झारखंड-बिहार में कांग्रेस की अधोगति है. पार्टी का परंपरागत वोट बैंक व साख घट रही है. चुनावी वैतरणी पार करने के लिए कांग्रेस को साथी दलों के कंधे का सहारा चाहिए. अविभाजित बिहार के समय से ही कांग्रेस इस क्षेत्र में पैठ खोती जा रही है. संगठन का बुरा हाल है. पुराने कांग्रेसी पार्टी से दूर हुए हैं. राहुल गांधी एक दिवसीय दौरे पर झारखंड आ रहे हैं.
रांची : झारखंड में कांग्रेस की जमीन खिसक गयी है. पार्टी का जन प्रभाव धीरे-धीरे सिमट रहा है. परंपरागत वोट बैंक पर दूसरे दलों ने सेंधमारी की है. आदिवासी, अल्पसंख्यक वोट बैंक में पार्टी का एकाधिकार खत्म हुआ है. झामुमो, झाविमो, आजसू जैसे क्षेत्रीय दलों ने अलग-अलग इलाके में इन वर्गों के बीच पैठ बनायी है. कांग्रेस अपने पुराने गढ़ में विश्वास हासिल करने में विफल रही है. ग्रास रूट पर पार्टी की धार खत्म हुई है. संगठन भी पस्त है.
पार्टी में लॉबिंग और नेताओं की गणेश परिक्रमा का चलन है. बड़े नेता चुनाव में टिकट लेने के लिए रांची से दिल्ली तक खेमाबंदी करते हैं. पार्टी में जिला से लेकर प्रदेश स्तर के नेता संगठन में पद पाने के लिए पसीना बहाते हैं. संगठन के अंदर नेताओं के अलग-अलग गुट हैं. कार्यकर्ता गुटबाजी में फंसे हैं. संगठन में अनुशासन तार-तार है. जिस नेता को जब मन किया, पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया. अनुशासन तोड़नेवाले पर कार्रवाई नहीं होती है. सांसद-विधायकों में पार्टी के कार्यकर्ता बंटे हैं.
* …अब जमानत बचाना भी मुश्किल
राज्य में कांग्रेस का जनाधार लगातार घटा है. कभी कांग्रेस का गढ़ माने जानेवाले इलाकों में अब उम्मीदवारों की जमानत नहीं बच रही है. पिछले पांच वर्षों में राज्य में चार उपचुनाव हुए. उपचुनाव के आइने से देखें, तो कांग्रेस की हालत बयां होती है. हटिया कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है. यहां कांग्रेस-भाजपा के बीच चुनावी समीकरण बनता-बिगड़ता रहा है. पिछले वर्ष हटिया में उपचुनाव हुआ. कांग्रेस के विधायक गोपाल शरण नाथ शाहदेव के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी.
कांग्रेस प्रत्याशी की यहां जमानत भी नहीं बच सकी. इस सीट पर आजसू ने अपना दबदबा कायम किया. जमशेदपुर में संसदीय उपचुनाव हुआ. यहां भी पार्टी की जमानत नहीं बची. जमशेदपुर में कांग्रेस चौथे स्थान पर रही. परंपरागत वोट बैंक में झाविमो ने सेंधमारी की. झाविमो के प्रत्याशी डॉ अजय कुमार रिकॉर्ड वोट से जीते. मांडू विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस पिट गयी. यहां कांग्रेस को झाविमो से महज चार हजार वोट ज्यादा आये. राज्य में क्षेत्रीय दल कांग्रेस के लिए चुनौती बन खड़े हैं.
* प्रभारी के सामने चली गोली, लीपापोती
21 जून 2013 को कांग्रेस भवन में गोली चली. प्रभारी बनने के बाद बीके हरि प्रसाद का पहला झारखंड दौरा था. प्रभारी के सामने ही कांग्रेस भवन में मारपीट हुई. दो गुटों के बीच गरमा-गरमी हुई. गोलियां चलीं. कांग्रेस नेताओं के समर्थकों ने एक-दूसरे पर लाठी और पत्थर बरसाये. अनुशासन टूटा, लेकिन संगठन मौन रहा.
गोलीबारी की घटना में दो कद्दावर नेता आमने-सामने थे. प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत ने उसी दिन जांच कमेटी बना दी. वर्तमान मंत्री गीताश्री उरांव जांच कमेटी की संयोजक बनीं. कमेटी में विधायक केएन त्रिपाठी और बन्ना गुप्ता सदस्य बनाये गये. 24 घंटे में पूरी की जानेवाली जांच आज तक पूरी नहीं हो सकी है. कांग्रेस के अंदर अनुशासन तोड़नेवाले पर होनेवाली कार्रवाई की यह घटना बानगी भर है. कांग्रेस के अंदर विवादित बयानबाजी करनेवालों पर भी कार्रवाई नहीं होती. पार्टी के अंदर हर मामले में बात-बात पर कमेटी बनती है. कमेटी की रिपोर्ट धूल फांकती है.
* सरकार में हैं, माइलेज नहीं
राज्य गठन के बाद गत 13 वर्षों में कांग्रेस पहली बार सरकार में शामिल हुई. तीन महीने की किचकिच के बाद झामुमो को नेतृत्व सौंपने पर सहमति बनी. कांग्रेस आला कमान की ओर से सरकार में शामिल होने का फैसला भी किया गया. इससे पूर्व निर्दलीय मधु कोड़ा की सरकार को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया था. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी सरकार में कांग्रेस के पांच विधायक मंत्री बने. सरकार के महत्वपूर्ण विभाग कांग्रेस के पास हैं.
प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने राज्य में सरकार बनाने के लिए आलाकमान को काफी मशक्कत से मनाया, लेकिन सरकार बना कर कांगे्रस को नुकसान ही हुआ है. सरकार गठन का लाभ संगठन को नहीं मिल रहा है. संगठन और सरकार में समन्वय का अभाव है. कांग्रेस के एजेंडे दरकिनार कर दिये गये हैं. न्यूनतम साझा कार्यक्रम लागू नहीं हो पा रहा है.
जमीनी स्तर पर भी सरकार में रहने का माइलेज कांग्रेसियों को नहीं मिल रहा है. कांगे्रस के मंत्री भी अपनी बयानबाजी से विवादों में रहे हैं. मंत्री योगेंद्र साव, मन्नान मल्लिक और ददई दुबे अपने बयानों के लिए चर्चित रहे. गीता श्री उरांव भी शिक्षा विभाग में अपने फैसलों को लेकर चर्चा में रहीं. कांग्रेस कार्यकर्ता राजनीतिक फसल नहीं काट पा रहे हैं. इसके विपरीत संगठन को फजीहत ही झेलनी पड़ रही है.