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जीवनशैली में बदलाव लाकर दूर रख सकते हैं आईबीएस

आज की गड़बड़ जीवनशैली का परिणाम है कि तकरीबन 70 फीसदी लोगों को पाचन से जुड़ी समस्याएं रहने लगी हैं. ऐसे में किसी-किसी को अचानक खाने में अरुचि महसूस हो, पेट में मरोड़ या मीठा-मीठा दर्द हो, ऐंठन या जलन के साथ पेट फूला हुआ महसूस होता हो, तो ये इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आइबीएस) के […]

आज की गड़बड़ जीवनशैली का परिणाम है कि तकरीबन 70 फीसदी लोगों को पाचन से जुड़ी समस्याएं रहने लगी हैं. ऐसे में किसी-किसी को अचानक खाने में अरुचि महसूस हो, पेट में मरोड़ या मीठा-मीठा दर्द हो, ऐंठन या जलन के साथ पेट फूला हुआ महसूस होता हो, तो ये इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आइबीएस) के लक्षण हो सकते हैं. आमतौर पर लोग इसे सामान्य पेट दर्द समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, मगर यह आपकी बड़ी आंत (लार्ज इंटेस्टाइन) का रोग हो सकता है. ऐसे में तुरंत डॉक्टर से जांच करना उचित कदम है.
इस समस्या में व्यक्ति चिड़िचड़ाहट महसूस करता है. पेट में दर्द व बेचैनी से रोजमर्रा के कामों को करने में दिक्कत महसूस करता है. इस रोग से आंतें खराब तो नहीं होतीं, पर जीवनशैली प्रभावित होती है. खास है कि पुरुषों के मुकाबले यह ज्यादातर 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को (पीरियड के दौरान अधिक) होती है, जबकि बच्चों में आइबीएस की संभावना 5 से 20 फीसदी होती है.
क्या हैं इस रोग के कारण
पुष्पावती सिंहानिया रिसर्च इंस्टीट्यूट, दिल्ली के सीनियर कंसल्टेंट गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ दिनेश कुमार सिंहल के अनुसार, इस रोग कोई एक निश्चित कारण नहीं है. हो सकता है कि बहुत सारे कारण एक साथ भी हों.
किसी खास खाद्य पदार्थ से एलर्जी, कोई इन्फेक्शन होने के बाद तकलीफ की वजह से या किसी इन्फेक्शन से, दर्द की सेंसेटिविटी कम होने पर, यानी दर्द सहने की क्षमता कम होने पर, इम्यून सिस्टम कमजोर होने पर, हलकी सूजन होने पर या दूध में मौजूद लेक्टो व मसालेदार भोजन का अधिक सेवन करने से भी आप आइबीएस का शिकार हो सकते हैं.
तनाव भी इसका बड़ा कारण माना जाता है. तनाव में या तो कब्ज हो जाता है या दस्त. मानसिक तनाव पाचन क्रिया पर बहुत असर डालता है. हालांकि इस बात से अभी भी लोग अनभिज्ञ हैं. डॉक्टर लक्षणों के आधार पर ब्लड टेस्ट, मल टेस्ट, गैस्ट्रोइंटेस्टाइन की एंडोस्कोपी, पेट का अल्ट्रासाउंट या आंत का एक्स-रे आदि कराते हैं.इनकी अनदेखी न करेंआईबीएस में अक्सर ऐंठन, जलन, पेट दर्द, पेट फूला हुआ या कब्ज की समस्या घेरे रहती है. ऐसा महसूस होने पर डॉक्टर को दिखाएं.इस रोग में मरीज का वजन कम होना बेहद ही आम बात है.डायरिया की वजह से कमजोरी आना भी स्वाभाविक है और इससे चिड़चिड़ाहट भी घेरे रहती है.कभी-कभी हल्का बुखार हो सकता है तथा जी मिचलाने लगता है.तनाव भी आईबीएस ट्रिगर करता है.
रखें ध्यान
इम्यून सिस्टम कमजोर होने पर दूध में मौजूद लेक्टो व मसालेदार भोजन का अधिक सेवन करने से भी आइबीएस का शिकार हो सकते हैं.
आइबीएस से पीड़ित व्यक्ति को तली हुई चीजों, फ्रोजेन या प्रोसेस्ड मीट का सेवन कम करना चाहिए.फाइबर युक्त भोजन आंतों को दुरुस्त रखते हैं.रेगुलर एक्सरसाइज रोग को दूर रखने में अचूक उपाय है.
कुछ आम लक्षण
आइबीएस ऐसी स्थिति है, जिसमें भोजन बड़ी आंत से बहुत धीरे या बहुत तेजी से होकर गुजरता है. हर व्यक्ति में लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं. एक डिस्कंफर्ट फीलिंग लगातार बनी रहती है. पेट दर्द के साथ ऐंठन और जलन भी महसूस होती है. पेट फूला हुआ महसूस होता है.
हालांकि कभी-कभी पेट में ऐंठन और दर्द इतना हल्का होता है कि मरीज को पता हीं नहीं लगता कि किस वजह से हो रहा है. उसे लगता है कि भोजन ठीक से न पचने के कारण जलन हो रही है. इसमें दस्त या कब्ज की समस्या हो सकती है. कई बार दस्त सामान्य, तो कई बार रक्त के साथ होता है.
कब्ज कई दिनों तक बने रहने से भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है और मानसिक व शारीरिक शिथिलता आ जाती है. कभी-कभी मरीज को हल्का या तेज बुखार भी हो जाता है. आइबीएस में वजन कम होना आम है. खासकर अगर बहुत ज्यादा दस्त हो जाये, तो शरीर में पानी की कमी की हो जाती है. डायरिया की वजह से कमजोरी आना भी स्वाभाविक है और इस वजह से चिड़चिड़ाहट उसे घेरे रहती है.
क्या है इसका उपाय
डॉ दिनेश सिंहल
सीनियर कंसल्टेंट गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट, पुष्पावती सिंहानिया रिसर्च इंस्टीट्यूट, दिल्ली
इस समस्या में दवा या इलाज की जरूरत नहीं, बल्कि जीवनशैली व खाने की आदतों में परिवर्तन कर इससे छुटकारा पाया जा सकता है. दर्द से तुरंत राहत के लिए डॉक्टर की सलाह से कुछ दवाएं ली जा सकती हैं.
दूध, मक्खन और पनीर जैसी चीजें अधिक खाने से भी यह समस्या बढ़ जाती है. इसलिए पीड़ित व्यक्ति डेयरी प्रोडक्ट बिल्कुल बंद कर दें. फास्ट फूड घातक हो सकता है. पास्ता और पिज्जा जैसी चीजों में ग्लूटेन की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जिससे समस्या और बढ़ जाती है. तली हुई चीजों और प्रोसेस्ड मीट भी कम लें, क्योंकि ये चीजें आंतों में जलन पैदा करती हैं. फाइबर युक्त भोजन आंतों को दुरुस्त रखता है.
आपको ताजे फलों, सब्जियों, संपूर्ण अनाज और बींस से पर्याप्त मात्रा में फाइबर मिलता है. अधिक कॉफी या चाय पीने से इसमें मौजूद कैफीन से डायरिया होने की संभावना होती है. इसमें तरल पदार्थों का सेवन अधिक करें, क्योंकि इसी से शरीर डिटॉक्स होता है. इसमें दही का प्रयोग अधिक मात्रा में करें. दही में लैक्टिक एसिड पाया जाता है, जो शरीर के टॉक्सिन को बाहर निकालने में मदद करता है. रेगुलर एक्सरसाइज अचूक उपाय है, जो आंतों की कार्य क्षमता बढ़ाता है.

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