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पड़ोस में हो रही आर्थिक शिकंजे की कवायद, आसान नहीं है चीन की राह

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, म्यांमार और नेपाल- में चीन के निवेश और उसकी परियोजनाओं पर आशंका के बादल मंडराने लगे हैं. इन देशों ने चीन के सहयोग से बन रही कुछ बड़ी परियोजनाओं को रोक दिया है. एशिया के जिन देशों में चीन व्यापक निवेश कर रहा है, वहां […]

पुष्परंजन

ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक

पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, म्यांमार और नेपाल- में चीन के निवेश और उसकी परियोजनाओं पर आशंका के बादल मंडराने लगे हैं. इन देशों ने चीन के सहयोग से बन रही कुछ बड़ी परियोजनाओं को रोक दिया है. एशिया के जिन देशों में चीन व्यापक निवेश कर रहा है, वहां यह चिंता बढ़ती जा रही है कि इसके जरिये चीन उन्हें कर्ज के जाल में फांस रहा है. यह चिंता अकारण नहीं है.

श्रीलंका में बन रहे बंदरगाह में कर्ज की अदायगी न कर पाने के एवज में चीन ने हिस्सेदारी ले ली है. चीनी महत्वाकांक्षाओं और दक्षिण एशियाई देशों के रुख के विभिन्न पहलुओं पर विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…

चीनी पावर प्रोजेक्ट का फ्लाॅप शो

इसे हम तुरंत-फुरंत यह कह दें कि भारत की आपत्ति के बाद पाकिस्तान नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना से पीछे हट गया, थोड़ी जल्दबाजी होगी. और यह भी कह देना कि पाकिस्तान में इस प्रोजेक्ट के रद्द हो जाने से चीन-पाकिस्तान इकॉनाेमिक कॉरीडोर (सीपीइसी) को धक्का पहुंचा है, अति उत्साह में बोल पड़ने जैसा होगा. नेपाल, म्यांमार और पाकिस्तान में चीन का कारोबार कनखजूरे की सहस्त्र टांगों की तरह विस्तार ले चुका है.

कुल 20 अरब डॉलर वाली दो-चार टांगे टूट भी जाएं, तो चीन को फर्क पड़ता है क्या? मगर, खबर दिलचस्प जरूर है कि कुछ हफ्तों के अंतराल में दक्षिण एशिया के दो देशों की जलविद्युत परियोजनाओं में चीनी कंपनी को जो ठेके हासिल हुए थे, वे एक-के-बाद एक रद्द करने पड़े.

म्यांमार के हालात

तीसरी कहानी म्यांमार की रही है, जो 2011 से अधूरी है. म्यांमार में छह हजार मेगावाट की ‘म्यितसोन जलविद्युत परियोजना’ के वास्ते ‘स्टेट पावर इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन यून्नान इंटरनेशनल पावर इन्वेस्टमेंट’ नामक कंपनी को ठेका मिला था. म्यांमार से लगे यून्नान की 90 फीसदी बिजली जरूरतें इससे पूरी हो जाती. म्यांमार में इसका विरोध हो रहा था कि चीन क्यों यहां से बिजली दोहन करे.

वर्ष 2011 में ‘म्यितसोन डैम’ के निर्माण पर म्यांमार ने रोक लगा दी. नाराज चीन को मनाने का भी सिलसिला बंद नहीं हुआ था.

म्यांमार ने 2016 में मेगा परियोजना के बदले छोटे-छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट की बात शुरू की, ताकि सस्ते रख-रखाव के साथ उनकी स्थानीय जरूरतें पूरी हो सके. दूसरी ओर यून्नान में भी उल्टा हो गया, वहां पर पावर सरप्लस होने लगा. यानी बिजली की वहां जरूरत नहीं रही. अंतत: 3.6 अरब डॉलर की ‘म्यितसोन पावर प्रोजेक्ट’ का राम नाम सत्य हो गया.

दाइमर-भाशा बांध

चीन का दूसरा फ्लॉप शो गिलगिट-बाल्टिस्तान में दाइमर-भाशा बांध पर देखने को मिला. दाइमर-भाशा बांध के जरिये 4,500 मेगावाॅट बिजली पैदा करने का मंसूबा 2006 में उस समय के प्रेसिडेंट जनरल परवेज मुशर्रफ ने बनाया था. गिलगिट-बाल्टिस्तान में नीलम-झेलम नदी पर बांध बनाने को लेकर सबसे पहली आपत्ति भारत की थी.

सामरिक रूप से संवेदनशील व विवादित इलाके को चीन-पाकिस्तान इकॉनाेमिक कॉरीडोर (सीपीइसी) के अंतर्गत ले आना ही आपत्ति की सबसे बड़ी वजह थी. नवंबर, 2008 में दाइमर-भाशा हाइड्रो प्रोजेक्ट के वास्ते 12.6 अरब डॉलर का बजट बना, जिसके लिए ऋण विश्व बैंक से लेना था. मगर, इस रकम को ग्रांट करने से पहले वर्ल्ड बैंक ने कहा कि भारत से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) के बिना यह संभव नहीं है. पाकिस्तान इस पर चुप लगा गया.

बोर्ड ऑफ इन्वेस्टमेंट

पाक प्रधानमंत्री सचिवालय में एक महकमा है- बोर्ड ऑफ इन्वेस्टमेंट. इसके डाटाबेस में 2010 तक चीन की 83 कंपनियों की सूची है. इसमें 22वें नंबर पर ‘केझुबा ग्रुप’ रजिस्टर्ड है. इस चीनी कंपनी ने 2002 में लाहौर कैंट में ‘चाइना केचउपा वाटर एंड पावर ग्रुप’ के नाम से रजिस्ट्रेशन कराया था. कोई लोऊ शू हान है, जिसे इस कंपनी का प्रतिनिधि बताया गया है.

सात जुलाई, 2007 को केझुबा ग्रुप और चाइना मशीनरी इंपोर्ट एंड एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन को नीलम-झेलम हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का साझा ठेका दिया गया था, जिस पर 2008 से काम आरंभ हो गया. 969 मेगावाॅट की नीलम-झेलम जलविद्युत परियोजना को जनवरी, 2018 से चालू हो जाना था.

पाकिस्तान का कहना है कि इस इलाके में अति सख्त स्थिति है, इसलिए इस परियोजना को आगे बढ़ाने से बेहतर इसे स्थगित कर देना है. पाकिस्तान खुल कर यह नहीं बता रहा है कि इस परियोजना को पूरा करने में चीनी कंपनी ‘केझुबा ग्रुप’ ने क्या कुछ गड़बड़ी की है. कई देशों में केझुबा ग्रुप की परियोजनाओं पर गौर करें, तो उनके गड़बड़झाले का पता चलता है.

एक तो प्रोजेक्ट को समय पर पूरा नहीं करना, और दूसरा बजट बढ़ाते चले जाना. उदाहरण के लिए 2005 में जो लागत राशि नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना की थी, 2011 आते-आते उसमें 2.89 अरब डॉलर का इजाफा हो गया.

दिसंबर, 2014 में उसकी एक सुरंग के ढह जाने से एक चीनी इंजीनियर समेत चार मजदूरों की मौत हो गयी. बावजूद इसके 5 नवंबर, 2016 को बाहरी दुनिया को यह जानकारी दी गयी कि नीलम-झेलम परियोजना टर्मिनल फेज में है, और बिजली का उत्पादन जनवरी, 2018 से चालू हो जायेगा. अब पाकिस्तान ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि बदली परिस्थितियों में नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना को सुचारू रखना संभव नहीं. ‘केझुबा ग्रुप’ और ‘चाइना मशीनरी इंपोर्ट एंड एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन’ से कैसे मुक्ति मिली? इस बारे में पाकिस्तान के प्रशासन की मुट्ठी बंद है.

पाकिस्तान को फंडिंग

इस पूरी कथा का जो रहस्यमय पहलू है, वो ये कि भारत द्वारा एनओसी और वर्ल्ड बैंक द्वारा पैसे नहीं दिये जाने के बावजूद 16 इस्लामी बैंकों के संघ ने ‘नेशनल बैंक ऑफ पाकिस्तान’ को 100 अरब रुपये नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना के वास्ते मुहैया कराये. पाकिस्तान को रो-गाकर इसे चालू कराना ही होगा, वरना कर्ज की यह विशाल रकम उसे कहीं का नहीं रहने देगी. नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना में भ्रष्टाचार भी खूब हुआ है. टनल बोरिंग मशीन खरीद में पैसे खाये गये. इस परियोजना की पूरी कवायद में पाकिस्तान-चीन की भद्द जिस तरह पिटी, वह देखने लायक है!

दुविधा में नेपाली नेतृत्व!

तीसरी विफल कथा नेपाल की है. बुढ़ागंडकी जलविद्युत परियोजना के वास्ते नेपाल के दो जिलों धादिंग और गोरखा की 58 हजार रोपनी जमीन को अधिगृहित करने की आन पड़ी, जिस कारण आठ हजार लोगों का आशियाना उजड़ जाना था. नेपाल में एक रोपनी जमीन 5,476 वर्गफीट होती है.

धादिंग काठमांडु से 80 किमी दूर है, और गोरखा 878 किमी दूर. इन दोनों जिलों में बांध के डूब वाले इलाके में 3,560 घर आ रहे हैं. 2017-18 वित्त वर्ष के लिए नेपाल सरकार ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना के वास्ते 10.17 अरब रुपये का आबंटन कर दिया था, ताकि बेदखल लोगों को मुआवजा मिले. 1,200 मेगावाॅट की बुढ़ागंडकी जलविद्युत परियोजना चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड इनिशिएटिव’ का हिस्सा बन गयी.

प्रधानमंत्री प्रचंड चला-चली की बेला में थे. चीन-नेपाल ने 12 मई, 2017 को सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर 2.5 अरब डॉलर के बांध निर्माण का ठेका चीन की ‘केझुबा ग्रुप’ को दे दिया गया.

चार महीने बाद सितंबर, 2017 में नेपाली संसद द्वारा नियुक्त कृषि एवं जलस्रोत कमेटी व फाइनेंस कमेटी ने निष्कर्ष दिया कि ठेके की प्रक्रिया तय मानकों के विरुद्ध थी, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए. पार्लियामेंट्री फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन प्रकाश ज्वाला ने सवाल किया कि चीन की ‘केझुबा ग्रुप कंपनी लिमिटेड’ 22 मेगावाट की चिलिमे जलविद्युत परियोजना (रसुवा जिले) को पूरा करने में विफल रही थी, ऐसी कंपनी को 1,200 मेगावाॅट बिजली बनाने का ठेका कैसे दे दिया गया?

खैर! म्यांमार में किस तरह की गड़बड़ी चीनी कंपनियों की ओर से हुई है, उसे खोद निकालने के बाद ही पता चलेगा. मगर, नेपाल और पाकिस्तान की कहानी लगभग एक जैसी है कि सत्ता पक्ष को पटाकर चीनी कंपनियां सारे नियमों को ताक पर रख रही हैं. यानी ‘वन बेल्ट वन रोड’ के इस लोकप्रिय नारे के बहाने खूब लूट-खसोट और भ्रष्टाचार करो!

दक्षिण एशिया में रणनीतिक वर्चस्व

दक्षिण एशिया में अपने आर्थिक और रणनीतिक वर्चस्व को मजबूत करने के लिए चीन ने बरसों से भारी निवेश किया है. हालांकि, कई परियोजनाओं के भविष्य के बारे में भरोसे से कुछ कहना संभव नहीं है, फिर भी ‘वन बेल्ट-वन रोड’ व ‘मोतियों की माला’ सरीखी पहलें चीन की नीति का सबसे अहम हिस्सा हैं.

पाकिस्तान में चीन का निवेश

पाकिस्तान में निवेश समाचार एजेंसी रॉयटर के हवाले से ‘फॉर्च्यून’ ने अगस्त में एक खबर प्रकाशित की थी कि ‘वन बेल्ट-वन रोड’ पहल के तहत चीन ने पाकिस्तान में 57 बिलियन डॉलर के निवेश का मन बनाया है. हालांकि, पाकिस्तानी अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने इस साल अप्रैल में सिंध के गवर्नर मोहम्मद जुबैर के हवाले से बताया था कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना में चीन ने अपना निवेश 55 से बढ़ाकर 62 बिलियन डॉलर कर दिया है. इस गलियारे के लिए प्रारंभ में 46 बिलियन डॉलर की राशि निर्धारित की गयी थी. उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी सबसे अधिक चीन से आता है. 2016-17 में यह राशि एक बिलियन डॉलर को पार कर गयी थी.

चीनी प्रवासियों की बढ़ती संख्या

चीन अपने उन उद्योगों के लिए भी नये ठीहे तलाश रहा है, जिनके विकास की संभावनाएं वहां अब बहुत कम हैं. इनमें भवन-निर्माण, बिजली के उपकरण और घरेलू इस्तेमाल की चीजों से जुड़े उद्योग अहम हैं. आधिकारिक रूप से पाकिस्तान अपने यहां सक्रिय प्रवासियों की संख्या की घोषणा नहीं करता है, पर फॉर्च्यून ने विदेश मंत्रालय के सूत्रों से मिली सूचना के आधार पर बताया है कि 2016 में करीब 71 हजार चीनी पाकिस्तान के दौरे पर आये थे. एक अन्य सूत्र के अनुसार, उस साल 27 हजार से अधिक चीनियों के वीजा की अवधि बढ़ायी गयी थी, जो कि 2015 के मुकाबले 41 फीसदी अधिक है. इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान में रुकनेवाले चीनियों की संख्या बढ़ रही है.

पाक के भ्रष्टाचार से चिंतित चीन

पाकिस्तान के प्रमुख अखबार ‘डॉन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने आर्थिक गलियारे की कुछ परियोजनाओं के लिए धन के भुगतान को अस्थायी तौर पर रोक दिया है. इस निर्णय से सड़क परियोजनाओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि चीन पाकिस्तान में भ्रष्टाचार से चिंतित है और वह आगे तभी धन देगा, जब इस संबंध में नये नियम बनेंगे.

म्यांमार में चीन का निवेश

चीनी वर्चस्व के विरोध के कारण वर्ष 2011 के वित्त वर्ष में चीनी कंपनियों का निवेश 2010 के 875.6 मिलियन डॉलर से घट कर महज 217.8 मिलियन डॉलर रह गया था. लेकिन, 2016-17 में निवेश की राशि 2.8 बिलियन डॉलर तक पहुंच गयी़ हालांकि, यह पिछले वित्त वर्ष से करीब 500 मिलियन डॉलर कम है. चीनी सरकार के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी, 2017 तक 18.53 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ चीनी हिस्सेदारी म्यांमार के कुल विदेशी निवेश में सबसे अधिक है. साल 2016-17 में सिंगापुर और वियतनाम का निवेश चीन से कुछ अधिक रहा है. माना जा रहा है कि इस साल अक्तूबर में बने नये निवेश कानूनों का लाभ चीन को मिलेगा और उसका निवेश बढ़ेगा.

चीन-नेपाल आर्थिक संबंध

इस साल मार्च में चीन ने नेपाल में 8.2 बिलियन डॉलर के निवेश का वादा किया था. बीते कुछ सालों से इस हिमालयी देश में चीन सर्वाधिक निवेश करनेवाला देश बना हुआ है. नेपाल ने विकास की गति को तेज करने के लिए उद्यम, विशेष आर्थिक क्षेत्र और विदेशी निवेश से संबंधित नये कानून बनाये हैं.

इस साल मई में नेपाल ने ‘वन बेल्ट-वन रोड’ पहल में सहयोग करने के समझौते पर भी हस्ताक्षर किया है. इसे नेपाल की भारत पर अत्यधिक निर्भरता की काट के रूप में देखा जा रहा है. वर्ष 2015-16 में चीन ने ऊर्जा, यातायात और पर्यटन जैसे अनेक क्षेत्रों में 621 मिलियन डॉलर का निवेश किया था, जो उस वर्ष नेपाल के पूरे विदेशी निवेश का करीब 42 फीसदी था.

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