ्य से संबद्ध उद्योगों ने अपना लिया. डॉ मेहमेत ओज विटामिन डी के बारे में लिखते हुए कि ‘यह एक ऐसी अव्वल चीज है, जिसकी आपको और ज्यादा जरूरत है’, अपने पाठकों को बताते हैं कि यह हृदय रोग, अवसाद, मोटापा, स्मृतिभ्रंश (डिमेंशिया) एवं कैंसर जैसी बीमारियों को दूर रख सकता है.
ओपरा विनफ्रे की वेबसाइट अपने पाठकों से कहती है, ‘अपने विटामिन डी का स्तर जानना आपकी जिंदगी बचा सकता है.’ हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अत्यंत प्रतिष्ठित प्रोफेसर डॉ वाल्टर विलेट समेत मुख्यधारा के सभी डॉक्टर अमेरिकियों से यह अनुरोध करते हैं कि वे विटामिन डी के हॉर्मोन की ज्यादा मात्रा हासिल करें.
अपने अकादमिक निष्कर्षों के प्रकाशन के सात वर्षों बाद भी नेशनल एकेडमी रिपोर्ट के वैज्ञानिक विटामिन डी की गोलियों के लिए मचे शोर में अपनी आवाज सुनी जाने के लिए आज भी संघर्षरत ही हैं. उस रिपोर्ट की लेखन समिति की अध्यक्ष तथा पेन स्टेट में पोषण विज्ञान की प्रोफेसर ए. कैथरीन रोस ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘विटामिन डी अल्पता जैसी कोई महामारी नहीं है, न ही यह कोई व्यापक समस्या है.’
दवा कंपनियों एवं टैनिंग उद्योगों से संबंध
अपनी पुस्तक, ‘द विटामिन डी सल्यूशन’ में डॉ होलिक विटामिन डी को बढ़ावा देने की अपनी कोशिशों को ‘एक अकेले का अभियान’ बताते हैं. कहते हैं, ‘दवा कंपनियां भय तो बेच सकती हैं, पर वे सूर्य की रोशनी नहीं बेच सकतीं, इसलिए सूर्य के स्वास्थ्य लाभों को बढ़ावा नहीं मिलता.’
फिर भी दवा कंपनियों से डॉ होलिक के व्यापक वित्तीय संबंध हैं. दवा तथा साधन निर्माताओं से मिलनेवाली रकम की खोजबीन करनेवाले ‘मेडिकेयर’ के खुले डाटाबेस के अनुसार, वर्ष 2013 से लेकर 2017 तक दवा कंपनियों से डॉ होलिक को परामर्श तथा अन्य सेवाओं के लिए लगभग 1.63 लाख डॉलर की रकम मिली. उन्हें भुगतान करनेवाली कंपनियों में विटामिन डी की पूरक खुराक विक्रय करनेवाली ‘सनोफी-अवंटिस’, हॉर्मोन की गड़बड़ियों में विटामिन डी के साथ दी जानेवाली दवाओं के निर्माता ‘शायर’, ऑस्टियोपोरोसिस का उपचार करनेवाली ‘अमगेन’ तथा विटामिन डी जांच करनेवाले ‘रोश डायग्नोस्टिक्स’ तथा ‘क्विडेल कॉरपोरेशन’ शामिल हैं.
हालांकि, इस डाटाबेस में डॉ होलिक को केवल वर्ष 2013 से मिली रकमें शामिल हैं, पर उन्हें दवा कंपनियों से उसके पूर्व ही धनराशियां मिलने लगी थीं. वर्ष 2010 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में उन्होंने एक दवा कंपनी के लिए दक्षिण अफ्रीका में व्याख्यान देने के लिए की गयी यात्रा का जिक्र किया है, जिसके श्रोताओं में उस कंपनी के अध्यक्ष तथा मुख्य कार्यकारी भी उपस्थित थे.
टैनिंग उद्योग से डॉ होलिक के संबंधों की भी परीक्षा की गयी है. हालांकि उन्होंने कहा है कि मैं टैनिंग की पैरोकारी नहीं करता, पर सीमित ढंग से उपयोग करने पर उन्होंने टैनिंग बिस्तरों को ‘विटामिन डी के अनुशंसित स्रोत’ भी बताया है.
डॉ होलिक ने अल्ट्रा वायलेट (यूवी) फाउंडेशन से शोध हेतु धनराशि मिलने की बात भी स्वीकार की है. यह फाउंडेशन अब भंग कर दी गयी इनडोर टैनिंग एसोसिएशन का एक गैरलाभकारी संगठन था, जिसने वर्ष 2004 से लेकर 2006 तक डॉ होलिक के शोधकार्यों के विशिष्ट उद्देश्य के लिए बोस्टन यूनिवर्सिटी को 1.50 लाख डॉलर दिये थे. कैंसर पर शोध करनेवाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ने 2009 में टैनिंग बिस्तरों को कैंसरकारक घोषित कर दिया था.
वर्ष 2004 में, टैनिंग उद्योग संघ ने बोस्टन यूनिवर्सिटी के त्वचा विज्ञान (डर्मेटोलॉजी) प्रभाग की तत्कालीन अध्यक्ष डॉ बारबरा गिलक्रिस्ट को प्रेरित किया कि वे डॉ होलिक से इस विभाग से त्यागपत्र देने को कहें. उन्होंने वैसा ही किया, पर अब भी वे मेडिकल स्कूल के ‘एंडोक्रिनोलॉजी, डायबिटीज, न्यूट्रीशन एंड वेट मैनेजमेंट’ विभाग में प्रोफेसर बने हुए हैं.
अपनी पुस्तक में डॉ होलिक ने लिखा है कि ‘सूर्य किरणों के विवेकपूर्ण सेवन हेतु उनके मजबूत समर्थन’ की वजह से मुझे अपना पद छोड़ने को ‘बाध्य’ किया गया. उनके अनुसार ‘मैंने त्वचा विज्ञान की रूढ़ियों में से एक को चुनौती देने की हिमाकत की.’ हालांकि डॉ होलिक की वेबसाइट उन्हें अमेरिकी त्वचा विज्ञान अकादमी का एक सदस्य बताती है, पर अकादमी की एक प्रवक्ता अमांडा जैकोब्स ने बताया है कि वे एक वर्तमान सदस्य नहीं हैं.
एंडोक्राइन सोसाइटी की लाक्षणिक (क्लिनिकल) मार्गदर्शिका उपसमिति के अध्यक्ष डॉ क्रिस्टोफर मैककार्टनी ने कहा है कि मार्गदर्शिका जारी किये जाने के बाद से सोसाइटी ने हित-विरोध (कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट) पर ज्यादा कड़ी नीतियां अपनायी हैं. सोसाइटी की वर्तमान नीतियां अब मार्गदर्शिका लेखन समिति के अध्यक्ष को वित्तीय विरोधों (कनफ्लिक्ट) का पात्र बनने देना स्वीकार नहीं करेंगी.
चमक खोती चमत्कारिक गोली
हाल के वर्षों में मेडिकल विशेषज्ञों के बीच विटामिन डी के प्रति उत्साह में कमी आयी है, क्योंकि कड़े क्लिनिकल परीक्षणों से शुरुआती एवं प्रारंभिक अध्ययनों द्वारा सुझाये लाभों की पुष्टि नहीं हो सकी.
परीक्षणों की शृंखला से ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिल सके कि विटामिन डी कैंसर एवं हृदय रोग की संभावनाएं कम करता है और बुजुर्गों में इसका स्तर निम्न हो जाता है. ज्यादातर वैज्ञानिक यह कहते हैं कि इस बात के पर्याप्त प्रमाण नहीं मिले हैं कि विटामिन डी हड्डियों से असंबद्ध पुराने रोगों से भी बचाव कर सकता है.
हालांकि नित्य के सामान्य पूरक खुराक में विटामिन डी की मात्रा सुरक्षित मानी जाती है, यह भी संभव है कि इसकी अधिक मात्रा ले ली जाये. अमेरिकन जर्नल ऑफ मेडिसिन में 2015 में प्रकाशित एक आलेख में रक्त में इसके 50 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर के निम्न स्तर का संबंध मौत के बढ़ी हुई जोखिम से जोड़ दिया गया. जबकि, रोसेन के अनुसार, वह एंडोक्राइन सोसाइटी द्वारा स्वस्थ माने गये स्तर के अंदर ही है, जिसने विटामिन डी की ‘पर्याप्तता’ की सीमा 30 नैनोग्राम से लेकर 100 नैनोग्राम तक मान रखी है.
कुछ शोधकर्ता कहते हैं कि विटामिन डी कभी भी वह चमत्कारिक गोली नहीं हो सकती थी, जो यह लगती रही. बोस्टन के ब्रिघम एवं महिला अस्पताल में निवारक औषधि विभाग के प्रमुख डॉ जोआन मैनसन के मुताबिक, रोगी व्यक्तियों में घर के अंदर रहने की वजह से विटामिन डी का स्तर निम्न हो जाता है, न कि विटामिन डी की कमी की वजह से उनका स्वास्थ्य खराब होता है.
वैसे केवल कड़े अध्ययन द्वारा ही विटामिन डी एवं स्वास्थ्य के बीच संबंधों के निश्चयात्मक उत्तर दिये जा सकते हैं, जिसमें बगैर किसी क्रमिक ढंग से (रैंडमली) किसी मरीज को विटामिन डी, जबकि दूसरों को उसकी जगह मनोवैज्ञानिक रूप से तुष्ट करनेवाली दवाएं (प्लेसिबो) देकर उनके परिणाम परखे जाएं. डॉ मैनसन के नेतृत्व में एक ऐसा ही अध्ययन 26 हजार वयस्कों पर हो रहा है, जिसके परिणाम नवंबर में प्रकाशित होने की संभावना है.
इंश्योरेंस जगत की मान्यता
इंश्योरेंस जगत के कई लोग तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब विटामिन डी की व्यापक जांच को अनावश्यक तथा खर्चीला मानने लगे हैं. वर्ष 2014 में ‘यूनाइटेड स्टेट्स प्रिवेंटिव सर्विसेज टास्क फोर्स’ ने कहा कि विटामिन डी की नियमित जांच की अनुशंसा के पक्ष अथवा विपक्ष में अभी पर्याप्त प्रमाण नहीं मिल सके हैं.
अप्रैल महीने में इस टास्क फोर्स ने प्रत्यक्षतः यह अनुशंसा की कि नर्सिंग होमों से बाहर रहनेवाले बुजुर्ग, वयस्क व्यक्ति विटामिन डी के स्तर में गिरावट को रोकने के लिए विटामिन डी की पूरक खुराकें न लें.
वहीं वर्ष 2015 में न्यूयॉर्क में रोचेस्टर के ‘एक्सेलस ब्लू क्रॉस ब्लू शील्ड’ ने विटामिन डी की जांच के आत्यंतिक प्रयोग को रेखांकित करते हुए एक विश्लेषण प्रकाशित किया था. वर्ष 2014 में इस इंशुरेंस कंपनी ने 6.41 लाख विटामिन डी की जांचों पर 3.3 करोड़ डॉलर खर्च किये थे. एक्सेलस के उपाध्यक्ष तथा उपयोग प्रबंधन के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ रिचर्ड लॉकवुड ने कहा कि यह ‘यह एक अत्यंत बड़ी धनराशि है.’
इस जांच को नियंत्रित करने की दिशा में एक्सेलस की कोशिशों के बावजूद, विटामिन डी के प्रयोग उच्च स्तर पर बने ही हुए हैं. डॉ लॉकवुड कहते हैं कि ‘आदतें बदलना बहुत मुश्किल है.’ उनके अनुसार, ‘चिकित्सा जगत भी बाकी दुनिया से बहुत भिन्न नहीं है और कई बार हम भी किसी सनक के शिकार हो जाया करते हैं.’
नयी नहीं है विटामिन डी पर चल रही बहस
पिछले वर्ष छपी एक रिपोर्ट में न्यूयाॅर्क टाइम्स ने ‘मेन मेडिकल सेंटर’ के रिसर्चर डॉ कैथलीन फेयरफील्ड और किम मरे के हवाले से कहा था कि ऐसा कोई भी कारण मौजूद नहीं है जिसकी वजह से लोगों को विटामिन डी के टेस्ट कराने पड़ें. रिपोर्ट के अनुसार विटामिन की कमी से लोगों की हड्डियां नहीं चटकतीं. लोगों में यह झूठी धारणा फैली हुई थी कि विटामिन डी की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है, इसलिए उन्हें विटामिन डी की गोलियां लेनी चाहिए. यह रिपोर्ट मेन मेडिकल सेंटर में 8,00,000 मरीजों के सैंपल के आधार पर तैयार की गयी थी.
इसमें बताया गया थी कि हर पांच में से एक मरीज ने तीन साल के पीरियड में विटामिन की जांच करवायी थी. मेन मेडिकल सेंटर में ऑस्टियोपोरोसिस रिसर्चर डॉ क्लिफोर्ड जे. रोसेन ने तो यहां तक कह दिया था कि विटामिन डी यहां ‘धर्म’ बन गया है.
कुछ दिनों बाद ही कुछ लोगों ने इस रिपोर्ट की तीखी आलोचना की थी. डॉ जो एस्पिनोसा ने न्यूयॉर्क टाइम्स की आलोचना करते हुए कहा था कि विटामिन डी कैंसर और सीवीडी के अध्ययन यह नहीं कहते कि विटामिन के सप्लीमेंट्स लेना बिल्कुल ही व्यर्थ है. एस्पिनोसा ने कहा था कि विटामिन डी विटामिन की श्रेणी में ही नहीं आता और हमारे भीतर का हार्मोन है.
इसके बाद वॉक्स डॉटकॉम ने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट से इत्तेफाक रखते हुए स्टोरी की थी कि विटामिन डी स्तर के स्तर की जांच करना कोलेस्ट्रॉल के बाद सबसे ज्यादा होनेवाली जांचों की लिस्ट में पांचवें नंबर पर है और फैशन हो गया है. वॉक्स डॉटकॉम ने 2010 में इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिसिन में हुई एक जांच का हवाला देते हुए कहा था कि ज्यादातर मनुष्यों में पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी होता है और इसे अलग से लेने की जरूरत नहीं होती.
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