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मस्तिष्क शांत रखता है शशांकासन

स्वामी निरंजनानंद सरस्वतीअभी जिस अवस्था में आप सब हैं, उस अवस्था में शरीर में बहुत-से रासायनिक परिवर्तन होते हैं. ये रासायनिक परिवर्तन हमारे शरीर व मन के विकास को बाधित करते हैं, इसलिए बालपन में ही हमलोग शारीरिक या मानसिक या भावनात्मक रूप से अधिक चंचल हो जाते हैं. अपने आपको केंद्रित व एकाग्र नहीं […]

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती
अभी जिस अवस्था में आप सब हैं, उस अवस्था में शरीर में बहुत-से रासायनिक परिवर्तन होते हैं. ये रासायनिक परिवर्तन हमारे शरीर व मन के विकास को बाधित करते हैं, इसलिए बालपन में ही हमलोग शारीरिक या मानसिक या भावनात्मक रूप से अधिक चंचल हो जाते हैं. अपने आपको केंद्रित व एकाग्र नहीं कर पाते. आप लोगों ने अनुभव किया होगा कि पढ़ाई, तो हम खूब करते हैं, लेकिन जैसे-जैसे परीक्षा के दिन निकट आते हैं, दिल में घबराहट बढ़ती है. रात को भी पढ़ाई के पश्चात सबेरे हमको याद नहीं रहता कि हमने क्या पढ़ा था.

हमारे माता-पिता व शिक्षक कहते हैं कि बच्चे की बुद्धि ठीक तरह से विकसित नहीं हुई है. लेकिन अगर सच पूछा जाये, तो बच्च कभी पढ़ाई-लिखाई में कमजोर नहीं होता. बच्चे के शरीर के भीतर अनेक प्रकार की ग्रंथियां होती हैं.

इन ग्रंथियों से जो हार्मोन या रसायन निकलता है, वह उसके शरीर व मन के विकास में या तो सहायक होता है या बाधक बनता है. जब उसके शरीर के भीतर उत्पन्न होनेवाले ये रसायन सहायक होते हैं, तब उसकी स्मृति, उसकी मेधाशक्ति, उसकी प्रतिभा बहुत तीव्र हो जाती है. थोड़ी-सी पढ़ाई करने पर वह अच्छे अंक भी ले आता है. लेकिन जब यही रसायन बाधा के रूप में आते हैं, तब अभिभावक बच्चों को चाहे कितने ही चिकित्सकों, हकीमों, वैद्यों या महात्माओं के पास ले जायें, बच्च ठीक नहीं हो सकता. इन्हीं ग्रंथियों को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए योग में विविध आसनों के अभ्यास हैं. इनमें पहला अभ्यास है ‘शशांकासन’. यह अभ्यास अगर तुम सब रोज सबेरे उठ कर दस बार कर सकते हो, तो बहुत उत्तम होगा, क्योंकि इस अभ्यास में हम अपने मस्तिष्क को शांत करते हैं.

इसके साथ-साथ हमारे शरीर में विशेष ग्रंथि है, जिसको ‘एड्रीनल’ ग्रंथि कहते हैं. इससे जब रस निकलता है, जिसे ‘एड्रिनलिन’ कहते हैं, तो शारीरिक व मानसिक उत्तेजना बहुत बढ़ जाती है. उस रस को नियंत्रित करने में यह आसन बहुत सहायक होता है. दूसरा अभ्यास है ‘उष्ट्रासन’. उष्ट्रासन का मतलब होता है, ऊंट के समान आकृति. उष्ट्रासन का अभ्यास मेरु दंड व पीठ के लिए उपयोगी है, क्योंकि विज्ञान ने शोध के द्वारा देखा है कि जब बहुत देर तक सिर झुका कर पढ़ते हैं, तो हमारे कंधे आगे की ओर झुक जाते हैं. यह अभ्यास पीठ को सीधा रखने के लिए बहुत उपयोगी है. एक और आसन है, जिसको ‘सर्वागासन’ कहते हैं. यह शरीर के लिए बहुत उपयोगी अभ्यास है. इस आसन का प्रभाव गले की ग्रंथि पर पड़ता है, जिसे ‘थायराइड’ ग्रंथि कहते हैं. यह थाइराइड ग्रंथि शरीर के विकास में अत्यंत उपयोगी व महत्वपूर्ण है. बचपन में कुछ लोग नाटे रहते हैं. कुछ लोग मोटे रहते हैं. नाटेपन व मोटेपन को दूर करने के लिए सर्वागासन व हलासन का अभ्यास होना चाहिए. ये तीन आसन हैं, जिनका अभ्यास तुम लोग रोज करोगे, तो अच्छे मानव के रूप में समाज को सही दिशा दे पाओगे.

‘अराधना, योग ऑफ द हार्ट’ पुस्तक से साभार

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